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Tag: डॉ. बी.के. दीक्षित

गणतंत्र दिवस पर
कविता

गणतंत्र दिवस पर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** गणतंत्र दिवस पर सच्चाई की कविता पढ़ने आया हूँ। उन नालायक़ के गालों पर एक थप्पड़ जड़ने आया हूँ। जिनने मारा था, थप्पड़ उस दिन, सैनिक के गालों पर। था शर्मसार बेज़ार देश .......... नाली के कीड़े सालों पर। घाव हरा होना ही था, बच्चा बच्चा थर्राया था। गद्दारों के हाथों ने, तब झंडा पाक उठाया था। आग लगेगी मुल्क जलेगा, महबूबा फुफकारी थी दिल्ली की गद्दी, क्रोधित हो बहुत खूब हुंकारी थी। औलादें पढ़ें विदेशों में, दिल्ली में घर बनवा डाला। निर्दोष बिचारे बच्चों को पत्थर का बैग थमा डाला। अरे तुम्हारी मक्कारी ने दिल्ली को बिल्ली बना दिया। थी नाइंसाफ़ी ज़ालिम की, हर इक़ पण्डित को भगा दिया। है लिस्ट बड़ी संतापों की, गिन गिन कर बदला लिया नहीं। हर पत्थर का गिन कर ज़वाब, शायद हाक़िम ने दिया नहीं। ये तय है तेरे कर्मों का फल इक साथ मिला तो खलता है। कश्मीर मुक्त, ल...
ख़त की ख़ुशबू
कविता

ख़त की ख़ुशबू

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** मन करता है ख़त लिख दूँ। ख़ुशबू ..... फूलों में भर दूँ। रोज़ सफ़लता पाता हूँ। फ़िर भी क्यों अकुलाता हूँ? वो बात नहीं मोबाइल से। लफ्ज़ लफ्ज़ हैं घायल से। सन्देश खतों में प्यारा था। अद्भुत.......दौर हमारा था। थी ख़ुशबू बहुत प्रसूनों में। थी ठंडक, मई और जूनों में। क़ायनात जभी मुस्काती थी। बरसात तभी हो जाती थी। घूँघट में चाँद सुहाना था। माहौल पूरा दीवाना था। माँ बाप धरोहर होते थे। दुख में गोदी में सोते थे। अब कहाँ प्यार है अपनों में? शुभता गायब है सपनो में। मोबाइल ने ख़त ख़त्म किये। जी भर कर कोई नहीं जिये। नक़ली फूलों में प्यार नहीं। रिश्तों का कोई सार नहीं। यादें अब बहुत सतातीं हैं। दिल की दिल में रह जाती हैं। लिख दो ख़त पहले जैसा तुम। उस युग में लौट चलें हम तुम। बिजू का मन फ़रियाद करे। ख़त लिख कर यूँ कुछ याद करे।   परिचय :- डॉ. बी....
हंगामा है…
कविता

हंगामा है…

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** हंगामा मचाया है..... सियासत के झमेले में। ज़रा तुम पूँछ लो भाई, खुद से खुद अकेले में। बना कानून संसद में, तब मैदान छोड़ा क्यों? महज़ नाटक किया करते, काम अच्छे में रोड़ा क्यों? बिन पेंदी के लोटे हैं, उन्हें साथी बनाया क्यों? माया और शिवसेना? भरोसा यूँ जताया क्यों? लगाकर आग खुश हो तुम, संपत्ति बाप की है क्या? गंदी सोच और तिकड़म मंशा आपकी है क्या? सारे काम कर डाले (मोदी जी ने) जो जितने जरूरी थे। ठोकर ख़ाकर ना सुधरे (राहुल जी) गुरूरी हो गुरूरी थे। अमन और चैन की भाषा, तुम्हें शायद पता है क्या? सोचते क्यों नहीं प्यारे, जलाकर यूँ नफ़ा है क्या? बिजू बहुत अच्छे हैं..... वो सच्चे पथ के अनुगामी। (मोदी,शाह) सपा, बसपा और पंजे की, समझ न आती नादानी। गद्दारों से देश घिरा है, भृम जो भी थे टूट गये। है श्रंगार भाव ना दिल में, इक़ झटके में भूल गये। बिंद...
मोहब्बत
कविता

