आओ दीपक बन दीप जलाऍ
धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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आओ दीपक बन दीप जलाऍ,
अंतर्मन की ज्योति दमकाऍ।
ईर्ष्या,द्वेष त्याग करके हम,
प्रेम-भाव की किरणें बिखराऍ।
माटी की काया का क्या गुमान?
किस बात की तूझे अभिमान?
जिंदगी रहते बंदगी कर लें,
आज ही गंदगी को दूर भगाऍ।
राम के आदर्शों को अपनाऍ,
सीता माई से सतीत्व पाऍ।
लक्ष्मण जी से लक्ष्य निभाऍ,
भाईचारे की ज्योति जगमगाऍ।।
परिवार में रहकर प्यार बांट लें,
नवल दीपक बन प्रकाश फैला दें।
हर ग्राम अयोध्या नगरी बन जाऍं,
हर दिन हर पल रोशनी बिखराऍ।।
नशा दुर्व्यसन से मुक्त करा दें,
नवल ऊर्जा नव उमंग भर दें।
नव किरणें नई तरंगें लहराऍ,
नये आयामों से पर्व मनाऍ।।
बेटी रूप ही असली लक्ष्मी है,
संस्कारों के दीप जला दें।
शक्ति-भक्ति का पाठ पढ़ा दें,
सारे कष्टों को दूर भगा दें।
व्याप्त बुराईयों को दूर भगाऍ,
नवाच...