चाँद को देखा मन बहला
दीपक अनंत राव "अंशुमान"
केरला
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चाँद को देखा मन बहला
चाँदनी में तेरा चहरा खिला
कितनी अकेली रातों में खोयें
न मेरी मंजिल तेरे बिना,
चाँद को देखा...
न कोई राहें भाती नहीं है
न कोई मौसम कटती नहीं है
साथ हमेशा छाया हो तेरी
तुझ से बनी है तकदीर मेरी,
चाँद को देखा...
ग़म से भरी है राहें हमारी
बिखरी हुई है ख्वाबें हमारी
छावों में तेरी सजाते रहूँ मैं
जन्नत्त मेरी तब होगी पूरी,
चाँद को देखा...
बगियन के फूल शरमा रहे हैं
जब तुम को देखें शरमा रही हैं
नूर तुम्हारी नज़रों में बोये
रंगें हज़ारे दुनिया में मेरी,
चाँद को देखा...
परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान
निवासी : करेला
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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