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Tag: निर्मल कुमार पीरिया

रंग जोगिया
कविता

रंग जोगिया

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जोग रंग में तरबतर, मलंग हैं बीच बाज़ार, चढ़े ना रंग दूजा कोई, जग डालें रंग हजार.. लाल, हरा हो या पीला, ग़ुलाल रंगों या अबीर, रंग जोगिया में जो रंगा, वो ही खरा पीर फ़क़ीर... मोह में चाहें तन रंगे, करे मलयज भाल बसर, अतरंगी मति पर ना होवे, सतही सतरंगी असर... नित्य भिगोये देह नीर से, कब डालें चित्त नीर, चित्त ढाह जो ढह गया, उबर जायेगा भव तीर... तन रँगे वो रंगरेज हैं, मन का रंगरेज तो पीर, तन मन दोनों ही रंग लिया, वो ही 'निर्मल' फ़क़ीर... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
ज़िंदगी… “अनछुए लम्हें”
कविता

ज़िंदगी… “अनछुए लम्हें”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अधखुले लबों में छूपी, अनकही, कहानियां, हर्फ़ों को हैं, तरस रही, अनजानी, मजबूरियां... कहने को तो, हैं बहूत, लब, लरज जाते मगर, ढल नही पाते, शब्दों में, बह जाते, पाती पे मगर... बिखरें, भीगे, उन हर्फ़ों को, क्यो ना, मोती सा, सहेज ले, खो ना जाये, पाती भीगीं, उसे वक्त से, समेट ले... बैठ, मिल हम, उन पलों को, ख़ुद में, क्यो ना, टटोल ले, अनछुए, लम्हों को, क्यो ना, आओ फिर, उकेर ले... उत्कीर्ण करे, दास्तां नई, अधर पँखुरी, जरा खोल दो, उर छुपे, भावों को फिर, सहज, प्रेम स्याही, से घोल दो... धर दो, अधरों को, अधर पर, शब्द, सांसो में, घुल जाएंगे, लब लरज़ते, गर, कह ना पाये, धड़कनो से, लिख हम जाएंगे... सत्य सँग, वो सुंदर भी होगा वही भावों की, गँगा बहेगी, सहेजेंगे, प्रतीति जटा में, चेतना, "निर्मल" शिव सी होंगी... होगी ना कोई, दास्तां अधूरी, स्वरुप इसक...
बस हैं भटकन
कविता

बस हैं भटकन

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आ खड़ा हूँ, आज फिर मैं, ज़िंदगी तेरे, तंग गलियारे में, ताक रहा हूं, तन्हा अम्बर, उलझा जलते बुझते तारों में... भटक रहे हैं,वलय में अपने, दिखते हैं, यो तो पास-पास, चाहें भी तो, मिल नही पाते, कोई गुरुत्व नही,आस-पास... नही कोई, संभावना उनमें, स्याह, प्रहर बस,ख़ालीपन, निर्वात में नही जीवन ऊर्जा, पर हैं कितना चमकीलापन... छूपा हुआ हैं स्रोत कही दूर, तू सोख रहा ,रोशनाई को, चमक भर तुझमें, हैं उसकी, बस वक्ती फ़लक सजाने को... बंद होते पल्लों के ही फिर, अंनत जहां यो रोशन होगा, विलीन हो जायेगे तारे भी, गलियारे में, तन्हा मन होगा. परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
पल्लों के हैं आर-पार
कविता

पल्लों के हैं आर-पार

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फासले मिलों के हैं वहां, होते हैं तय भर पल में, विचारों को मिलता हैं सुकू, उजालों संग विचरने में... अंकों का वहां कोई मोल नही, जाती हैं पलक झपकने में, बिन हवा ही बह जाते हैं हम, रूहानी उस शून्य जहान में... नही जिस्मों का कोई काम हैं, प्रतिरुप प्रतिम्बित तारों में, परिलक्षित होते वो पास पास, होता हैं भम्र झिलमिलाने में... ऊँचाई हो या हो गहराई, नाप नही कोई, उस पार में, बसी हैं सूक्ष्म-सोच-सीमित, बंद पल्लों के, इस पार में... धूल धसरित परतों के बीच, रौशनी ही टिमटिमाती हैं, कहने को है अबोल जुबा, पर नजरों से बतियाती हैं... क्या मायने है, उन शब्दों के, जो सिर्फ, कहे सुने जाते हैं, निर्वातमय हैं जहां तो क्या, मन-मन के करीब रहते है... रौशनी सी, गति इस मन की, परे मगर, नही ध्वनि मेल हैं, झांक के देखो पल्लों के पार, स्याह नही, परतों...
सृष्टि की जननी
कविता

सृष्टि की जननी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हो! पंचतत्व की वाहिनी तो, इस सृष्टि की जननी भी तुम, हर भाव समाहित हैं तुझमें, नव रसों की पोषनी भी तुम... बहता हैं निर्मल आब तुझमे, (वात्सल्य भाव) मन पुलकित हैं सुन रागिनी, (लोरी/ममत्व) हर ताप छूपा उर में महकी, (सहनशीलता ) थिरकी बन कभी तु मोरनी... (अर्पण/समर्पण) सप्त रंगों की तूलिका तुम, (निपूर्णता) उकेरे आँगन बनी दामिनी, (प्रगतिशील) स्याह हुआ, छाया तम तो, (मुसीबत) खिली बन तू फिर चाँदनी... (सृजनशील) नारी हो! या प्रकृति हो तुम, तू ही अवनि, तू ही जननी, कृति अंनत की, सबसे सुंदर, तुम ही हो, वो जीवनदायिनी... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
ज़िंदगी…”तन्हा हैं”
कविता

ज़िंदगी…”तन्हा हैं”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हैं फ़लक का नूर तू, झलक दूर से देता हैं, हो वास्ते रुबरु तेरे, वो दरीचा सवाँर देता हैं... करता है गुफ़्तगू वो, ख़ामोश सूनी निग़ाहों से, अरमा लिये पहलू में, सर-ए-शब गुजार देता है... माना कि फासले हैं मगर, तसव्वुर पे कहा जोर, मीलों की दूरियां सही, वो शिद्दत से घटा देता हैं... रोशनी बिखरीं जहान, उर चित्त छाया अंधेरा हैं, शब हुई शबनमी आज, तन्हा वो दिखाई देता हैं... हैं नाज क्यू जो आब हैं, फौरी हुआ ये इश्क़, शब भर रहा तू अर्श, सहर गुम दिखाई देता हैं... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
आ अब लौट चले …
कविता

आ अब लौट चले …

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना शेष रहा कहने सुनने को, क्यो व्यर्थ ठिठौली करते हो ? गर जाना ही था दुर समय से, क्यो पल पल जीते मरते हो ? हर पग पर बिछते स्वप्न मेरे, क्यो राह कंटीली करते हो ? चुन रहा नादा था कंकर पत्थर, क्यो बाण शब्द से भेदते हो ? था हिमशिखर-सा मौन ओढ़े, बन रविकर क्यों बिखराते हो ? हिम विचरता अपने जल में ही, तत्वों को क्या पृथक कर पाते हो? श्रद्धा-भक्ति-तप और मुक्ति, जीव दर्शन किसको समझाते हो ? प्रेम-तृषा प्रथम जग में प्रियवर, पुर्ण आहुति विलय तभी पाते हो... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
ज़िंदगी…”एक मधुशाला”
कविता

