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Tag: डॉ. मुकेश ‘असीमित’

औकात की बात
व्यंग्य

औकात की बात

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज फिर उनकी औकात उन्हें दिखने लगी है। दुखी हैं बहुत। एक बार हो जाए, दो बार हो जाए, लेकिन बार-बार कोई औकात दिखा दे तो भला किसे बर्दाश्त होगा? इस बार तो हद ही कर दी। संस्था वाले भी पीछे ही पड़े हैं... क्या यार, इस बार तो मात्र दस रुपये की माला को मोहरा बना दिया, औकात दिखाने के लिए! उन्हें पता चला कि सम्मान करने के लिए जो माला उनके गले में डाली गई थी, उसकी बाजार कीमत दस रुपये थी, और संस्था द्वारा थोक में मंगवाने के कारण वह महज आठ रुपये में पड़ी थी। बस, तभी से अपसेट हैं। कार्यक्रम संस्था द्वारा उनकी शादी की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित था। संस्था वालों ने उनकी वर्षगांठ पर उन्हें दस रुपये की माला पहनाकर उनकी औकात दिखा दी! पिछली बार भी एक कार्यक्रम हुआ था। तब इसी संस्था के एक अन्य सदस्य को...
एक डिज़ायर की व्यथा कथा
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एक डिज़ायर की व्यथा कथा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** पिछले दस दिनों से मंत्री जी के ऑफिस के कोने में पड़े कचरे के डिब्बे में पड़ी हुई हूँ। मेरे ऊपर मेरी जैसी न जाने कितनी अबला बहनें गिरी पड़ी हैं। न जाने कितने बेसहारा भाई-सरीखे सिफारिशों के लेटर, इनविटेशन, ग्रीटिंग्स, और ज्ञापन मेरे ऊपर गिर-गिरकर मुझे दबाए जा रहे हैं। साँस लेना मुश्किल हो गया है। दो दिन से कचरा उठाने वाला भी नहीं आया। मेरी आखिरी इच्छा है कि कम से कम इस घुटन से बाहर होकर किसी कचरा निस्तारण प्लांट में जाकर रीसायकल हो जाऊँ, कुछ देश के काम आ सकूँ। इससे बढ़िया तो मुझे सड़क पर फेंक देता। किसी कबाड़ वाले को रद्दी में बेच देता, कम से कम किसी खोमचे वाले के समोसे के लिए प्लेट का काम कर जाती। किसी बच्चे की कागज की नाव बनकर सड़क के गड्ढों में बह जाती, भले ही थोड़ी देर के लिए ही सही...
गणतंत्र दिवस
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गणतंत्र दिवस

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** सर्दी की कड़कड़ाती ठंड में खिड़की के बाहर देख रहा हूँ। अलसुबह उनींदे से बच्चे अपनी स्कूल यूनिफ़ॉर्म में रिक्शों पर लदे स्कूल जा रहे हैं। यूँ तो सर्दियों में स्कूल का समय दोपहर बाद का होता है, खासकर सरकारी स्कूलों में, लेकिन गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराने का समय सुबह का ही होता है। गणतंत्र की स्वर्णिम भोर की किरणों में झंडा फहराना है। आसमान की ओर देखता हूँ। घना कोहरा छाया है, कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। सूरज पिछले सात दिनों से सरकारी दफ्तरों की कार्यप्रणाली की तरह काम कर रहा है- ऑफिस खुले से हैं, पर ऑफिसर गायब हैं। ऐसे ही आसमान खुला सा है, बस सूरज गायब है। कम से कम नेता की तरह तो दिखे, जो अपने चुनाव क्षेत्र से गायब होकर दिल्ली में तो नजर आता है। सूरज भी न, दोपहर में सीधे माथे पर चढ़ता है, थोड...
बदला-बदला बसंत
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बदला-बदला बसंत

