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क्या कसूर
कविता

क्या कसूर

पिंकी कुमारी राय तिनसुकिया, (असम) ******************** क्या कसूर उन आँखों का जिनकी चमक छीन ली जाती है चमकने से पहले? बुझा दिए जाते हैं वे दीप जलने से पहले। थोड़ी सी देर हुई थी थोड़ा ही हुआ था अंधेरा सूने रास्ते में पड़ गई थी अकेली...। रोया था उसके पिता ने उस दिन भी जब नन्हें पैरों चल गोद में आई रो रहा है आज भी जब उस नन्ही परी के मिटते अस्तित्त्व की देकर दुहाई। बस फर्क थोड़ा सा उन आँसुओं में इसलिये है क्योंकि उस दिन तुने पिता बनाया और आज पिता तुझे बचा न सका। आज हर तरफ दुर्योधन हैं उनका अट्टहास है तांडव है। हे कृष्ण! आ एक बार फिर कलयुग में बन जा सखा, मित्र और भाई बाँधूगी राखी एक नहीं हज़ार बचा ले आकर इस कल्युग की द्रोपदी का संहार। परिचय :- पिंकी कुमारी राय निवासी : ज्योतिनगर तिनसुकिया, (असम) पत्र। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिका...