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Tag: डॉ. कांता मीना

जामुन का पेड़
कहानी

जामुन का पेड़

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** उज्ज्वल अपनी मां से बोला, मां मैं कल शहर चला जाऊंगा तो फिर एक महिने बाद ही आना होगा। इसलिए में अपने दोस्त केशव से मिलकर आता हूं, वो भी परसों अपनी नौकरी पर चला जायगा। फिर ना जाने कब मिलना होगा। अभी आता हूं। हां, चला तो जा पर शाम को थोड़ा जल्दी आ जाना, तेरी बुआ आयेगी तुझसे मिलने, हां ठीक है। उज्ज्वल अभी घर से निकला ही था कि बरसात होने लगी एक बार तो सोचा वापस घर जाकर छाता ले आता हूं। तभी विद्यालय की ओर से आती हुई घंटी की आवाज उज्ज्वल के कानों में पड़ी, उसने सोचा क्यों ना स्कूल की दीवार के पास खड़ा हो जाता हूं। जिससे बरसात में भीगने से बच जाऊंगा। बच्चों के शोरगुल की आवाज ने उसके मन में भी स्कूल के दिनों की याद ताजा कर दी थी। बरसात कुछ देर रुक गई। पर पेड़ो के पत्तो पर ठहरा पानी अभी भी धीरे-धीरे करके टपक रहा था। उज्ज्वल अब चल पड़ा...
बदलते मौसम
कविता

बदलते मौसम

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** बदलते मौसम का हाल ही कुछ ऐसा है। सवाल हर बार नए से है। जवाबों का हाल ही कुछ ऐसा है। नन्ही चिरैया की चोच से गिर पड़ा है, तिनका फिर से, घरौंदे बनाने का भार ही कुछ ऐसा है। शाम को ढल जाने की फुर्सत ही कहां है। राहगीर को घर जाने की जल्दी है। घर का ख्याल ही कुछ ऐसा है। आप ही आप छाए हो ज़हन में, आपका किरदार ही कुछ ऐसा है। कागज की कश्तियां बना रहा है। अल्हड़मन फिर से, पानी का बहाव ही भी कुछ ऐसा है। दस्तूर नए से हैं, इस शहर के। हर एक मोड़ का सूरत-ए-हाल ही कुछ ऐसा है। बदलते मौसम का हाल कुछ ऐसा है। सवाल हर बार नए से हैं। जवाबों का हाल ही कुछ ऐसा है। परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी ...
प्रतिद्वंदी
कविता

प्रतिद्वंदी

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** अच्छा चलो कल से हम नहीं रहेंगे, तुम्हारे प्रतिद्वंदी, क्यों ना हम भी कर लें इसी बात पे रजामंदी बेवजह दिखाता नहीं कोई आजकल किसी से भी हमदर्दी एक अरसे से वैसे भी हम यही बात सुना करते हैं। सदा से ही चला करती है मानवता के द्वार पर मंदी फिर क्यों उलझे हम बेवजह एक दूजे से इस बात पर की कौन बाहर का है और कौन घर का बस विचार तुम्हारे हमारे बेमेल है। सब सिद्धांतों का ही तो खेल है। अच्छा चलो कल से हम नहीं रहेंगे तुम्हारे प्रतिद्वंदी। परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के...
गर्मियों की जब छुट्टियां आई
कविता

गर्मियों की जब छुट्टियां आई

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** गर्मियों की जब छुट्टियां आई, नाती-पोते को देखकर दादा -दादी के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान जो आई। नन्हें-नन्हें बच्चों को देखकर आंगन में जैसे खुशियां सी छाई। गर्मी से बचने के खातिर बुआ बच्चों के लिए नींबू पानी बना लाई। पीकर बच्चों ने जो धमा चौकड़ी मचाई दरवाजे के बाहर से बर्फ के गोले वाले भैया की आवाज जो आई। दादी-अम्मा ने बच्चों को आवाज लगाई। लो बच्चों अपनी-अपनी पसंद का बर्फ का गोला खा लो। अपनी लुगड़ी के पल्ले की गांठ से कुछ रुपए निकाल कर दादी फिर से मुस्कुराई। और बोली काला खट्टा मेरे लिए बुआ के लिए गुलकंद वाला शरबत और दादाजी के लिए सतरंगी बर्फ का गोला लेकर आना। फिर बच्चों ने जोर-जोर से बर्फ के गोले वाले भैया को अपनी अपनी पसंद बताई। खाकर बर्फ के गोले को बच्चों ने फिर अपनी-अपनी जीभ दिखाई, गर्मि...
बस एक मौका
कविता

बस एक मौका

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** बस एक मौका मांगता रहा आवारा बादल फिर से बरस जाने को, किनारे पर ही खड़ी रही, ना जाने कितनी कश्तियां मौका मिलते ही समुद्र में उतर जाने को। कुछ उम्दा गोताखोर खड़े रहे, अपने मालिकों के इशारे के इंतजार में, डूबती जानें व खजाना बचाने को। गुमनामी की गलियारों में खो जाते कुछ चमचमाते सितारे। आते नहीं कभी फरिश्ते भी उन्हें बचाने को। बस एक मौका मांगता रहा आवारा बादल फिर से बरस जाने को। परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्द...
सत्ता का ख्वाब
कविता

सत्ता का ख्वाब

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** सत्ता में वापस से आने का ख्वाब, उस मगरूर नशे में चूर, राजा के सीने में कुछ इस तरह से पल रहा था वो सिंहासन बैठा हट्टाहास कर रहा था वो जल रहा था या जलवाया जा रहा था इधर उधर की बातों से भोली भाली जनता का मन बहलाया जा रहा था। मुफ्त वाली रेवड़ियों का थेला हर किसी के हाथों पकड़ाया जा रहा था। सत्ता के गलियारों में वापस आने की खातिर मसला कुछ इस तरह से सुलझाया जा रहा था। भाइयों को भाइयों से आपस में लड़वाया जा रहा था। मानवीयता भी अब यहां शर्मसार थी। यह उसकी जीत के बाद की सबसे बड़ी हार थी। अमृत काल में यह कैसी जहर भरी बौछार थी। बेआबरू हो चुके थे जो पहले ही, उनकी जुबान लाचार थी। इंसानियत भी अब यहां तार तार थी। मेरी कलम भी अब रो रही थी । शायद लोकतंत्र की ये सबसे बड़ी हार थी। मां भारती की आंखे भी जार जा...