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** "हाँ जी दादा, इस बार क्या लिख रहे हैं बसंत पर? भाई वाह, क्या लिखते हैं आप!" ये हैं वयोवृद्ध कवि माखनलाल जी "रसिक", जिनकी रसिक आँखें अब धुंधली पड़ गई हैं, कानों से सुनाई कम देने लगा है, हाथ काँपते हैं, लेकिन आज भी बड़े जोर-शोर से लिखते हैं। खासकर उनकी बसंत पर लिखी कविताओं के तो सब दीवाने हैं। सब कौन? जी, वही सब—शहर के कुछ गिने-चुने कवियों की संस्था में पधारे सभी कविगण, जो श्रोता और वाचक, दोनों की भूमिका निभाते हैं। यह संस्था हर साल बसंत पर एक काव्य गोष्ठी आयोजित करती है। बड़े श्रद्धाभाव से माँ सरस्वती के चरणों में अपनी रचनाएँ समर्पित करने वाले ये कवि न जाने जीवन के कितने बसंत पार कर चुके हैं, लेकिन कभी बसंत को सच में देखा नहीं। पर इनकी कल्पनाशीलता... वाह! ग़ज़ब! भँवरे का गुंजन, पलाश के फ...
आखिर नाक का सवाल
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आखिर नाक का सवाल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** इस विचित्र दुनिया में, जहां हर चीज़ की अपनी एक खास पहचान होती है, वहां "नाक" ने भी अपनी एक अनोखी जगह बना ली है। अरे, यह वह नाक नहीं है जो चेहरे के बीचोबीच शान से बैठी रहती है, बल्कि यह तो उस नाक का किस्सा है जो आजकल समाज में हर जगह अपना रंग जमाए बैठी है। किसी जमाने में नाक सिर्फ सांस लेने और खुशबू महसूस करने का जरिया हुआ करती थी, लेकिन कालांतर में इसने कुछ ऐसे रूप धारण कर लिए हैं कि बस, पूछो मत! कहीं यह "नाक का सवाल" बनकर समाज में इज़्ज़त की नाव को समाज की अपेक्षाओं के भंवर जाल में डुबोने से बचाती है, तो कहीं "नाक के बाल" बनकर ज़िंदगी की जटिलताओं में उलझाती नज़र आती है। कहीं नाक कट जाने के डर से न जाने कितने गरीबों के दो वक्त के चूल्हे की रोटी ठंडी हो जाती है। अब आप ही बताइए, जब कोई आपक...
अफ़सरनामा
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अफ़सरनामा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** अफ़सर नाम का प्राणी वह है, जो दफ्तरों में पाया जाता है। वैसे तो सरकारी, अर्ध-सरकारी, और गैर-सरकारी सभी दफ्तरों में यह पाया जाता है। कुछ अर्जित, कुछ जबरन, कुछ जुगाड़ू, और कुछ कबाड़ी-हर प्रकार के अफ़सर होते हैं। अफ़सर काम नहीं करते, काम की चिंता करते हैं। गधे की तरह जिम्मेदारियों का बोझ ढोते हैं-जिम्मेदारी काम करवाने की और साथ में काम की चिंता का बोझ उठाने की। इनका कोई समय नहीं होता; ये समय और स्थान से परे, ब्रह्मस्वरूप होते हैं। ये ऑफिस के कण-कण और जड़- चेतन में विराजमान रहते हैं। इसलिए कुर्सी पर दिख सकते हैं, नहीं भी दिख सकते हैं, या दिखते हुए भी नहीं दिख सकते हैं और नहीं दिखते हुए भी दिख सकते हैं। अफ़सर को कभी भी नौकर मत समझिए। इनके चाल-ढाल और रंग-ढंग सब अलग और जुदा-जुदा होते हैं। ये त...
शादी में रूठे फूफाजी
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शादी में रूठे फूफाजी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** फूफाजी, जिन्हें "रिटायर्ड जीजाजी" के उपनाम से भी जाना जाता है। इनका नाम लेते ही दिमाग में एक विशेष प्राणी की छवि उभर आती है। आप और मैं, हम सभी इस रिश्ते का जामा या तो पहन चुके हैं या पहनने वाले हैं। अब क्या कहें, इनके कारनामे ही कुछ ऐसे होते हैं जो इन्हें सभी रिश्तों में एक अलग पहचान देते हैं। अब शादी समारोह को ही ले लीजिए, इसमें फूफाजी की एक अलग ही रामायण, एक अलग ही गाथा होती है। उनकी चिरकाल से स्थिर भाव-भंगिमाएँ, जो उनके मुखमंडल पर विराजमान रहती हैं, उनकी चाल-ढाल और उनके मुखारविंद से निकले कुछ सनातनी जुमले-इन्हीं से आप उन्हें शादी में दूर से ही पहचान सकते हैं। उनकी उम्र की निचली सीमा लगभग 45 वर्ष होती है और ऊपरी सीमा का कोई अंत नहीं। मुँह और नथुने फुलाए हुए, दोनों हाथ पीछे बाँधे, बढ़े ...
नया साल बे-मिसाल
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नया साल बे-मिसाल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ३१ दिसंबर की सर्द रात है। दो दोस्त अलाव के पास बैठे नए साल का इंतज़ार कर रहे हैं । हाड़ कंपा देने वाली सर्दी। उनके जमे हुए गलों को गर्म करने के लिए अलाव के अलावा पेग के घूँट ही थे। एक दोस्त अपने गले के वोकल कार्ड पर सुरूर का तान छेड़ते हुए बोला, "यार, नया साल आ रहा है। इसका स्वागत नहीं करोगे तो नाराज़ हो जाएगा स्साला।" दूसरा दोस्त हँसते हुए बोला, "यार, नया साल तो आ ही जाएगा। लेकिन ये बता, पहचानेंगे कैसे? क्या फर्क है पिछले साल और इस साल में? पहले भी धोखा खा चुके हैं यार। हर बार "नया" बोलकर पुराना ही चिपका दिया जाता है। कुछ भी तो नया नहीं था। बिलकुल वो फ़िल्म "रन" में देखा ना, कैसे "छोटी गंगा" बोल के नाले में कूदवा दिया। सलमान खान इस बार भी कुंवारा ही है। पाकिस्तान इस बार भी अमेरिका के आ...
कुर्सी वंदना
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कुर्सी वंदना

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** लो जी, अब तनिक कुर्सी प्रेमियों को भी कुछ खुशखबरी सुना दें। कुर्सी का बिछोह सबसे बड़ा गम है। कुर्सीगिरी ऐसे ही नसीब नहीं होती। अपनी कुर्सी कैसे बचाए रखनी है, बस इसी जुगत में सब कुलबुलाते रहते हैं। कुर्सी की ऊँचाई भी छोटी-बड़ी होती रहती है। आपकी कुर्सी दिन दूनी, रात चौगुनी अपना कद ऊँचा करे, इसके लिए हम कुछ नायाब फार्मूले लेकर आए हैं। आप चाहते हैं कि आपको आपकी मनचाही कुर्सी मिले, और आपका सात जन्मों तक का कुर्सी-संगम बना रहे। कुर्सी को विरोधियों की बुरी नजर से बचाव मिले, तो आप ये फार्मूला ज़रूर अपनाएँ। शर्तिया सफलता की गारंटी बिलकुल चांदसी दवाखाने के हकीम की मर्दानगी ताकत वापस दिलाने की गारंटी जैसी। सबसे पहले, अपने गले में रुद्राक्ष की जगह किसी खाती से १०८ मनकों की कुर्सी बीड-नुमा माला बनवा...
नाश्ते का दर्शन शास्त्र
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नाश्ते का दर्शन शास्त्र

