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Tag: दीवान सिंह भुगवाड़े

जीत आसान और कठिन है हारना
कविता

जीत आसान और कठिन है हारना

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** जीत आसान और कठिन है हारना गिर कर उठना फिर संभल कर चलना खाकर ठोकरे भी तुम ना विचलना मुसीबतों में गिर कर भी तुम ना पिघलना। हालातों में इस कदर खुद को ढालना दृढ़ संकल्प आत्मविश्वास अटूट पालना बीच राह आए काटे तो तुम हटाते बढ़ना साथ ना देगा कोई भी खराब है जमाना। गर मिले हार तो भी तुम ना घबराना सोच सकारात्मक अपनी हमेशा रखना महत्वपूर्ण जितना है जहां में जीत जाना जरूरी है उससे भी अधिक कुछ सीख पाना। मिले ना जब तलक मंजिल चलते रहना कमजोरियां अपनी किसी से ना कहना शिक्षा ही जीवन का अनमोल है गहना रोशन कर जीवन,यह देगी हमें हार पहना। पसीने की बूंदों से अपने तुम खुद को सींचना रिवाज है यहां बढ़ते हुए को पीछे खींचना मंजिल भी मिलेगी "दिवान" पूरा होगा हर सपना लंबा सफर नापना,मगर कभी शॉर्टकट ना अपनाना। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वा...
अकेले ही लड़ना है
कविता

अकेले ही लड़ना है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** उम्मीदें कितनी है तुझ पर तेरे अपनों की माता-पिता दोस्त और भाइयो-बहनों की कर पालन किया था जो वादे-वचनों की अंत समय तक ना छोड़ डगर सपनों की। कर इज्जत सदैव अपने गुरुजनों की कमाई कर व्यवहार, कुशलता, आदर्शों की हो सफल इज्जत बड़ा ,अपने परिजनों की आस ना कभी कर, ऊंचे-बंगले भवनों की। चल मंद-मंद मगर रोक न चाल कदमों की ना कर परवाह जीवन में मिथक कथनों की मुश्किलें लाखो हो, अपने मंजिल-ए-सफर की मगर कर परिश्रम, त्याग चेन-नींद, आरामों की। ना रख उम्मीद किसी से साथ-सहयोग की यहां तो पड़ी है सबको अपने मतलब की इस जहां में कोई कदर नहीं उस इंसा की जो सत्य हो खाता कमाई अपने मेहनत की। थोड़ा-पढ़ भी ले ऐ-युवा, वक्त है अभी भी कर्तव्य जान ले अपने और हक-अधिकार भी हो यदि भ्रष्टाचार-अन्याय तो उठा आवाज भी पढ़कर लड़,लड़कर पढ़ और आगे बढ़ भी। अपार दुख है ज...
लड़ रहे… बढ़ रहे…
कविता

लड़ रहे… बढ़ रहे…

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** कोई लिख रहा है, कुछ लोग पढ़ रहे हैं कोई पढ़ते हुए लड़ रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए पढ़ रहे हैं। कोई बोल रहा है, कुछ लोग आवाज उठा रहे हैं कोई जुड़ रहा है, कुछ लोग लड़ रहे हैं। कोई चल रहा है, कुछ लोग दौड़ रहे हैं कोई स्वयं के लिए, कुछ समाज हित में लड़ रहे हैं। कोई अधिकारों के लिए, कुछ कर्जदारों हेतु लड़ रहे हैं कोई ठगों को पकड़ रहा है, कुछ लोग मांगों हेतु लड़ रहे हैं। कोई अपना ही रोक रहा है, कुछ लोग रास्ते में अड़ रहे हैं कोई जातियां तोड़ रहा है, कुछ लोग समाज जोड़ रहे हैं। कोई हौंसला बढ़ा रहा है, कुछ लोग हिम्मत जुटा रहे हैं कोई राजनीति कर रहा है, कुछ आपबीती हेतु लड़ रहे हैं। कोई रहमत कर रहा है, कुछ लोग मेहनत कर रहे हैं कोई जागरूक कर रहा है, कुछ लोग लड़ते हुए बढ़ रहे हैं। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वानी (म.प्र.) घ...
याद रखना बिटिया
कविता