ज़िंदगी…”एक मधुशाला”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चकाचौंध हैं मदिरालय में, बरपाते हंगामा हमप्याला, खींचतान पैमानों का ज़ोर, बिखर रही हैं जीवन हाला, बन साकी वो भटक रहा हैं, ख़ातिर औरो खुद को भूला, भर-भर मधुघट हैं पिला रहा, पर कम ना होती तृषा हाला... छलक रहे पैमानें फिर क्यू, रिक्त रहा है उसका प्याला? बज़्म भरी हैं रिंदों से पर, हैं तन्हा क्यू वो मतवाला? घुट घुट सब पी रहे पर, बुझती नही उर की ज्वाला, और और का शोर चहु ओर, रहा प्यासा क्यू फिर मतवाला? मन्दिर भटका मस्जिद छाना, कहलाया तब भी पीने वाला, लाख जतन किये समझाने को, उतरीं नही पर मन से हाला, उफ़न रही जीवन वारुणी, पर अब शेष रहा ना कुछ पीने को, ज्ञान सुरा के दो घुट लू चख मैं, मिल जाये कही "निर्मल" मधुशाला... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : ...
ज़िंदगी…”एक दीप तेरे दर रख आया”
कविता

ज़िंदगी…”एक दीप तेरे दर रख आया”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन प्रीत माटी को गूंथ, प्रेम रंग से दिया रँगा, मिलन आस की बाती धर, चाहत से था रहा भीगा... गढ़ रहा हूं प्रेमदीप को, अरमानो के नीर से, उलझनों की अमा मिटाने, रौशन करता पीर से... सह तपन तू रोक रहा है, परवाने को मिटने से, आह उपजती एक साथ ही, नादा अंग सामने से... कर उजाला तम से लड़ता तू, वास्ते औरो जलता आया, तले तेरे भी उजियारा हो, बन दीप तेरे दर जल आया... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
ज़िंदगी…”तू रुक, वक्त को जाने दो!”
कविता

ज़िंदगी…”तू रुक, वक्त को जाने दो!”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दरिया-ए-वक्त पर जोर नहीं, वो बहता अपनी रवानी में, अच्छी हो या बुरी सोहब्ते, ना बिसराता कभी गुमानी में, तू ही थम जा! दम भर रुक जा! वो तो बंधा उसूलों से, हैं चार प्रहर,बस तेरे वास्ते, ना गुम हो किसी कहानी में... लम्हा लम्हा दरक रहा हैं, जलती बुझती यादों के संग, रुक रुक कर कहती हैं साँसे, पल छिन जी ले मेरे संग, लहर बड़ी हैं उठती गिरतीं, ना जाने कब किस ओर बहे, कल की फिर कल को कर लेंगे,आज तू बह जा मेरे संग... चलते चलते आ निकले दूर, मंजिल का फिर भी पता नही, तकते तकते शमा गुम हुईं,परछाई का कही कोई पता नही, चलने ही चलने में राहे , पता नही कब कहा गुम हुई, मन भर जी ले, उर की सुन ले, कल क्या होगा पता नही... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कवि...
ज़िंदगी…बिखरी सी
कविता

ज़िंदगी…बिखरी सी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी बंदगी हैं तेरे ही वास्ते, चाहें हमने तुझसे कहा नही, उस सजदे में बस तू ही था, जिसे तूने कभी नवाजा नही... मेरी ज़िंदगी का हर इक सफा, तेरे रंग से हैं सजा हुआ, ये बात कुछ हैं अलग मगर, कभीं तूने उसको छुआ नही... हैं चिराग़-ए-ज़िंदगी जल रहे, अरमा हुए हैं धुँआ धुँआ, बहकी हवाओं से कह दो जरा, अभी घर हुआ रौशन नही... ये बहार-ए-गुलशन और् ये गुल, मेरे वास्ते थी नही कभी, वो खिला भी तो हैं उस दरख़्त,आंधियों में रहा जो थमा नही... तोहमत लगी हैं ये हम पे कि, कभी आसमा को नही छुआ, परवाज मन कि हैं जाने क्या, थे पंख जिसको नसीब नही... हर बात तूने ही थी कही, हर बार दिल ने तेरी ही सुनी, अब मन की तू भी ले सुन जरा, रहें ख़ुद से कोई गिला नही... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर,...
विरह वेदना
कविता

