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Tag: पवन मकवाना

सिसक रहे आज होली के रंग
कविता

सिसक रहे आज होली के रंग

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** सिसक रहे आज होली के रंग। महंगाई ने करदिया रंग बदरंग।। लाल रंग अब लहू बनके बह रहा पीत वर्ण कायर बन छुपकर रोरहा हरी-भरी वसुंधरा अब कहाँ रही? ऊंची-ऊंची इमारतें आस्माँ छू रही। रह गया बस अब होली का हुड़दंग महंगाई ने कर दिया रंग बदरंग।। बच्चों की पिचकारी औंधे मुंह पड़ी, बिन पानी-रंग टंकी शुष्क सी पड़ी। महंगाई-मार रंग फुहार फीकी पड़ी, फागुनी बयार मन्द-शांत चल पड़ी। बिन पानी कैसी होली पिया के संग। महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग पावन पर्व अस्त-व्यस्त हो रहे , पर्वों की गरिमा क्षत-विक्षत रो रहे। वन-उपवन टेसू के फूल मुरझा रहे खाद्य पदार्थ-भाव आस्माँ छू रहे। मथुरा भी गाये बिन होली सूने अंग महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिक...
औरत
कविता

औरत

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** पराधीनता का है नाम न उसकी कोई पहचान न अपना कोई काम उसका कुछ अपना नहीं सोचा हुआ सपना नहीं जन्म से मृत्यु तक अधीन अन्यथा है वह श्री विहीन है देवी, पूज्यनीया और जननी, जो अपने लिए नहीं, औरों के लिए जीती है। आंखों में आंसू लेकर, औरों को खुशियां देती है। ममता, त्याग, दया की देवी पल-पल, जीती-मरती है। पढ़ी-लिखी होने पर भी, पुरुषों से कम आती जाती है। दहेज के कारण आज भी, भ्रूण हत्या का शिकार होती है। बचपन से लेकर मरण तक जीवन भर चुप रह सहती है। घर-परिवार को संभाल कर, देश की बागडोर भी संभालती है। पर, परतंत्रता में ही उसका अस्तित्व है। स्वतंत्र होकर तो और भी परितंत्र है। वो बेटी, बहना, पत्नी, मां बनती है, तभी तो औरत का गहना पहनती है। आदर्श की बलिवेदी पर वही आग में झोंकी जाती है पवित्रता की आड़ में, वही छली जाती है। सांसें ...
नई सुबह आ रही
कविता

नई सुबह आ रही

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। खेत की माटी बोल रही, ओ कर्मवीर उठ जाओ। प्राणों में अब हुंकार भरो, मेहनत की फसल उगाओ। नई रोशनी आरही अंधविश्वास दूर भगेंगे नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। जीत उसे हासिल होती, आशा के बल पर जीते। बाधाओं को दूर हटाके, वे नील गगन छू लेते। कर्म-आँधी चलरही श्रम- फूल खिलेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। सारे बंधन तोड कर, नई ऊर्जा से भर दें। खौफ का साया जहाँ, हौंसलों के पंख दे दें। नई लहर आ रही आत्मविश्वास जगेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे। चुनौतियों का सामना करो, भाग्य भरोसे बैठो नहीं। पुरुष हो पुरुषार्थ करो , बाधाओं से डरो नहीं। कर्मभूमि सज रही ज्ञानदीप जलेंगे। नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एव...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** मकर संक्रांति का पावन पर्व। हम भारतीय करते इस पर गर्व। तिल गुड़ की है इसमें मिठास दूर करती रिश्तों की खटास। तिल- गुड़ रखते काया निरोग खाओ-खिलाओ तिलगुड़-भोग। प्रेम-भाव से खूब उड़ाओ पतंग हिल-मिल रहो सभी के संग। गुड़ से मीठे रिश्ते महकते रहें परस्पर सम्बन्ध चहकते रहे। जीवन में खुशियों का रंग भरदे वासंती खुशनुमा उल्लास भरदे। रखो ऊँचा उठने की स्वकामना दूसरों को आगे बढ़ने की प्रेरणा। संक्रांति पर सभी को शुभकामना उउन्नति सफलता यश की कामना ।।   परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक्षिका) प्रकाशन कृतियां - तीन काव्य संग्रह - राष्ट्र को नमन...
मान
लघुकथा

मान

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** अरी  सुलक्षणा कल "हरतालिका तीज" है, याद है ना। अरे माँ मैं तो भूल ही गई थी। अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया, ठीक है कर लूँगी। "अरे माँ आपने अभी तक चाय नहीं बनाई सुबह-सुबह किसको फोन करने बैठ गयीं?" सीमा अपनी माँ के गले में हाथ डालते हुए बोली।" तेरी भाभी को ही फोन लगा रही थी, उसे याद दिला रही थी कल हरतालिका तीज है, व्रत कर लेना "और भाभी ने कहा होगा ठीक है मैं कर लूंगी। "हां तेरी भाभी बोल रही थी कि माँ मैं तो भूल ही गई थी अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया।"  देख मैं उसे याद दिला देती हूं तो निधि बड़ी खुश हो जाती है। पर माँ आपको पता है न कि भाभी व्रत नहीं कर पाती हैं, उन्हें भूख सहन नहीं होती है। फिर क्यों याद दिलाती हो? अब उसकी इच्छा होगी तो कर लेगी नहीं तो कोई बात नहीं है। मैंनें अपना कर्तव्य पूरा कर दिया। पर देख बेटा मेरा मान तो रख लेती है। कभी म...
आखिर कब… ?
कविता

आखिर कब… ?

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** यह दुराचार कब खत्म होगा? कब तक बेटियाँ असुरक्षित रहेंगी? मासूम बेटियाँ कब तक इन दरिन्दों का शिकार होती रहेंगी। लगता है हर जगह हैवान घूम रहे हैं। जो बालाओं का अपहरण कर रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं, नोच नोच कर खा रहे हैं, बोटी-बोटी काट रहे हैं। क्या बेटियां घर से बाहर न जाए? स्कूल पढ़ने न जाए, खेलने न जाए? आखिर कब तक? कब तक वे पीड़ा सहती रहेंगी? कब तक वे अत्याचार का शिकार होंगी? उनके हिस्से की पीड़ा कोई मिटा तो नहीं सकता। जो भोगा है उन्होंने उसे मस्तिष्क से हटा तो नहीं सकता वे बेचारी कब तक शर्म से मुंह छुपाती रहेंगी कब तक दर्द से कराहती रहेंगी ? इन दरिंदों को फांसी क्यों नहीं देती ? सरकार उनके हाथ पैर क्यों नहीं काटती सरकार कहती है पर करती क्यों नहीं? सरकार की कथनी करनी कब एक होगी आखिर इन दरिंदों को फांसी कब होगी आखिर ...