मोहब्बत

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किताबों से आती ख़ुशबू वही.... पन्नों को रखा था यूँ मोड़कर। कुछ गुलाबों की कलियाँ अधूरी नज़्म, उन्हें देखिये तुम फ़िर जोड़कर। चाँदनी चाँद की न फ़ीकी पड़े, चमक मोतियों की सलामत रहे। एहसास केवल रहे प्यार का, दिल में न कोई अदाबत रहे। जिस मोड़ पर हम मिले थे कभी, याद करके सफ़र सुहाना हुआ। आया ताज़ी हवा का झोंका कोई, ऐसा लगा दिल दिवाना हुआ। आओ चमन में चलें टहलने .... फूल खिलकर गुलाबी गुलाबी हुये। बोलिये न किंचित इक़ शब्द भी, मन के बादल घुमड़ कर शराबी हुये।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध...
करूँ समर्पित
कविता

करूँ समर्पित

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** माँ को करूँ समर्पित जीवन, देश हमारा सुखी रहे। धर्म सभी हों फलदायी, जगह जगह पर ख़ुशी रहे। अमन रहे और चमन रहे, नेह नीर बढ़ता जाये। संदेह भावना नहीं रहे, अलगाव भाव घटता जाये। सरयू के घाट, ठाठ अनुपम, राजा राम सभी के हों। पर्व प्रकाश ह्रदय में हो, पावन कार्य जमीं पर हों। मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में, समभाव प्रीति के दीप जलें। जो भी दुख हों भारत के, हम मिलकर उनको दूर करें। साख़ यूँ ही बढ़ती जाये....पूरी दुनिया में मान रहे। जय हो भारत माता की, बिजू का चर्चित गान रहे।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साह...
दीप बनकर
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दीप बनकर

********** डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर दीप बनकर दिवाली मनायें सभी। छोड़ खामोशी बाहर आयें कभी। है सफाई ज़रूरी ,,,,मग़र ध्यान दो। खाली हाथों को भी कोई काम दो। दौर मंदी का है,तेज ना हम चलें। साथ लेकर सभी को मिलकर बढ़ें। छोड़ दें हम पतली प्लास्टिक पन्नियाँ। इस बार बाटें,,,,,,,, धान गुड़ धनियाँ। मिलावट नहीं,,,,,,,,, शुद्ध आहार हो। पुरातन भारत का,,,,,,,,,,, बाज़ार हो। रूप चौदस पर मिट्टी और उबटन रहे। चौथ करबे की चमके,न विघटन रहे। नृत्य घर घर में हों और भजन श्याम के। मोहब्बत बिना,,,,,,,दीप किस काम के।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष...
छाते में गुज़रे …
कविता

छाते में गुज़रे …

********** डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर म.प्र. छाते में गुज़रे दिनों की कहानी। सारा शहर, हो गया पानी पानी। जाती नहीं, है डटी कब से वर्षा। सूरज के दर्शन को, हर कोई तरसा। ज्यों ही कदम को बाहर निकालें। खुद, कपड़े और क्या क्या संभालें। छायी है काई, दीवालों और दर पे। कीचड़ दिखे है आंगन और घर पे। कहीं डोम गिरते, कहीं लोग मरते। अफ़सोस दिल से करें डरते डरते। हरक़त बढ़ाता ,,,,,,,, दुश्मन हरामी। कटोरे में भूचाल उसका सुनामी। मिटकर ,,मिटाने के नारे लगाता। पाक बेहूदा है,,,,, नहीं शरमाता। चुनावों में मस्ती,कहीं नज़र नहीं आवे। कोई, मम्मी, राहुल को, आंखें दिखावे। सुशासन दिखे ना, ना दिखे कोई रुतबा। डूब कर प्रलय बिच,,,,, करे तौबा तौबा। परेशां बिहारी,,,,,,,,, है परेशान जनता। बिगड़े सभी काम, हर कोई हाथ मलता। करो बंद टोंटी, अब न बरसाओ पानी। बिजू कहे,,,,,,,, जी हो गई बहुत हानी।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्...
रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय
कविता

रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय

============================ रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित सज़ी कलाई राखी से, रह रह कर याद दिलाती है। बहनों का प्यार निराला है, आँख आज भर आती है। बहन बड़ी हो या छोटी, ज़ज्बे में सदा बडी होतीं। दुख कैसा भी घनघोर रहे, सन्मुख सदा खड़ी होतीं। रक्षाबंधन के अवसर पर ही क्यों याद करें केवल उनको। ये रिश्ता है अनमोल जगत में, बतलाना होगा जनजन को। है संयोग आज इस दिन का, संगम ख़ास पुनीत हुआ। पन्द्रह अगस्त, रक्षा बंधन, तीजा, कश्मीर स्वतंत्र हुआ। तीन तीन त्योहारों की,,,,,,,,, शान बहुत अलबेली है। नहीं कलाई है सूनी, ,,,,,,,,,,,बहन न कोई अकेली है। भारत माता की जय बोलो तब बस इतना आभास रहे। हो तुम्हें मुबारक़ पर्व तीन,,,,,,,,,हर्ष और सौगात रहे। भारत माँ के मुखमंडल पर,,,नहीं वेदना कोई भी है। बहुत दिनों के बाद आज माँ,शायद खुश होकर सोई है। हो नमन राष्ट्र के नायक को, और लौह पुरुष को नमन करो। जो आँख दिखाये शत्रु ...
सच में कहीं ये देशद्रोही तो नहीं हैं ?
कविता