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** नाश्ते का अपना एक अनोखा दर्शन शास्त्र है। अगर गहराई से देखें, तो नाश्ता हमारे जीवन के अनसुलझे रिश्तों की रहस्यमयी गुत्थियों का साक्षी है। यह टूटते-जुड़ते रिश्तों में "आई लव यू" से लेकर "आई नीड टू टॉक टू यू" तक के भावों को परिलक्षित करता है। नाश्ता, टेबल पर रखा हुआ है या पेट में जाकर भी यह देखता है कि कौन बिल पे कर रहा है,बिल पे करने में आनाकानी कर रहा है या बिल पे करने में नबाबों की तरह झगड़ रहा है। लेकिन ’पहले आप की जगह पहले मैं ..’ "नहीं, इस बार मैं पे करूंगा। देखो, शादी के बाद तो मुझे ही करना है, क्यों न अभी से आदत डाल लूं!" या फिर लड़की के ब्रेकअप करके चले जाने के बाद लड़का बिल के भुगतान के लिए अपनी जेब टटोल रहा होता है। यह सब कुछ नाश्ता देखता है, भोगता है और जीता है। अच्छा नाश्ता ...
रविवार का इंतज़ार
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रविवार का इंतज़ार

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज रविवार है, आप सोच रहे होंगे जैसे आप सभी के लिए रविवार ख़ास होता है मेरे लिए भी होगा ! नौकरीपेशा लोगों के लिए तो में समझ सकता हूँ, लेकिन मेरे लिए ऐसा नहीं है। निजी चिकित्सा पेशे में होने का मतलब, सन्डे हो या मंडे, रोज दो रोटी के जुगाड़ के हथकंडे। वैसे मैं आपको एक राज की बात बताऊँ, ये नौकरी पेशा लोग भी ना, चाहे जितना दावा कर लें, वीकेंड पर मौज-मस्ती का फोटो इंस्टाग्राम पर डाल कर लाइक्स बटोर लें, लेकिन असल जिंदगी में इनकी हालत घर में ऑफिस से भी बदतर होती है! सच तो यह है की इन्स्टा पर इनकी चमकीली दिखने वाली लाइफ में ज्यादा योगदान फोटो फिल्टरों का होता है, असल में जिंदगी आधार कार्ड के फोटो जैसी ही है सबकी ! क्योंकि घर का "बिग बॉस" जिस प्रकार से इन्हें सुबह से शाम तक घर के कामों में पिदात...
दास्तान-ए-सांड
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दास्तान-ए-सांड

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** जन्म दिवस मेरा अभी दूर है। परिवार में एक महीने पहले ही चर्चा शुरू हो गई है कि इस दिवस को कैसे अनूठा बनाया जाए। इस बार गायों को चारा और गुड़ खिलाकर मनाने का फैसला हुआ है। शहर में भी देखा-देखी कई गौ आश्रम खुल गए हैं। जब से हमारे आयुर्वेदिक प्रचारक योग गुरु बाबा ने हर सौंदर्य प्रसाधन, खानपान, दवा-दारू में गाय का तड़का लगाया है, देश में गायों के प्रति प्रेम उच्च कोटि का जाग्रत हो गया है। गाय और गाय के सभी उत्पाद, जैसे गौमूत्र, दूध, दही, घी, योगर्ट, गोबर, पनीर-सब ५-स्टार रैंकिंग वाले शो रूम में सज गए हैं। देसी गाय की पहुँच अब देशवासियों के लिए अपनी औकात से बाहर की बात हो गई है। यूं तो बचपन से ही गाय हमारे पाठ्यक्रम में थी। गाय पर निबंध से लेकर, बगल में भूरी काकी की काली गाय के गोबर से थापे...
प्लास्टर वाली टांग
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प्लास्टर वाली टांग