विरह वेदना

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में सर्वश्रेठ रही कविता) दीप-बाती बन, जल रही मैं, तकती सूनी भीतो को, प्रीत-दीप, रौशन कर बैठी, तकती बरबस राहों को... विरह-अग्न में, तप रही, हुक उठती, हिय-विकल हैं, निर्झर-नैना, तोड़े बंध सारे, श्वासों का, आवेग प्रबल हैं... अस्त-बिंदु हैं, व्यस्त-वसन हैं, सुधि रही ना, तन मन की, उलझी अलकें, स्थिर पलकें, ताक रही,छवि साजन की... कैसे कह दु ? क्या तुम मेरे हो, बानी को मैं, तरस रही, तपता तन हैं, भीगा मन है, बिन सावन मैं, बरस रही... अरमानों की, सेज सजाएं, भूलि-बिसरी, महकाए रही, कंपित अधरों से, गीत मिलन के, होले से, बुदबुदाए रही... हर आहट पर, आस जगे हैं, तरसु भुज वलय, समाने को सुरभित-मुकलित, यौवनं चाहें, रंग "निर्मल" घुल जाने को... पल पल, हर पल,...
कितना ख़्याल वो रखता हैं
कविता

कितना ख़्याल वो रखता हैं

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी हर चीज, सहेज कर रखता हैं, ये ख्याल भी हैं कि, मन मे बसाये रखता हैं... चाहा जब करना बातें, बैठ सामने शीशे वो, मन भर ख़ुद ही से, पहरो गुफ़्तगू करता हैं... मेरा हर ख्याल सहेज कर रखता हैं। मेरा हर लम्हा, सहेज कर रखता हैं, मलमली सी वो यादे भी, दिल मे बसाये रखता हैं... संगी सतरंगी लम्हें को, कभी रुठे,भीगे हर पल को, पलछिन मुस्काते लम्हों संग, तरतीब से वो पिरोता हैं... मेरा हर वक़्त सहेज कर रखता हैं। मेरा हर हिस्सा, सहेज कर रखता हैं, महकी बाहें,बहकी बातें, शरमाती वो मदमाती रातें... अलकों में अटके चाँद का, साँसों में महकी साँस का, रक्त सीप में टके जो मोती, नखशिख,नजरो से सजाता हैं.. मेरा हर रंग रूप सहेज कर रखता हैं। मेरा हर वक़्त सहेज कर रखता हैं। मेरा हर ख्याल सहेज कर रखता हैं। मेरी हर चीज ,सहेज कर रखता हैं... परिचय :- निर्मल कु...
सवाल क्यूं हैं
ग़ज़ल

सवाल क्यूं हैं

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गर हैं तलाश-ए-वजुद तो, इतना बवाल क्यूं हैं, एक सांस ही तो ली हैं, हजार सवाल क्यूं हैं... हैं हसरत-ए-परवाज और हौसले बुलंद भी, जब आँधिया भी साथ तो, गगन गेरो सा क्यूं हैं... हो मुबारक-ए-अजान औ सज़दे नबी के तुम्हें, हैं ख़ुदाई इश्क़ मेरा, जहांन को शिक़वे क्यूं हैं... दौर-ए-ज़ोर-ए-आज़माईश, ख़ुदी से हैं "निर्मल", हैं हवा भी सँग लौ फिर, ख़ौफ-ए-स्याह क्यूं हैं... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, ...
मायने यारी के
कविता

मायने यारी के

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बिछड़ गये हम साथी तो क्या, मन मे कोई पीर नही, याद तुम्हें करते ना हो हम, ऐसी कोई रात नही... संग बतियाए हर इक लम्हा, भुला सको तो हम जाने, बरसों का था संग हमारा, कल परसो की बात नहीं... यारी का दम भरते थे तुम, यारी के है मायने क्या, संग यारो के जिंदा है हम, समझे क्यो ये मर्म नही... अगर कभी रुसवा हो जग से, याद हमे कर लेना तुम, हाथ बढ़ा थामेगे तुमको, "निर्मल" मन की पीर यही... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...
अश्क
कविता