याद रखना बिटिया

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** कोख में लेकर यत्न किया, तुझे जन्म दिया नींद देकर तुझे, खुद न कभी चैन लिया एक आह सुन तेरी, कई रातें जिसने न सोया उस माँ की ममता को याद रखना बिटिया। भूखा रह खुद, जिसने निवाला दिया तुझे पालने हेतु खेतों में दिन-रात काम किया कर्ज लेकर भी मुरादें तेरी, जिसने पूरी किया उस पिता का समर्पण याद रखना बिटिया। अपनी खुशियां त्याग, सपनों का बलिदान दिया पढ़ाने के लिए तुझे, खुद पढ़ना छोड़ दिया तेरी फीस जमा करने हेतु जिसने मजदूरी किया उस भाई का बलिदान याद रखना बिटिया। लक्ष्य मिले तुझे अपना, हर संभव प्रयास किया मंजिल अपनी पा ले तू, वह धैर्य-साहस दिया विपदाएं तेरी सारी, जिसने खुद झेल लिया उस बहन की उम्मीदें, ध्यान रखना बिटिया। खुद्दारी से अपनी, समाज में थोड़ा सम्मान पाया गरीबी में गुजार दी जिंदगी, कभी दगा न किया मेहनत कर ही कमाया और सभी को ख...
अधिकार मांगता हूं
कविता

अधिकार मांगता हूं

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** सबको खिला कर मैं खुद भूखा रहता हूं जल ना मिले तो पसीने से प्यास बुझाता हूं आए कितनी भी मुसीबतें, हिम्मत न हारता हूं टूट जाए कुटिया, उसमें ही जीवन गुजारता हूं। धरती को माता मैं, पिता आसमान को मानता हूं प्रकृति ही सब देती है, बस यह मैं जानता हूं बैलों को मैं अपने भगवान जैसे पूजता हूं ना मिले बैल तो मैं खुद हल खींचता हूं। उधार लेकर मै खाद, बीज बोता हूं दिन को आराम ना रात को सोता हूं साल भर मेहनत कर, इतना न कमा पाता हूं बिक जाते खेत मगर, ना कर्ज चुका पाता हूं। अमीर ना बन सका, तो गरीबी में खुश रहता हूं जिंदगी में आने वाले, मैं सब दुख सहता हूं अपनी चीज का भाव तय करते, सब को देखता हूं लेकिन फसल का मै, ना खुद भाव लगा सकता हूं। खुद समर्थ हूं मै, सब कुछ कर सकता हूं खेतों में काम करते, तेज धूप सहता हूं बारिशों के पानी में, मै खुद भी...
पापा मै भी पढूंगी
कविता

पापा मै भी पढूंगी

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** पापा मुझे क्यों नहीं पढ़ाया अल्पायु मे ही ब्याह कराया बेटी की उम्र में, मुझे माँ बनाया दहेज के नाम से भी बहुत सताया। सत्य-अहिंसा की मै राह चलूँगी बेड़ियाँ अशिक्षा की मै तोडूंगी जड़ें भ्रष्टाचार की उखाड़ फेकूंगी पढ़-लिख कर समाज को सुधारूँगी। बंधनों को समाज के, तोड़कर पढूंगी मगर उजियारा समाज में करूँगी आवाज अन्याय के विरुद्ध उठाउंँगी खुशियों के पलों का आगाज करूँगी। उड़ान कल्पना सी मै भी भरूँगी जुल्मों-सितम से भी लड़ जाऊँगी वीरांगना समान वीरता दिखाऊंगी शत्रुओं को भी मै धूल चटाऊंगी। दिन जब आपके गुजर जायेंगे उम्र से आप लड़ ना पायेंगे वारिस आपसे मुकर जायेंगे सहारा तब मेरा ही, आप पायेंगे। तन जवाब जब, आपका देगा बोझ आपको फिर, बेटा समझेगा पालन तब आपका, मै ही करूँगी इसलिये पापा मै भी पढूंगी। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वा...
तो कितना अच्छा होता
कविता