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आप चाहते हैं कि आप हमेशा दुनिया की नजरों में बने रहें, सबकी निगाहें आप पर टिकी रहें। जिस गली से गुजरें, लोग आपको देखकर रुक जाएँ, हाल-चाल पूछें, आपको याद करें। बस, आप आ जाइए हमारे पास, लगवा लीजिए एक प्लास्टर ... सच में, हर जगह आपकी पूछ होगी। जो आपको जानते हैं, जो नहीं जानते, सब आपको रास्ते में रोक सकते हैं। अगर आपके हाथ में प्लास्टर लगा हुआ है, तो आप इस शहर के लिए एक चलता-फिरता अजूबा बन सकते हैं। लोग आपको ऐसे देखने लगेंगे जैसे चिड़ियाघर से कोई प्राणी सड़क पर आ गया हो। और अगर आपकी टांग में प्लास्टर लगा हुआ है और आप घर में कैद हैं, तो लोग आपके घर तक भी आ सकते हैं। पुराने दोस्त, रिश्तेदार, मोहल्ले वाले, जो कभी आपका हाल तक नहीं पूछते, वे भी बिना रोक-टोक आपके दरवाजे पर आ जाएँगे। कसम से, रात...
भावनाओं का भंवरजाल
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भावनाओं का भंवरजाल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** भावना ... ! यह शब्द सुनते ही कानों में घंटियों की मधुर आवाज़ और मन में हल्की-सी खुमारी छा जाती है। अरे, इसलिए नहीं कि यह हमारी किसी पुरानी गर्लफ्रेंड का नाम है, बल्कि इसलिए कि वह भी एक जमाना था जब हम भावनाओं से खेलते नहीं थे, बस उनके अधीन रहना चाहते थे। भावनाओं के आधार पर ही ज़माने भर को "भाव" देते थे। लेकिन आजकल भावना कुछ और ही हो गई है। भावना अब वह नहीं रही जो रोम-रोम में बसने वाले भाव थे। बहुत ढूंढा, जी... मन में कई प्रश्न थे। आजकल कहाँ निवास करती है भावना? ये लेटेस्ट वर्जन जो भावना के आ रहे हैं, आखिर इनकी सप्लाई हो कहाँ से रही है ...? क्या भावना का भी चाइनीज वर्जन लॉन्च हो गया है ...? देखो तो, ज्यादा चलती ही नहीं, यार... तुरंत भड़क जाती है। आहत हो जाती है। कोई भावना से खेले या न खेले...
भारत शादी प्रधान देश
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भारत शादी प्रधान देश

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** क्या कहा... भारत कृषि प्रधान देश है? नहीं जी, मुझे तो लगता है कि भारत शादी प्रधान देश है। भारत परंपराओं का देश भी है, और इस नजरिए से देखें तो यहाँ की प्रमुख परंपरा शादी ही है। शादियाँ यहाँ का मुख्य व्यवसाय, खानपान, परंपरा, रीति-रिवाज... सब कुछ हैं! यूँ तो शादियों का भी एक मौसम होता है, जैसे फसलों का रबी और खरीफ होता है। हिन्दू धर्मावलम्बियों में तो यह खासकर देवताओं की दिनचर्या के अनुकूल होता है। देवता जब अपने शयन काल से बाहर आते हैं, यानी देव उठनी एकादशी से शादियों का सीजन शुरू होता है। लेकिन आजकल शादियाँ हर मौसम में पाई जाती हैं! इस देश का आदमी जब कुछ नहीं कर रहा होता या करने को कुछ नहीं होता, या उसे करने लायक कुछ नहीं छोड़ा गया होता है, तो वो शादी निपटा लेता है! खुद की, नहीं तो पड़ो...
दिवाली का दिवालियापन
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दिवाली का दिवालियापन

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली आ रही है। वैसे दिवाली का क्रेज़ बच्चों में था। अब उन्हें पहनने के लिए नए कपड़े, फोड़ने के लिए पटाखे, और चलाने के लिए फुलझड़ियां चाहिए। खाने के लिए दूध, मावे और चीनी की मिठाई चाहिए। अब तो दिवाली आते ही ग्रीन ट्रिब्यूनल वालों का रोना शुरू हो जाता है। एक्यूआई इंडेक्स एकदम सेंसेक्स की तरह उछलने लगता है। सुप्रीम कोर्ट हरकत में आ जाता है। पटाखे और फुलझड़ियां बेचारे गोदामों में घुटन में जीने को मजबूर हो रहे हैं। उधर आदमी एक्यूआई के बढ़ने की सूचना के साथ ही घुटन महसूस करने लगता है। प्रदूषण का धुआँ ठंडे बस्ते में बैठ जाता है। अब दिवाली के एक महीने पहले और बाद तक जो भी प्रदूषण होगा, उसमें दोषारोपण पराली पर नहीं, वह जले या न जले, दोषारोपण तो पटाखों पर ही होगा। आम आदमी को टैक्स स्लैब में छूट ...
भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश
व्यंग्य

भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आइए, आज मैं आपको एक ऐसी रेसिपी बताने जा रहा हूँ, जो एक सीक्रेट फॉर्मूला है, बिल्कुल कोला कंपनी के सीक्रेट फॉर्मूला की तरह। मजाल है कि पेपर लीक की तरह यह लीक हो जाए। इसका नाम है "भ्रष्ट नेता पुष्ट वर्धक च्यवनप्राश"। यह एक ऐसा च्यवनप्राश है जिसे आप किसी भी उम्र के पड़ाव में इस्तेमाल कर सकते हैं, जब आपको नेता बनने का कीड़ा कुलबुलाने लगे। लेकिन अगर आप देखते हैं कि आपके पूत के पांव पालने में ही नेताओं की दुम की तरह हिलते हैं, बच्चे के चेहरे पर भ्रष्ट नेता की तरह कुटिल मुस्कान है, और बच्चा हर सेकंड में मगरमच्छी आँसू बहाता है, तो समझ जाइए कि यह बच्चा आपके सात पीढ़ियों का नाम डुबोने के लिए भ्रष्ट नेता बनने के लिए अवतरित हुआ है। यदि आप बचपन से ही ऐसे बच्चे को यह च्यवनप्राश चटाएंगे, तो निश्चित ही ...
मुझे भी वायरल होना है
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मुझे भी वायरल होना है

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं परेशान, थका-हारा देवाधिदेव, पतिदेव, अभी बिस्तर पर उल्टे मुँह पड़ा ही था कि न जाने कहाँ से नींद ने मुझे आगोश में ले लिया और मुझे सपना भी आया। जी हाँ, वैसे तो नींद के खर्राटों की आवाज़ से डरकर सपने पास आते ही नहीं, जब घरवाले पास नहीं आते तो सपनों की क्या मजाल। खैर, सपना भी अच्छा था, हकीकत से कोई ताल्लुक नहीं रखता था। मैं सेलिब्रिटी बन गया था, जी हाँ, एक बहुत बड़ी सेलिब्रिटी। रातों-रात स्टार बनने वाली सेलिब्रिटी, अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर छपने वाली सेलिब्रिटी, चमचमाती गाड़ी के खुले दरवाजे से सटकर पोज़ देने वाली सेलिब्रिटी, मैगज़ीन के पेज थ्री में छपने वाली सेलिब्रिटी, पपराज़ी की शिकार सेलिब्रिटी। जी हाँ, मेरा एक शॉर्ट वीडियो, जिसे रील कहते हैं, वायरल हो गया। यह रील भी कोई मेरी तुच्छ ब...
छोटी दिवाली
व्यंग्य

छोटी दिवाली

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दीवाली दो होती हैं - बड़ी दीवाली और छोटी दीवाली। कब से दीवाली को इस तरह विभाजित किया गया है, इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन मुझे लगता है इसका भी कोई राजनीतिक कारण होगा। शायद एक मांग उठी होगी जैसे पाकिस्तान देश से अलग हुआ था, वैसे ही। लेकिन गनीमत ये रही कि छोटी दीवाली ने अपना नाम नहीं बदला, जबकि छोटे भारत ने अपना नाम बदलकर पाकिस्तान कर लिया। मैंने देखा है कि बड़ा जो होता है, वह अपनी तानाशाही गाहे-बगाहे चला ही लेता है, छोटे को छोटेपन का अहसास ही बड़ा ही कराता है, चाहे छोटे के दो-चार छोटे और क्यों न हो गए हों। अब पाकिस्तान चाहे अपने आकाओं के इशारे पर नंगा नाच दिखाए, लेकिन हम भारतवासी तो भारत को पाकिस्तान का बाप ही मानते हैं! छोटी दीवाली भी अपनी शिकायत लेकर पहुँची कि मुझे छोटी कहकर सब चिढ़...
राजनीति का जलेबीकरण
व्यंग्य

