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Tag: नरेंद्र शास्त्री

ओ साहेब इधर-उधर मत देख
कविता

ओ साहेब इधर-उधर मत देख

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** ओ साहेब इधर-उधर मत देख। चांद पे भारत जाता देख।। देख सोमनाथ की शोभा न्यारी। वृंदावन एक नगरी प्यारी।। कृष्ण को माटी खाता देख। चांद पे भारत जाता देख।। उत्तर में देख हिमालय को। अमरनाथ केदारनाथ शिवालय को।। दक्षिण में शिवलिंग राम बनाता देख। चांद पे भारत जाता देख।। गंगा यमुना की निर्मल धार देख। क्षमाशील मेरा हथियार देख।। यही सूरज को पहली किरण बरसता देख। चांद पे भारत जाता देख।। परिचय :- नरेंद्र शास्त्री निवासी : कुरुक्षेत्र घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
आंखों की मर्जी
कविता

आंखों की मर्जी

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है। बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।। सूरज ढला चांद निकला तारे चमके। दिन की तो बात छोड़िए ये आंखें अब रातों में भी जगी है।। पानी पिया शरबत पी चाय तक पी डाली। ये कैसी प्यास है जो अभी तक लगी है।। तेरे अल्हड़ स्वभाव में नादानियां बहुत हैं। तुझे समझाने में मुझे एक मुद्दत लगी है।। वक्त है सावन का और हवा भी ठंडी चली है। पता करो जंगल में यह बेवफाई की आग क्यों लगी है।। तेरा मिजाज भी मेरी हरकतों से मिलने लगा है। यह तेरी हंसी मेरी मुस्कुराहट से मिलने लगी है।। जिंदगी ने छीना मुझसे मेरा चैन मेरा सकुन मेरे सपने। यहां तक कि मेरी सांसे भी ठगी है।। आंखों की भी अब अपनी मर्जी होने लगी है। बात खुशी की हो या गम की हर बात पर रोने लगी है।। परिचय :- न...
मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा
कविता

मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा

नरेंद्र शास्त्री कुरुक्षेत्र ******************** मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा। दर्द मेरे जख्मों का होगा तेरा अल्फाज होगा।। तेरी बेवफाई पर कई सवाल उठेंगे । भरी महफिल में मैं तुझे दोषी बनाऊंगा।। न तेरे पास फिर इसका कोई जवाब होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। यह बेरुखी यह अकड़पन सब धरी रह जाएंगी। बस याद मेरी तुझे रात भर सताएगी।। अकेले में मेरा तकिया भी न तेरा हमराज होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। हम तो नजाकत और सब्र के सागर में डूबे हैं। बता तूने कब मनाया है जब भी हम रूठे हैं।। मरते दम तक भी तुझसे मनाए जाने का ख्वाब होगा। मेरी गजलों में तेरे गुनाहों का हिसाब होगा।। बस और ज्यादा जख्मों को कुरेद कर क्या कहूं। अब कलम श्याही के तौर पर मांगती है लहू।। जाने से पहले तेरी यादों की ओढ़नी मेरा लिबाज होगा...