Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: धैर्यशील येवले

फुटपाथ
कविता

फुटपाथ

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** देख ले वो जिंदा है या मुर्दा है जो शख्स सोया है फुटपाथ पर कोई रोता है कोई मुस्कुराता है जिंदगी, मौत दोनों है फुटपाथ पर कोई खेल रहा कोई बेच रहा है अमीरगरीब बच्चा है फुटपाथ पर तंग गलियों में जो नही बिकता है सबकुछ बिकता है फुटपाथ पर गांववाले न जाने शहर की बात शहर जीता मरता है फुटपाथ पर बस यही एक बात सुकून देती है नस्लभेद नही होता है फुटपाथ पर। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं,...
मत्स्य न्याय
कविता

मत्स्य न्याय

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कमसिन भेड़ो का गोश्त चाव से खा रहे है भेड़िए आजकल रोज बेख़ौफ़ दावतें उड़ा रहे है भेड़िए डर लगे भी उन्हें तो किसका रखवाला दोस्त बना रहे है भेड़िए भेड़ें किस पर करे भरोसा उनकी खाले ओढ़ रहे है भेड़िए गड़रिया है गफलत में ये जान रहे है भेड़िए शहर में भी है जंगल का कानून भलीभांति समझ रहे है भेड़िए परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ ...
अजातशत्रु
कविता

अजातशत्रु

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पुराने शहर के बगीचे में सजावट के लिए वह तोप रखी है, पता नही उसे अपने इतिहास पर गर्व है या शर्मिंदगी। पास की क्यारियों में उगे फूलों के पौधे तोप से डरते नही है, कई बार वे अपनी सुखी पत्तियों को तोप पर उछाल देते है, हवा के साथ शरारत करते हुए। एक बालक रोज आकर खेलता है तोप के साथ उसे तोप को घोड़ा बना कर उसकी सवारी करना अच्छा लगता है। उसने अपनी चॉक से कई कपोत बना दिये है, तोप पर। कभी कभी वह गाते गुनगुनाते फूल तोड़ कर भर देता है, तोप के मुँह में। फिर दूर खड़ा होकर मुस्कुराते निहारता है तोप को, उसे पिता की कही बात याद आती है, ये तोप उगलती थी आग के गोले शत्रुओं पर। वो सोचता है अब ये कैसे उगलेगी आग के गोले, मैंने तो इसका मुँह भर दिया है फूलों से। एक प्रश्न उसे बेचैन किये हुए है। क्या होता है ??? शत्रु। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९...
जंग जरूरी है
कविता

जंग जरूरी है

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जंग जंग जंग जरूरी है, जंग स्वाभिमान के लिए। परंतु, जंग, छीन लेती है मुस्कान। टूट जाता है घोसला चिड़िया का जो ऊंचे चिनार की टहनियों पर बना है। हो जाता है पानी सुर्ख नदियों का, पिघलती है बर्फ जाड़ो में भी, और रिसने लगती है आँखे, बून्द बून्द। जंग जंग जंग जरूरी है, जंग स्वाभिमान के लिए परंतु, टूटी चूड़ियां खनका नही करती सिंदूर की लाली मांग की हद तोड़ कर उतर आती है, वर्धियो पर कस के चिपक जाती है वर्धिया बेजान जिस्मो पर। फिर खो जाता है सिंदूर अनंत में हमेशा हमेशा के लिए। अबोध बचपन लाचार बुढापा बेबस जवानी टुकुर टुकुर ताकते रहते है उन बक्सों को जो दूर कही से लाया होता है घर के आंगन में। सपने व सिंदूर रिसते रहते है उसकी किनारों से बून्द बून्द। जंग जंग जंग जरूरी है, जंग स्वाभिमान के लिए परंतु, ढक लेते है धूल के गुबार गेंहू की बालियों को भर जाती है ...
बताओ मुझे गौतम
कविता