राजनीति का जलेबीकरण

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** दिवाली की सजावट बाज़ार में जोर पकड़ रही है। हलवाई की दुकान पर खड़ा हूं। पत्नी ने १ किलो जलेबी लाने के लिए कहा है। पता नहीं पिछले दस दिनों से उसकी ज़ुबान पर भी जलेबी चढ़ी हुई है। पहले तो कभी इस मिठाई का नाम भी नहीं लिया कभी। काजू कतली से नीचे बात ही नहीं होती थी। हमने तो सोचा था कि दूध-जलेबी की स्वाद जो गांवों में मिलता था, वो कहीं बचपन में ही छूट गया। अब ताज्नीति के धुरंधर बात भी कर रहे हैं तो जलेबी की ही..दूध की कोई नहीं कर रहा.. ..अभी दूध की बात करें तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए.. । हमारा तो बचपन ही जबेली कहने से जलेबी कहने के बीच का सफ़र है बस ...। गरीबों की दिवाली भी जलेबी से ही मनती थी। उनकी लक्ष्मी पूजा में अगर दो जलेबियाँ मिल जाए, तो कहते फिरते थे, "इस बार दिवाली अच्छी र...
घूंघट के पट खोल
व्यंग्य

घूंघट के पट खोल

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मैं कुछ अति मित्रताप्रेमी किस्म का बंदा हूँ, जल्दी से फेसबुक पर अपने ५ के का टारगेट रीच करना चाहता हूँ, ताकि मेरा पेज भी पब्लिक फिगर बन जाए। सच पूछो तो कुछ सेलिब्रिटी जैसी फीलिंग आती है, शायद मेरी ये भावना फेसबुक के खोजी कुत्ते ने सूंघ ली है। फेसबुक की कृत्रिम बुद्धीमता भी आजकल लोगों की फीलिंग के सूंघ-सूंघ कर पहचान रहा है। फीलिंग के साथ खिलवाड़ करने से पहले सूंघना पड़ता है कि फीलिंग क्या है, उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए। पहले तो मुझे टैग करवाने में बड़ा मज़ा आता था, तो रोज़ मेरे टैगवीर दोस्त मुझे दस-दस तस्वीरों के साथ टैग कर देते थे। पूरी टाइम लाइन इन टैग वीरों के सुहागरात, वर्षगाँठ, सत्य, असत्य विचार, देवी-देवताओं राक्षसों गंदार्भ किन्नरों के फोटो से भरी रहती थी। फिर कहीं से मुझे पता ल...
अब तो दरश दिखा जा
व्यंग्य

अब तो दरश दिखा जा

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** हे लौह पथ गामिनी, अब तो दरश दिखाओ। देखो मेरी स्थिति पर तरस खाओ। पिछली बार तो मैं खुद था जो एक शांत प्रेमी की तरह घंटों तुम्हारा इंतज़ार करता रहा, बहुत इंतज़ार के बाद आखिर तुम आयी ..इठलाती हुई। तुमने एक नज़र मिलाकर भी मेरी तरफ देखना मुनासिब नहीं समझा। मैं भी तुम्हारे हज़ारों आशिकों की भीड़ में कुछ पुराने घायल प्रेमी की तरह "लैला लैला" चिल्लाए तुम्हारे पीछे दौड़ता रहा। वो तो शुक्र है एक मेरे ही जैसे दिलजले का जिसने हाथ पकड़ कर मुझे चढ़ा लिया। लेकिन आज तो मैं मेरे अतिथि को छोड़ने आया हूँ, इस अतिथि ने पिछले १० दिन से मुझे पकड़ रखा है। आज बड़ी मुश्किल से इनका जाने का मन हुआ है। घर से चला था, तुम्हारे ऑफिशियल समय से आधा घंटा लेट चला था, अभी आधा घंटा और हो गया है लेकिन तुम्हारे दर्शन मुझे इस ...
प्यार की नौटंकी
व्यंग्य