अश्क

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल मे जो बसा है वो, आँखों मे दिखने लगा, पोरो पे आ छुप जाता, क्यू मुझमे बसने लगा..? कब तक सहेज रखूंगा? अब ज्वार सा उठने लगा, साहिल को आतुर मौजे, बन भवँर,हैं घुमड़ने लगा... समंदर दबा रखा था, बरबस छलकने लगा, ये आब था रुका-सा, तुझे देख,फ़फ़कने लगा... हैं खता क्या जो उसकी? हो खफा दुर जाने लगा, था मर्ज चंद हर्फो का, हकीम आज़माने लगा... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
तू ही
कविता

तू ही

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हाँ ! तू है बसी, अंतर्मन की गहराईयों में, श्वेत-धवल-पारदर्शी, पावन रुप में... हाँ, तू ही है, आत्मा स्वरूप धारण कर, छेड़ देती मन के तार, दैवीय राग मे... हाँ ! वो तू ही है, भटकता, ढूंढता जिसे, अंधेरो के पार बसती हैं, रब स्वरुप में... हाँ! तु ही तो है, "मैं" को तज "हम" में समाई, प्रकाशपुंज सदृश्य, सत्य मूर्त रुप मे... हाँ! तेरा ये तेज मुझे, बाँधता हैं माया इंद्रजाल में, विलीन हो जाता, मैं ! नीर सम "निर्मल" रूह रँग में..... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
सत्य बानी
कविता

सत्य बानी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा मन अटका जा किली से, ते बच गया दो पाटन झमेले से, जब रँग लिया खुद तेरे निर्मल रँग, ते क्यो कर भागें मन रँगरेज से... *** क्या सँग तेरे आया इस जग में, ते ले जायेगा क्या सँग इस जग से, बिन पट आया तू किया रुदन बहुत, ते काहे मोह राखे तू इस मलमल से... *** ये चंद लम्हों की ही कहानी हैं, ते पढ़ ले मन भर फिर रवानी हैं, जब मसि घुल जायेगी दृगजल से, ते बन्द पौथी अपनो ने सजानी हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
चलते रहो
कविता

चलते रहो

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हैं सामने, खुला नील गगन, फिर क्यों हैं तू, थमा हुआ? खोल अपने अरमानों को, ले भर, आसमा, फैला हुआ... जब राह तन्हा, संग तेरे तो, क्यो तुझें, मंजिल की फ़िकर, हैं सूल भरी, पगडंडी तो क्या, तू चल, एकाकी, काहे का डर.. तेरे वजुद की, तुझको तलाश हैं, तेरा जमीर ही, तेरा नफ़स हैं चलते रहो, ना देख कदमों को, तेरा सफ़र, तुझ तक ही खत्म हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी मे...
हकीकत-ए-जहाँ
ग़ज़ल

हकीकत-ए-जहाँ

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिकवा उन्हें हैं कि, अब सजते नही बाजार, अब दौरे-ए-उम्र में, वो कशिश कहा से लाये... आती थी महक जिस, दरगाह से अबतल्क, क्यु न चादर-ए-गुल पर, लोबान चढ़ा आये... वक्त ही सिखाता है, फ़लसफ़ा ज़िन्दगी का, भरा है हाथ लकीरों से, कभी काम ना आये... माना कि हूँ इंसा, ओर गलतियाँ फ़ितरत मेरी, कोई उस ख़ुदा को भी, जरा शीशा दिख आये... इतनी भी बेतकल्लुफ़ी, ठीक तो नही हैं "निर्मल", दाम-ए-क़फ़स हैं कम, वो तिजारत ना कर आये . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कह...
तू ही नारी तू ही प्रकृति
कविता