बताओ मुझे गौतम

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हे गौतम बताओ मुझे आत्मबोध पाना कितना सरल है। बताओ मुझे वे गूढ़ रहस्य जो तुमने जाने बोधी की शीतल छाया में अनेक दैहिक प्रयोग कर। बताओ मुझे वे उतार चढ़ाव वे अंधकूप जो मन के अतल गहराई में तुमने देखे, बताओ कैसे प्रकाश से भर दिया उन्हें। बताओ मुझे कैसे दया व क्षमा से शरणागत रिपु का किया जाता है सत्कार। बताओ मुझे कैसे आत्ममुग्धता नही होती आत्मबोध। बताओ मुझे बताओ वो पथ जो गौतम से आरंभ हो कर तथागत बुद्ध पर समाप्त होता है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान आप भी अपनी कविता...
परम
कविता

परम

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** तप्त जीवन पर डाल कर तूने जल लेकर शरण मे अपनी पी लिया मेरा गरल मैं था व हूँ एकल तू ही समग्र तू ही सकल। सत्य और विश्वास पर तूने कहा चला चल पहले न था जीवन इतना पावन और निर्मल खिल उठा मन का कमल तू ही समग्र तू ही सकल। कण कण में दिखता है तेरा ही प्रतिबिंब देखु जो मन के दर्पण में दिखे तेरा ही बिंब जगत को कर दिया विमल तू ही समग्र तू ही सकल। नही रहा मन पर दुख चिंता का भार मुझ अकिंचन को सुख दे दिया अपार मन महकाये तेरा परिमल तू ही समग्र तू ही सकल। क्षमा, संयम के साथ है नूतन दृष्टी कर निर्मल, नभ थल जल है नूतन सृष्टी सब पर तेरा उपकार तू मंगल तू परोपकार तू आज तू कल तू कल का कल तू ही समग्र तू ही सकल। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप न...
आत्महत्या
कविता

आत्महत्या

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घने जंगलों कलकल कर बहते झरनों पक्षियों का कलरव शेर की दहाड़ इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं सोचता था अपने खेतों के लिए खलियानों के लिए अपने मकानों के लिए मुझे गर्व था अपनी शक्ति पर बुद्धि पर अपने सामर्थ्य पर। धराशाई किये गगनचुंबी वृक्ष अगणित घोंसले टूटे होंगे , मेरा मकान बनाने के लिए, इसके बारे में मैंने कभी सोचा न था। सुनहरी गेंहू की बालियों के लिए मोती से मक्के के लिए लहकती सरसो के लिए कितने पीपल, पलाश कितने बरगद, अमलताश खो दिए इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं इठलाया हाथी दांत का कंगन पहन मैं इठलाया कस्तूरी की सुगंध से मैं इठलाया बघनखा देख मेरे इठलाने की क़ीमत कितने प्राणों ने चुकाई इसके बारे में मैंने सोचा न था। सूखती नदिया जंगलों के नाम पर कुछ कटीली झाड़ियां चूहे ,मच्छर, विषाणुओं की फौज और धूल भरी आँधिया इनके बारे में मैंने स...
स्वप्न नही
कविता

स्वप्न नही

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पलको के पीछे छुपा है एक और संसार सुनहरी धूप लिए गुनगुनाती हवा के साथ। करते ही बंद पलके होती है हर कामना पूरी जब चाहो आता है बसंत अल्हड़ पवन के साथ। शीतल दव बिंदु करते है स्वागत आदित्य रश्मि का पंकज नृत्य करता है सरोवर के साथ। कुहू कुहू गाती कोयल आम्रकुंज महकाती है नभ से उतर आता है अरुण संध्या के साथ। श्याम वर्ण घन अंबर में आवारा विचरते है पीयूष आता है चुपके से सावन के साथ। कुसुम करती प्रणय याचना मधुर मधु सुवाषित कब आएगा मधुप कामदेव के साथ। विरह वेदना का हुआ अंत श्रृंगार किया सौभाग्यवती ने तृप्ति आयी प्रियंकर के साथ। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ।...
गहन अंधकार
कविता

