रंग जोगिया
निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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जोग रंग में तरबतर, मलंग हैं बीच बाज़ार,
चढ़े ना रंग दूजा कोई, जग डालें रंग हजार..
लाल, हरा हो या पीला, ग़ुलाल रंगों या अबीर,
रंग जोगिया में जो रंगा, वो ही खरा पीर फ़क़ीर...
मोह में चाहें तन रंगे, करे मलयज भाल बसर,
अतरंगी मति पर ना होवे, सतही सतरंगी असर...
नित्य भिगोये देह नीर से, कब डालें चित्त नीर,
चित्त ढाह जो ढह गया, उबर जायेगा भव तीर...
तन रँगे वो रंगरेज हैं, मन का रंगरेज तो पीर,
तन मन दोनों ही रंग लिया, वो ही 'निर्मल' फ़क़ीर...
परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...