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Tag: पवन सिंह पंवार

एक पंथ दो काज
हास्य

एक पंथ दो काज

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** कुछ लोग बड़े सयाने बनने लगे, कट कापी पेस्ट कर ज्ञानी बनने लगे हैं। अरे इतना ही ज्ञान यदि तुममें भरा है, तो संत महात्मा या राजनेता क्यों नहीं बना है। पैसा भी मिलता और सम्मान भी पाता, इस तरह एक पंथ दो काज हो जाता। परिचय :- पवन सिंह पंवार पिता : स्व. श्री रामेश्वर पंवार कार्यक्षेत्र : सहायक संपरीक्षक, संचालनालय स्थानीय निधि संपरीक्षा विभाग म.प्र. जन्म स्थान : नसरूल्लागंज, जिला- सिहोर (मध्य प्रदेश)। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
अच्छा हमें अब लगने लगा है
कविता

अच्छा हमें अब लगने लगा है

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छा हमें अब लगने लगा है, मार्केट जो फिर से खुलने लगा है, रहती थी जो वीरान गलियां, वहां भी अब रस होने लगा है। बच्चों को डर सा लगने लगा है, स्कूल खुलने की आहट जब से वो सुनने लगा है, अब तक मजे करे थे वो छुट्टियों में, अब दिल उनका घबराने लगा है। श्रमिकों का चेहरा खिलने लगा है, लाॅकडाउन खुलते जब से वो देखने लगा है, बैठे थे वो बेरोजगार अब तक घरों में, उन्हें फिर से अब कामधंधा मिलने लगा है। सच में सबकुछ पहले जैसा होने लगा है, मिलने जुलने का चलन फिर से जो बढ़ने लगा है, डर था इस वायरस का जो मन में भरा हुआ, वो भी अब कम होने लगा है। पर खतरा अभी कहाँ पूरी तरह टलने लगा है, फिर ना जाने क्यों इंसान कोरोना अनुरूप व्यवहार को छोड़ने लगा है, दूसरी लहर असावधानी और लापरवाही का ही परिणाम थी, क्या ये बात व...
हमें समझना है
कविता

हमें समझना है

पवन सिंह पंवार नसरूल्लागंज (मध्य प्रदेश) ******************** अब तो हमें समझना है, प्राण वायु के लिये कुछ करना है, जो कटने जा रहा है बकस्वाह जंगल, उसको हम सब को रोकना है। पर यह सब कैसे करना है, प्रश्न तो यह मन में उठना है, जैसे चला था वो चिपको आंदोलन, बस वैसा ही तो करना है। किसी एक तो बहुगुणा बनना है, फिर सब को एकजुट करना है, और इस तरह सामूहिक प्रयास से, इसे खत्म होने से रोकना है। पर प्रयास यहाँ तक ही सीमित नहीं रखना है, हमें इससे आगे भी काम करना है, क्यों कुर्बान कर दिये जाते हैं लाखों जीव जंतुओं के आश्रय स्थल, इस पर भी विचार करना है। हमें विकास का माॅडल बदलना सिर्फ मानव जाति पर ही फोकस नहीं करना है हो सके सभी का संतुलित विकास ऐसी रणनीति पर काम करना है। यह धरती है सभी जीव जंतुओं की भी, अतः सभी का ध्यान रखना है। यह धरती है सभी जीव जंतुओं की भी, अत...