गहन अंधकार

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** गहन अंधकार मुझे निगलने के लिए मेरी तरफ बढ़ रहा था मैन एक दिप रख दिया उसके सामने वो कड़कती आवाज़ में खंजर लहराते मुझसे बोला जो कुछ है निकाल कर रख दे फ़क़ीर मैंने, दुआएँ, क्षमा शुभेच्छाएँ निकाल कर रख दी उसके सामने। वो बेहद डरा सहमा निराशा से घिरा मदद की गुहार करता आया मेरे पास मैंने, आशा, विश्वास, साहस निकाल कर रख दिये उसके सामने। मैं जानता हूँ तुम सत्य, अटल हो परंतु तुम्हे असमय नही आने दूंगा। मैं जीवनगीत गाने लगा उसके सामने। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कवित...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** चलते चलते राह में ठहर गई है जिंदगी कांटा बन के पाव में चुभ गई है जिंदगी। क्या गुप्तगु करे तुझसे ये मेरे दोस्त जुंबा पत्थर की बन गई है जिंदगी। बड़ा आसान है, बोझ को जिस्म पर ढोना, तकलीफ होती है, जब दिल पर बोझ बनती है जिंदगी। कौन अपना कौन गैर समझ मे नही आता आज चेहरा बदल गया उसका कल तक थी जो मेरी जिंदगी। चोट खाई तो यकीन आया ये हर दौर का सच है इंसान को जख्म पे जख्म देती रहती है जिंदगी। तुझे तेरे गुनाहों की सजा मिली है, धैर्यशील खुदा का बनाया कैदखाना है जिंदगी। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी...
मुर्दे
कविता

मुर्दे

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कौन कहता है वे जी रहे थे सालो से आंख बंद कर सो रहे थे वे तो मुर्दा थे जो चल रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। किसने कत्ल किया उन्हें मत पूछ, ये सब झूठ है जिनको तुम जिंदा समझ रहे हो वे मुर्दे सिर्फ जिंदगी ढो रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। उनके जिस्म में खून था ही नही जो बह निकला वो पानी है पानी तो बहता रहता है पानी बहने पर कौन रोता है हम लखपति हो गए है, वे आसमान से खुश हो कह रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। अच्छा है चिर निद्रा में सो गये वे तो जागते भी सोए हुए थे एक जरूरत पड़ जाती थी उनसे वे पांच साल में एकबार तर्जनी पे सोते में अमिट शाही लगवाते थे वे तो मुर्दा थे जो चल रहे थे जिंदगी का बोझ ढो रहे थे। . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती...
दावानल
कविता

दावानल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आग जिस्म के तहखाने में लगी सारे जिस्म में फैल रही है। निकलने लगी है, चिंगारियां, आँखों की खिड़कियों से। सावधान सावधान, निजाम चलाने वालों लग रहा है, आग बेकाबू हो कर फैलने वाली है। चिंगारियों की जगह कुछ ही देर में निकलेगी आँखों से आग की लपटें धधक उठेगा सारा जिस्म आग से। खोजो, खोजो आग लगने के कारण खोजो वरना, सारा निज़ाम आग की चपेट में आ जायेगा। फिर कुछ न बचेगा न निज़ाम न भूख। बचेगी, सिर्फ राख इतिहास की राख। निज़ाम - प्रशासन व्यवस्था दावानल - जंगल की आग . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० स...
कोलाहल
कविता

कोलाहल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** श्रेष्ठ अभिनेता श्री इरफ़ान खान हमारे बीच नही रहे। उनका अभिनय कौशल रजत पट व हमारे ह्रदय पर सदा अंकित रहेगा। कहते है कलाकार अपनी कला में सदैव जीवित रहते है। कला उन्हें अमरत्व प्रदान करती है। शब्द सुमन उन्हें अर्पित है। बाहर का कोलाहल थमे तो, मन की बात सुनू। जब मौन मुखर हो कर बोलेगा, अंतस के कपाट खोलेगा। आत्मा से बोलेगा, मैं, धीरे धीरे गलेगा। नेति नेति जानेगा, परमात्मा से मिलेगा। दिव्य प्रकाश में घुलेगा। होगा बंद आवागमन परम पद पायेगा। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्म...
समय आ गया है
कविता