प्यार की नौटंकी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ज़िंदगी में सब कुछ तेजी से बदल रहा है। इतनी तेजी से तो मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में मूवी भी नहीं बदल रही है। लेकिन अगर कुछ नहीं बदला है, तो वह है प्यार! जी हां, प्यार जिसे आप प्रेम, अनुराग, आसक्ति, मोह, स्नेह, रति, प्रीति, अनुरंजन, लगाव, अनुरक्त, इश्क़, मोहब्बत, स्नेहसिक्त, प्रेमभाव, राग, नेह, उल्फ़त, चाहत, वफ़ा, रफ़ाक़त और दिल्लगी जैसे साहित्यिक नामों से या हालात-ए-सूरत की असली शब्दावली से निकले शब्द जैसे प्रेम का पेंडेमिक, मोहब्बत का मीज़ल्स, प्यार का पीलिया, चाहत का चिकनगुनिया, आकर्षण का ऐंठन, रूमानी रूबेला, स्नेह का स्वाइन फ्लू, दिल का डेंगू, मोह का मलेरिया, दिल्लगी का दस्त, प्रीत की पथरी, मजनूं का मस्तिष्क ज्वर, माशूका का मतिभ्रम, लगाव का लूज मोशन, चाहत का चेचक, इश्क़ का बुखार, साजन ...
भेड़ियों का आतंक
आलेख

भेड़ियों का आतंक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** शहर का पुलिस थाना, समय दिन का ही कोई.., वैसे भी पुलिस थाने तो २४ घंटे खुले रहते हैं, आखिर अपराध कोई समय देखकर थोड़े ही किए जाते हैं। पहले अपराध रात को होते थे और थाने दिन में खुलते थे, तो बड़ी परेशानी थी। पुलिस वालों को अपनी नींद हराम करनी पड़ती थी। वैसे भी हरामखोरी पुलिस की कार्यप्रणाली में रहे तो ठीक है, अब ये ये नींद में भी आ गई तो पुलिस वालों ने बगावत कर दी। इसलिए उनकी सुविधा के लिए अपराध दिन में ही होने लगे, पुलिस वालों के ऑफिस टाइम से मैच करते हुए। तो हाँ, पुलिस थाने का सीन वैसा ही, जैसा देश के हर कोने में किसी भी पुलिस स्टेशन का हो सकता है। ऑफिस के बरामदे में चार पांच कुर्सियाँ डली हुईं, उनके आगे एक कॉमन राउंड टेबल बिछी हुई। कुछ राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस का सा सीन है जी..। थाने की ...
हिंदी माता
व्यंग्य

हिंदी माता

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ओपीडी में बैठा था कि एक मक्कार मानस नुमा, झूठ-प्रपंच शिरोमणि, मेरे दूर के रिश्तेदार और एक फ्रॉड संस्था में उच्च पद पर काबिज एक महाशय चैंबर में आ धमके। सुबह-सुबह आयी इस पनौती से आज दिन भर का ओपीडी प्रभावित होने की आशंका से ही मन खिन्न सा हो गया। क्या करें? दूर के रिश्तेदार से वैसे मैं दूरी बनाकर चलता हूँ, दूर के रिश्तेदार और सड़क पर सांड कब पटखनी दे दे, कह नहीं सकते। कई बार अपनी पटखनी दिला भी चुका हूँ। खैर, आशा के विपरीत आज तो महाशय एक आमंत्रण कार्ड साथ में लेकर आये। आमंत्रण था ‘चौदह सितम्बर’ को ‘हिंदी दिवस’ पर वो भी मुख्य अतिथि के रूप में। न जाने कैसे उन्हें पता लग गया था कि मैं आजकल हिंदी में लिखने लग गया हूँ। लेकिन हिंदी में लिखने मात्र से ही मैं हिंदी का खेवनहार तो नहीं बन गया। मुझे ...