तो कितना अच्छा होता

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** इस संसार में कोई देश ना होता धरती सबकी माता, पिता अंबर होता ब्रह्मांड सारा एक ही परिवार होता सारा मानव एक साथ ही रहता। तो कितना अच्छा होता। इस पृथ्वी पर एक ही धर्म होता ना मंदिर बनता, ना मस्जिद बनता गुरुद्वारा और गिरिजा ना बनता संपूर्ण मानव प्रकृति पूजक होता। तो कितना अच्छा होता। इस धरा पर एक ही समाज होता ना अल्पसंख्यक, ना कोई पिछड़ा होता मनुष्य भी किसी को दुख न देता एक दूसरे का समझ रहा दुखड़ा होता। तो कितना अच्छा होता। मानव-मानव एक ही वर्ग मे रहता ना निम्न, मध्यम, ना उच्च वर्ग होता एक दूसरे का हमेशा सहयोग करता मानव-मानव के प्रति समभाव रखता। तो कितना अच्छा होता। दुनिया में धन दौलत ना होता तो कोई किसी का बेरी ना होता मानव एक दूसरे से घुलमिल रहता दुखों को सभी के मिलकर सहता। तो कितना अच्छा होता। इस संसार में भेदभाव ना होता ...
यह कैसी आजादी है
कविता

यह कैसी आजादी है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** सीमा पर सिपाही गोलियां झेल रहा है देश में नागरिक समाज-समाज खेल रहा है इस महान देश में,यह हो क्या रहा है। यह कैसी आजादी है। किसान गरीबी से तड़प रहे है मजदूर रोजगार के लिए तरस रहे है देश के युवा बेरोजगार घुम रहे हैं नसीब नहीं दो वक्त की रोटी,खुदखुशी कर रहे है। यह कैसी आजादी है। बेटियाँ देश की अकेली सफर करने से डरती है यदि रात में गलती से भी चली जाती है तो वह लौटकर कभी नहीं आ पाती है। यह कैसी आजादी है। अस्पताल तो सैकड़ों यहां है मगर स्वास्थ्य का कोई वजूद नहीं है सड़कों पर रोगियों की, कई जानें जाती है। यह कैसी आजादी है। मुल्क के लोग बड़ी चाह से जिसे चुनते है वही तो अपना रुख बदल लेते हैं सरकारें बदलती है, योजनाएं वहीं है विकास की किसी में,जगी भावनाएं नहीं है। यह कैसी आजादी है। आस जगी थी,सदियों की गुलामी के बाद एक ज्योत जली थी, कई ...
ओ मेरी प्यारी बहना
कविता

ओ मेरी प्यारी बहना

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** ओ मेरी प्यारी बहना तू हमेशा खुश ही रहना। आये विपदा कोई तेरे जीवन में बेझिझक तुम मुझसे कहना दुखों को तेरे मुझे है सहना प्रण लिया है यह मैने बहना। माँ की लाड़ली, पापा की परी मेरे लिए बहना तू है सर्वोपरी। मंदिर में ममता के, तू है प्यारी मूरत माँ भी नजर आती है, पिता भी जब मै देखता हूं तेरी सूरत। अगर हो अंधेरा तेरे सफर में तो खुद को जला दूँगा मै राहों में तेरी यदि हो कांटे तो खुद को बिछा दूँगा मै। दुख ना आये कभी तेरे जीवन में बहना मुझ पर रखना प्रेम हमेशा और जीवन भर संग ही रहना। ओ मेरी प्यारी बहना तू हमेशा मुस्कुराते रहना। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वानी (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
अभी तो बहुत हौसला है
कविता

अभी तो बहुत हौसला है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** अभी तो बहुत हौसला है मुझमें, बेजान नहीं हूँ मै, इस मतलबी दुनिया से अनजान नहीं हूँ मै। कोई कुछ भी कहे परवाह करता नहीं हूँ मैं, इस बेदर्द जमाने से भी डरता नहीं हूँ मै। पढूंगा-लिखूंगा नवाब भी बनूँगा मै, माता-पिता का नाम रौशन करूंगा मै। मंजिलो का मुसाफ़िर हूं मै, ख़बर कामयाबी की भी सुनाऊंगा मै। वक्त को मै बदलकर दिखाऊंगा, आसमान में भी परचम लहराउंगा। राहें आसान नहीं है मेरी, जानता हूं मै, नामुमकिन कुछ भी नहीं, यह मानता हूं मै। ठोकरें खाकर गिरता हूं मै, गिरकर उठता सम्भलता हूं मै। मुसीबतें कितनी भी हो, घबराता नहीं हूं मै धोखा अपने ही देते हैं, बस उनसेे डरता हूँ मै। कोसू किस्मत को, इतना मै बुजदिल नहीं हूं कमजोर जरूर हूं, मगर मै कायर नहीं हूं। थककर बैठ जाऊं बीच सफ़र में, इतना भी नालायक नही हूं मै। नाम मेरा भी होगा दुनिया में, बेनाम मर जाऊं...