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Tag: पारस परिहार

उदास फूल
कहानी

उदास फूल

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** वह मुझे देख रहा था और मैं उसे... लेकिन... लेकिन... हम दोनों में से किसी ने भी कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं की। ये माजरा करीब आधे घंटे तक यू ही चलता रहा। आखिरकर...मैं समझ गया कि गलती मेरी ही थी क्योंकि उसको अपना जीवन समाप्त किए पूरे बारह महीने हो चुके थे, सो कैसे बोलता और मैं तो एक जिंदा इंसान था पूछना तो मुझे चाहिए था। फिर एकाएक स्मरण हो आया कि किससे पूछूं वह तो बोलता ही नहीं था। उसको एक दुकानदार नए वर्ष की नई तारीख को तोड़कर लाया था और नए वर्ष की नई तारीख को ही बाहर फेंका गया था। भाग्यवश...मै भी उसी दिन उस दुकान पर पहुंच गया। वह फूल मुझे उदास भाव से अपनी आंखों से देख रहा था। मानो कह रहा हो जब मैं डाली पर था तब सुंदर लग रहा था, वहां मेरी इज्जत थी, लोग मुझे बड़े आदर से देखते थे, हर रोज मुझे पानी दिया जाता था और वही लोग आज मुझे अपने पैरों क...
गगन के किनारे
कविता

गगन के किनारे

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** मैने देखा उसे गगन के किनारे बहती पवन के सहारे शाम की संध्या का रूप निखारे उतरती किरणों के इशारे। डुब रहा था आग का महाराजा कर रहा था इशारे साथ आने का आजा मेरी गोद मे समाजा मै हूँ इस जगत का राजा। दुनियाँ को जगाने निकला था पुरा करके सफर अपना, घर अपनें जा रहा था ओट में बादलों की, छिपा जा रहा था इशारों ही इशारों मे वापस आने का वादा कर रहा था। सुधा अपने अंचल में, समेट उसे रहीं थी किरणों की महक दूर-दूर तक फैली थी चारों और हँसती-हँसाती हरियाली थी प्रकृती को सौ रंगो से सजा रही थी। मै विदा लेने ही वाला था... किसामने काली घटा का घूमड़ आ निकला था इन्द्र ने पवन को भी न्योता दिया था पवन देवता भी झल्लाते पीछे-पीछे आ रहे थे किसानो की मेहनत को मिटाते जा रहे थे। इतने मे आवाज आयी... रुक जाओ, रुक जाओ, महाशय...! जरा रुक जाओ इतना क्रोध हम पर ना दिखाओ ऐसा क्या कर...
वृक्ष और बेटी
कविता

वृक्ष और बेटी

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** तुम फलते हो मैं खिलती हूँ, तुम कटते हो मैं मिटती हूँ; तुम उनके स्वार्थ की खातिर, मैं उनके सपनों की खातिर। मैं बनकर माँ बेटी पत्नी लुटती और लूटाती अपनी ख्वाहिशों की मंजिल ढहाकर उनका घर आँगन सजाकर। तुम चहकाती आँगन उनका मैं भर देता दामन उनका, फिर क्यों तुम मारी जाती हो क्यों फिर मै काटा जाता हूँ। मैं देता हूँ शीतल छाया फिर भी जलती मेरी काया, तुम उनका हो वंश बढाती क्यों गर्भ में मारी जाती। हे!मगरुर मनुज तु रखना याद हमारी बातों को, दरक़ जाएंगे जब हम तेरी ढह जाएगी ऊँची मंजिल। क्योंकि हम है नींव तुम्हारे सपनों की कंगुरों की। हम लुटाते रहे अपना सर्वस्व, वो मिटाते रहे हमारा अस्तित्व। परिचय :- पारस परिहार निवासी : मेडक कल्ला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
ख्वाब करना है वो पूरे
कविता

ख्वाब करना है वो पूरे

पारस परिहार मेडक कल्ला ******************** ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे। पलकों की दबिश में, चाहतो ने जोर मारा, उड गई नीदें हमारी, चैन भी खोया हमारा। मंजिलें हमको बुलाती, डालने को है बसेरा। तोड़ दो सब बंधनो को, आगे खडा है नया सवेरा। करो कुछ ऐसे जतन, हो ख्वाब पूरे अपने अधूरे…. ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे।। परिचय :- पारस परिहार निवासी : मेडक कल्ला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद...