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जरा ठहरों…
कविता

जरा ठहरों…

निशा कुमारी गोपालगंज (बिहार) ******************** जरा ठहरों.....जरा ठहरों..... इस भाग -दौड़ की जिंदगी में, तुम कहाँ भागे जा रहे हों.... हरदम तुम क्यों बैचेन रह रहे हों कहि तुम खुद को तो भूलते नहीं जा रहे हों.... जरा ठहरों....जरा ठहरों..... और एक बार तुम सोचों कहि तुम इस भाग-दौड़ के जिंदगी में, अपनों को तो नहीं खोते जा रहे हों.... जरा ठहरों....जरा जरा ठहरों.... तुम इस तरह दिमाग में टेंशन लेकर जैसे-तैसे जिए जा रहें हो... क्या तुम अपनों के साथ, बैठ कर दो पल प्रेम की बातें कर रहें हों..... जरा ठहरों.... जरा ठहरों.... चार दिन की इस जिंदगी को जिंदादिली से जिओ.... जो पीछे छूट गए हैं उसे साथ लो खुद हँसो, दूसरों के भी जिंदगी में खुशियों लाओ, ये न सोचों की तुम अपने जीवन में पीछे छूट रहें हो..... जरा ठहरों....जरा ठहरों..... इस भाग-दौड़ की जिंदगी में तुम कहाँ भागें जा रहें हों.... हरदम तुम क्...