तू ही नारी तू ही प्रकृति

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हो! पंचतत्व की वाहिनी, सृष्टि की, तू ही जननी, भाव समाहित हर तुझमें, नव रस की, तू ही पोषनी... बहता निर्मल आब तुझमे, मन पुलकित सुन रागिनी, ताप छूपा उर में, महकी, थिरकी बन कभी मोरनी... सप्त रंगों की तूलिका तू, उकेरे कानन बन दामिनी, स्याह हुआ, छाया तम तो, खिली बन तू फिर चाँदनी... नारी हो या प्रकृति हो तुम, तू ही अवनि, तू ही जननी, अंनत की हैं कृति सुंदर तू, तू ही हैं वो जीवनदायिनी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
अभिलाषा मन की
कविता

अभिलाषा मन की

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम बनो परछाई मेरी, संग चले हम उम्र भर, या आईना ए रूह बनो, निहारु तुमको उम्र भर. श्याम घन, घटा ना होना, उमड़ घुमड़ कभी हैं आती, बन समीर निर्विघ्न तू बहना, साँसों में बसना उम्र भर.... कुमुद कमलनी सी खिलना, महकेगा जर्रा जर्रा, बन पाखी कलरव तुम करना, चहकेगा जर्रा जर्रा. बदली धुंध सा ना होना, नैन भृमित करती है जो, बन वाचाल सरिता तू बहना, खिल उठेगा जर्रा जर्रा... श्रद्धा हो कामायनी की तुम, महकी ग़ालिब ए नज्म भी या छलकी खय्याम ए रूबाई, बन साकी, बहकी मधुशाला भी. तुलसी की रतना ना होना, बने जोगी, पर अब जोग कहा, बन ख्याल, उर चली आना, ले कलम, गुने गीत "निर्मल" भी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्र...
यक्ष प्रश्न
कविता

यक्ष प्रश्न

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चित बढ़ा उद्वेग हैं, सोच कर व्याकुल हैं... संवेदना को कर परे, भाग रहा इंसान है... धाम है ना विश्राम है, ना तृष्णा पर लगाम है... ओर है ना छोर है, बस!निरन्तर दौड़ है... अंत है! वो जानता,पर मान कर ना मानता... इन्द्रियों के वशीभूत, बस! दौड़ रहा इंसान है... सिन्धु की प्यास लिये, क्षितिज की आस लिये... मरीचिका के जाल में उलझा हर नादान है... क्यों और किसलिये, यक्ष प्रश्न हैं खड़ा... अबूझ हर सवाल है, बस!वक्त ही बलवान हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
तेरी ख़ातिर
कविता

तेरी ख़ातिर

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुदी को, पढ़ रहा हूं मैं, तुझे,पाने की ही खातिर, हर चोट सह, सजता रहा, मुरत सा, जग ख़ातिर, है वक्त भी, हैरान हुआ, प्रहर विलीन जो मुझ में, सौदा किया, रातो से दिन, रोशन हो, की खातिर... बचा रखे है, लम्हें कुछ तुम्हें, सुनने की ही खातिर, चुराये हैं, सपन भी कुछ, सँग रमने, की ही खातिर, जो देखे ख़्वाब, खुली आँखों से, खो ना जाये पलको में, सोया नहीं, तब से हैं वो मूर्त, करने की खातिर... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
मेहनतकश
कविता

मेहनतकश

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना ठौर कि हैं, आज फ़िकर, कल का भी,ना था कोई गम, चल पड़े ले पल के स्वप्न, कल की फिर, क्यो सोचें हम... मेहराब बन के, क्यो सजे, जब तृप्ति हो बन नीव हम, आज यहां, पल जाने कहा, निर्माण नव की शान हैं हम... ये आशिया तुम्हें ही मुबारक, हमें हैं यही, जहाँ का सुकू, हूँ ओढ़ता, खुला नील गगन, मिला जमी पे,गोदी सा सुकू... तन खारा सिंधु साथ मेरे, हमें जहाँ से, कोई आस नही, दिन भले हो मशक़्क़त भरा, पर रात हम सुकू के धनी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...