सच में कहीं ये देशद्रोही तो नहीं हैं ?

============================ रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित तरस बहुत आता है तुम पर,क्यों सोच आपकी ओछी है? धारा हटी तीन सौ सत्तर,क्यों फ़िर भी चाहत खोटी है? यू एन पर होता यकीन,पर देश प्रतिष्ठा नहीं सुहाती। कश्मीर मुक्त,होगा सशक्त सपने में बात नहीं नहीं भाती। सौ साल पुरानी एक पार्टी,निज कर्मों पर ना शर्माती। सिंहासन है अभिशिप्त ,कभी बेटा कभी मम्मी आती। लौह पुरुष से अमित लगें,मोदी की बात निराली है। देश आपके साथ हुआ,,,अब क़िस्मत खुलने वाली है। हम नहीं गुलामों में शामिल,हैं देश प्रेम के अभिलाषी। नहीं कभी स्वीकार हमें वो,हम हैं सच में भारत वासी। अफ़सोस हमें,क्यों है वज़ूद?जो देश द्रोह की बात करें? हम मोदी के दीवाने हैं,सदियों तक वो ही राज़ करें। कुछ पत्रकार हैं भृमित बहुत,,,,,,,,होता स्वभाव विद्रोही मन। केवल विरोध न कोई शोध,कलुषित है उनका तन मन धन। हम मोदी के अनुयायी हैं,,,देश प्रेम सर चढ़ बोले।...
फ़िर से शेर दहाड़ा है
कविता

फ़िर से शेर दहाड़ा है

==================================== रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित काश्मीर की घाटी में फ़िर से शेर दहाड़ा है। आतंकी बिल में छुपे हुए है,ढंग से उन्हें पछाड़ा है। कल तक जो गुर्राती थी,हाथ जोड़ कर कहती है। घर में हो गई नज़रबन्द, आंखों से नदिया बहती है। भौंक रहे हैं नहीं कहीं भी,,,,,श्वान आज कश्मीर में। स्वाद नहीं आ रहा उन्हें अब पकवानों या खीर में। घोर विरोधी भी होकर जो ,,,,,,,एक साथ गुर्राते थे। नफ़रत फ़ैलाकर नेता,,,, वो देशभक्त कहलाते थे? खुद की संतानों को जिनने,,, बड़ा किया विदेशों में। खौफ़ जहर की खेती करके,फ़सल उगाई खेतों में। हिन्दू मुस्लिम कभी न लड़ते,लड़ती सदा सियासत है। चैन अमन अब लौटेगा,,,,,,क्यों कहते हो आफ़त है? अमित शाह, मोदी जी की जोड़ी के हाल निराले हैं। पहली बार लगा है सबको,,,ये भारत के रखवाले हैं। पैंतीस ए तो ख़त्म हो गई,राज्य केंद्र के आधीन हुआ। पूरी तरह कश्मीर हमारा,समझो ...
बिना बेटियों के
कविता

बिना बेटियों के

============================ डॉ. बी.के. दीक्षित बिना बेटियों के घर सूना तो होता है। उत्साह हमारा देख इन्हें,दूना होता है। रूह तलक ठंडी ठंडी है,,,,,,,बेटी की बातों से। सो जाऊँगा आज बेफिकर,जगा हुआ हूँ रातों से। रीति पुरानी सदियों की,क्यों कमतर बेटी मानी जाती? जिम्मेदारी में हर बेटी,,,,,,इक़ तरुवर सी जानी जाती। नहीं सुधार हुआ दुनिया में,महिलादिवस मनाते क्यों? हक़ होना बेटी पर कितना,कुछ लोग हमें समझाते क्यों? संस्कार ,व्योहार ,प्यार और अदब ज्ञान की खूबी है। खुशियों भरा खज़ाना बेटी,वाकी दुनिया झूठी है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के ...