समय आ गया है

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** सुना है जब हम किसी की अंत्येष्टि में जाते है, तो कुछ घड़ी के लिए श्मशान वैराग्य हमे गैर लेता है। वैसे ही मुझे इस कोविड काल मे कोविड वैराग्य ने घेर लिया है,और जो ज्ञान मुझे इस कालावधी में प्राप्त हुआ वो इस कविता में रूप में आप को सादर प्रस्तुत है। बहुत कर लिया बाहर का प्रवास भीतर के प्रवास का समय आ गया है। दुसरो की त्रुटियां बहुत गिन ली तूने स्वयं की गिनने का समय आ गया है । आनंद उठा लिया दूजो पर हंस कर खुद पर हँसने का समय आ गया है। हर एक को नापा अपने पैमाने से दूसरे को नाप देने का समय आ गया है। अपना लाभ देखते रहे उसकी हानि से मुझे क्या सब लेखाजोखा देने का समय आ गया है। ज्ञान बांट दिया खुद रीते रह गए खुद सीखने का समय आ गया है। बढ़ाते रहे लकीर अपनी दुसरो की काट कर खुद लकीर खींचने का समय आ गया है। पीर को प्रेम समझ सभी से करते रहे पीर ...
मजबूरियां
ग़ज़ल

मजबूरियां

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** माना आपकी सल्तनत बड़ी है पर हमारे दम से ही तो खड़ी है आप,आप है, बराबरी कैसे किसकी ऊँचाई वक़्त से बड़ी है कई मजबूरियों से घिरा इंसान है खा ले चुपके से डांट जो पड़ी है कट रही है जिंदगी समझौतों पर खुद्दारी से घर की जरूरतें बड़ी है दिल दरक गया है कोई बात नही जज्बात से, पेट की आग बड़ी है क्यों नही लढ् लेता तू, धैर्यशील, जिंदगी रब के भरोसे पे खड़ी है . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
पृथ्वी
कविता

पृथ्वी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जो है, मेरे घर की छत वही है ,दीवारें मेरे घर की इसे कहते है, आकाश, यही तो मेरा घर है। ये वृक्ष, पशु, पक्षी निर्भय हो विचरते है निकलते है नवांकुर मेरी कोख से भर देती हूँ उसमे मैं रंग, स्वाद, रस, और गंध सब कुछ है, लयबद्ध मुझे इससे प्यार है यही तो मेरा घर है। धवल शिखरों से मंडित सागरो से सुशोभित गगन चुम्बी देवदार विशाल बांहे मखमली दूब का गुदगुदाना ओंस की बूंदे मेरी पलको पर रुकती कहा है सभी की शरारतें बरकरार है, यही तो मेरा घर है। बस थोड़ा उद्दंड हो गया है मानव मनमानी पर उतरा है उसे अपनी भूल का भान करा कर मैंने उसका पंख कुतरा है। बेसुरा कैसे गाने दूंगी मिलाना उसे भी सुर है यही तो मेरा घर है। सूर्य, चंद्रमा, तारे मैंने छत पर सज़ा रखे है कभी उजले कभी गहरे होते मेरे परिधान है जन्म, मृत्यु का भी फेर है यही तो मेरा घर है। . परिचय :- नाम : धै...
यार बस भी करो ना
कविता

यार बस भी करो ना

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कोरोना कोरोना कोरोना यार बस भी करो ना जीना मुहाल हो गया है तुम परलोक सिधारो ना यार बस भी करो ना। अक्ल ठिकाने आ गई हमारी आसमान में उड़ रहे थे भारी तुम्हे भी निपटाने की है तैयारी जाके कही मुँह काला कॅरोना यार बस भी करो ना। घर बैठे बैठे निपटाएंगे तुझे गरम पानी पी पी के कोसेंगे तुझे साबुन सेनेटाइजर की कमी नही मुझे भले तू चीख मुझे मारों ना यार बस भी कोरोना। ऋषि मुनियों का है ये देश एकांत रहना ही है हमारा परिवेश नही हो सकता तेरायहा समावेश नर्क से आये हो वही जा सडो ना यार बस भी करो ना। बंध गए है हम एकसूत्र में जन्मे हो चाहे किसी गोत्र में एकता की सुगंध नही किसी इत्र में आतताई प्रस्थान अब करो ना कोरोना कोरोना कोरोना यार बस भी करो ना। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. स...
सुनी सड़को पे
कविता

सुनी सड़को पे

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** सुनी सड़को पे घूमती आवारा बिल्लियों को कुत्तों का डर नही रहा वे जान गई है, कुत्ते अब जगह से नही हिलते, उनका सारा कसबल न रहा। परिंदे जरूर शोख हो गए है उनकी उड़ान में किसीका दखलंदाज न रहा। झूमने लगते है दरख्तों के पत्ते हवाके साथ साथ धूल की मिलावट का डर न रहा। आसमान साफ है है सितारे रौशन न चाँद पे बदली है रौशन इस कदर समा है सूरज से कमतरी का भाव न रहा। इंसानों की दुनिया है वीरान जो मिला मुँह छुपा कर मिला इसे कहते है जैसी करनी वैसी भरनी सारे मुग़ालते हो गए दूर हो गया घमंड चूर चूर अपनो का कंधा भी मयस्सर न रहा। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान ...
कर्तव्य की वेदी पर
कविता

कर्तव्य की वेदी पर

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ लेकर हाथों में हाथ संबल दे रहा हूँ सता रही है घर की यादें यादों में ही जी रहा हूँ। दरवाजे तक आती होगी बिटिया, मेरी राह तकती होगी बिटिया, सुनी-सुनी नजरें माँ से कुछ पूछती होगी सपनो का दुशाला ओढ़े फिर सो जाती होगी बिटिया। मैं उसके सपनो में जाने की सोच रहा हूँ। कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। वसुधैवकुटुम्बकं के संस्कारो में पला बढ़ा हूँ कैसे तज दू किसी को विपत्ति में, मानवता का फर्ज निभा रहा हूँ। कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। नर में हो रहे दर्शन नारायण के, देख कर निःसहाय होठों पर मृदुल हास्य की लकीर, जीवन सार्थक कर रहा हूँ कर्तव्य की वेदी पर शीश नवा रहा हूँ। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी...
गृहणि
कविता

गृहणि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बढ़ गया है बोझ उस पर देहरी पर जो खींच दी है लक्ष्मण रेखा। घर के भीतर कोई नही आता घर के भीतर कोई नही जाता उसे ही रखना है सारे काम का लेखा जोखा। घर का फर्श, फर्नीचर जब चमक उठते है। आवाज़ देते है किचन में रखे बर्तन। बर्तनों की चीख पुकार बंद होते ही। वाशिंग मशीन में कैद कपड़े फुसफुसाने लगते है। कर उनकी धुलाई टंग जाते है वे रस्सियों पर करते है हवा से अठखेलियाँ एक गहरी सांस खींच भी पाती है की। गमले में उगा मोगरा, गुलाब, निशिगन्ध उसे याचक की नज़रों से देखते है। दे कर पानी गमलों में जैसे ही पोछती है वो स्वेद कण जो दव बिंदुओं के समान उसके माथे पर मोतियों से उभर आए है। तभी उसके कानों में पड़ती है मेरी आवाज कुछ तो काम किया करो मुझे अभी तक चाय नही मिली। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म...
बादलों के उस पार
कविता

बादलों के उस पार

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बादलों के उस पार जो उजाला है वो मुझे चाहिए घिर गई है मेरी बस्ती गहन अंधकार में। कतरा कतरा रोशनी मुझे चाहिए। जो प्रज्वलित है भीतर हमारे वो ज्योतिर्मय भाव मुझे चाहिए। झर रही नयनो से आशा की किरणें स्पंदन सांसो में होता रहे जगमगाता जीवनदीप मुझे चाहिए। घर की देहरी पर खिंच रखी है लक्षमण रेखा उस जीवन रेखा के ऊपर प्रकाशपुंज रूप "दीपक" मुझे चाहिए। मुझे चाहिए। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
आत्महत्या
कविता

आत्महत्या

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घने जंगलों कलकल कर बहते झरनों पक्षियों का कलरव शेर की दहाड़ इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं सोचता था अपने खेतों के लिए खलियानों के लिए अपने मकानों के लिए मुझे गर्व था अपनी शक्ति पर बुद्धि पर अपने सामर्थ्य पर। धराशाई किये गगनचुंबी वृक्ष अगणित घोंसले टूटे होंगे, मेरा मकान बनाने के लिए, इसके बारे में मैंने कभी सोचा न था। सुनहरी गेंहू की बालियों के लिए मोती से मक्के के लिए लहकती सरसो के लिए कितने पीपल, पलाश कितने बरगद, अमलताश खो दिए इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं इठलाया हाथी दांत का कंगन पहन मैं इठलाया कस्तूरी की सुगंध से मैं इठलाया बघनखा देख मेरे इठलाने की क़ीमत कितने प्राणों ने चुकाई इसके बारे में मैंने सोचा न था। सूखती नदिया जंगलों के नाम पर कुछ कटीली झाड़ियां चूहे ,मच्छर, विषाणुओं की फौज और धूल भरी आँधिया इनके बारे में मैंने सो...
दूर सुदूर
कविता

दूर सुदूर

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** दूर सुदूर आकाश के उस छोर को ताकता, या कहे शून्य निहारता मैं, हा मैं साथ होगा भी कौन, मैं तो है ही, शाश्वत अकेला, नितांत अकेला। एक भ्रम होता है, हम, होने का वही बुनता है, भ्रमजाल मायाजाल मै, उलझता है उलझता जाता है, महसूस करता है अपने, चहु और, अपने जागती आंखे दिखती है सपने। खो जाता है, मै, भूल कर मै। दौड़ता है, कस्तूरी मृग सा मरुस्थल में। दौड़ खत्म नही होती, भ्रम सिर्फ भ्रम समय, शिकारी सा बाट जोहता, दिखाई नही देता। और जब तक मैं ये जान जाता मृगतृष्णा, शून्य से ताकता समय त्रुटि नही करता। वो जनता है, वो शिकारी है और हैं सामने शिकार। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर...
चट्टानों के नीचे भी
कविता

चट्टानों के नीचे भी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** चट्टानों के नीचे भी होता है पानी हो कितना भी कोई संगदिल दो मीठे बोल ला देते है उसकी भी आंखों में पानी। जो है आनेवाला वो ही है जानेवाला कुछ पल का है ये तमाशा सभी को निभाना है अपने अपने किरदार चंद घड़ियों में गिर जाएगा पर्दा हो जाएगा सब कुछ फ़ानी हो सके तो कर कुछ ऐसा जो भर दे किसी की आँख में पानी जीने को तो सब जी लेते है याद वही रह जाते है जो देते है कुर्बानी। शाहों का शाह है वो वक़्त भी जिसका गुलाम तू तो खिलौना है उसका वो लेता है इम्तहान वो सब देखता है वो सब जानता है मत कर कोई चालाकी मत कर कोई बेईमानी। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंद...
कितने ही दिनों
कविता

कितने ही दिनों

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कितने ही दिनों के विमर्श पश्चात। असंख्य अवरोध लांघते। संघर्ष के साथ आरंभ, तेरा प्रवास काल कोठरी से कारागृह तक। तुझे भनक नही हिरासत की, विचारों की अलंकारों की भावनाओं की गिरफ्त में, तुझे रखा गया। छूने को करता तेरा मन आकाश में तैरते बादलो को कभी तितली बन छूने को करती हो नर्म मुलायम पंखुरियों को। जंजीरे हैं कि टस की मस नही होती। आंखों में भर लेती हो सागर, असंख्य मोती भरे पड़े है, तेरे मन के तल पर। सुध नही तुझे तेरे होने की तू तो बस सखी है बहन है माँ है। इसके बाहर तुझे सोचने दिया भी कहा। हे, शक्ति रूपा देख अंबर के आईने में पहचान खुद को अपने पंख फड़फड़ा के देख जरा, सारे बिंब हो जाएंगे, धारा शाई। तेरी उड़ान छू लेगी, सातो आसमान, सारे रंग हो जाएंगे एका कार तेरे अस्तित्व में। तुझ से ही होगी तेरी पहचान, बस खुद को पहचान खुद को पहचान . परिचय :- नाम :...