Saturday, November 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: डॉ. ओम प्रकाश चौधरी

बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं
आलेख

बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ’यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो, तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रही हों, तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो’? इसी संदर्भ में मुजफ्फरपुर के जनाब आदित्य रहबर लिखते हैं, यदि इसका जवाब हां है तो मुझे आपसे कुछ नही कहना है, क्योंकि आपके अंदर की संवेदना मर चुकी है और जिसके अंदर संवेदना न हो, वह कुछ भी हो लेकिन मनुष्य तो कत्तई नहीं हो सकता है। आज कोरोना महामारी ने जिस तरह से हमारे देश में तबाही मचा रखी है, उसमें किसी की मृत्यु,किसी की पीड़ा पर आपको दुःख नहीं हो रहा है, तो निश्चित ही आप अमानवीय हो रहे हैं। जब देश में चारों ओर कोहराम मचा है, प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग (जो एक दि...
आओ लौट चलें अपने गांव…
आलेख

आओ लौट चलें अपने गांव…

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   अचानक आज शाम को राम निहोर काका की याद आ गई, आए भी क्यों न, शाम को वर्षों तक किस्सा सुनाते जो आए थे। एक थे राजा, एक थी रानी (राजा ब्रिज व रानी सारंगा) से शुरू होकर, राजमहल से जंगल तक की सैर कराते थे, मिलन, विरह, श्रृंगार, करुण, वीर सभी रसों से सराबोर कर देते थे। कभी-कभी आकाश विचरण भी करा देते थे, चारपाई पर लेटे-लेटे ही, मैं और बड़े भाई-कम-बचपन से आज तक के जिगरी दोस्त डॉ सेवाराम चौधरी (अवकाश प्राप्त वरिष्ठ जेल अधीक्षक) हुंकारी भरते-भरते कब सो जाया करते थे, पता ही नहीं चलता था, मानों काका हम लोगों को सुलाने ही आते थे। आज राम निहोर काका चिर निद्रा में चिर शांति के लिए विलीन हो गए हैं, उनकी याद में आंख का कोना गीला हो जाना स्वाभाविक है। उन्हें परमात्मा शांति दें व अपने चरणों में स्थान। हम लोग...
खेत-खलिहान : खेती बचाइए, किसान बचाइए, देश को खुशहाल बनाइए
आलेख

खेत-खलिहान : खेती बचाइए, किसान बचाइए, देश को खुशहाल बनाइए

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                    दुनियां में सबसे ज्यादा कीमत तीन चीजों की है- जमीन, कच्चे तेल और हथियारों की। इनमें से एक चीज किसान के पास है फ़िर भी किसान आत्महत्या की दर १०,००० प्रतिवर्ष से अधिक है। एक दुकानदार, व्यापारी या व्यवसायी के पास अगर ५० लाख का माल दुकान में भरा है तो वो महीने का ५० हज़ार तो कम से कम कमा ही लेता है। जबकि भारत में ७-१० बीघा जमीन की कीमत भी इस से ज्यादा होती है और उतनी जमीन में ५० हज़ार महीना मतलब ६ लाख सालाना की बचत नहीं होती। बचत छोड़ो ४-५ बीघा वाले किसान को छोटा किसान समझा जाता है। ४-५ बीघा खेत वाला किसान अपने बच्चे को किसी अच्छे स्कूल में नहीं पढ़ा सकता, बीमार हो जाने पर अच्छा इलाज नहीं करवा सकता है, और न ही अच्छे कपड़े आदि खरीद सकता है। उसका खर्च मुश्किल से चलता है। वह देश की अर्थव्यवस्था के ...
महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें
आलेख

महापर्व दीपावली पर सब मिलकर धरा के तिमिर को दूर करें

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ जहां कहीं एकता अखंडित, जहां प्रेम का स्वर है। देश-देश में वहां खड़ा, भारत जीवित भास्वर है।। कविवर श्रेष्ठ दिनकर जी की पंक्तियां 'एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है।' सम्पूर्ण विश्व में भारत का एक अनुपम और अनूठा स्थान है, तो इसका बहुत सा श्रेय यहां की कालजई सभ्यता व संस्कृति का है, को प्राकृतिक रूप से हम सभी में विद्यमान है। प्रकृति की ही देन सारा विश्व है। भारत प्राकृतिक एवं भौगोलिक सुन्दरता को दृष्टि से विश्व का अनोखा और अद्भुत राष्ट्र है। लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष में त्योहार, रीति-रिवाजों, लोक प्रथाओं, सामाजिक मान्यताओं, मनोविनोद के साधनों की बहुलता व विविधता से हमारा भारतीय समाज ओत प्रोत है। किसी भी समाज या राष्ट्र के परिष्कार की सुदीर्घ परंपरा होती है। उस परंपरा में प्रचलित उन्नत, उदात्त व उत्तम विचारों की श्र...
मानसिक स्वास्थ्य को कैसे रखें दुरुस्त?
स्वास्थय

मानसिक स्वास्थ्य को कैसे रखें दुरुस्त?

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ विगत कई महीनों से हम सभी प्रायः घरों में ही कैद हैं अत्यंत आवश्यक होने पर ही घरों से बाहर निकल रहे हैं। आफिस का काम घर से ही 'वर्क फ्रॉम होम' कर रहे हैं। लोगों से मिलना-जुलना, चौराहे, चट्टी, हाट-बाजार में जाना न के बराबर हो गया है। सुख-दुःख बांटने का अवसर अब केवल संचार माध्यम से हो रहा है। जियनी-मरनी, शादी-विवाह में शामिल होना दूर की बात हो गयी है। मुहल्ले,कॉलोनी में कोई कोरोना पॉजिटिव हो गया तो 'हॉट स्पॉट'होते ही बांस-बल्ली से घिरकर घरों में रहने को अभिशप्त। ये सभी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। वास्तव में जो 'सोशल दिस्टैंडिंग'की बात की जा रही है, वह लोगों से आपस में भौतिक दूरी बनाए रखने की अपील है ताकि एक दूसरे को संक्रमित होने से बचाया जा सके।लोग घरों में रहने के लिए बाध्य हैं। प्रतिदिन अट्ठाईस...
जीवंत गाँव : आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत
आलेख

जीवंत गाँव : आत्मनिर्भर भारत, सशक्त भारत

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                             आजकल 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' का नारा बुलंदियों पर है, हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्रद्धेय मोदी जी का नया संकल्प आत्मनिर्भर भारत का है। यह नया संप्रत्यय या संकल्पना नहीं है अपितु अत्यंत पुरानी है। राष्ट्रपिता बापू तो स्वराज की कल्पना ही आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान, आत्मगौरव और राष्ट्र बोध के रूप में ही करते थे। पहले हमारे गाँव आत्मनिर्भर थे। आपसी भाई-चारा, सद्व्यवहार, शालीनता, संस्कार वहाँ के जन जीवन में रचा बसा था। लेकिन, विकास, आधुनिकता, नगरीकरण, वैश्वीकरण, वर्चस्व और सत्ता की भूख ने सब निगल लिया। गाँवों की क्या गजब जीवन शैली थी, पुजारी और पशुच्छेदन करने वाले चमकटिया, सबकी अपनी-अपनी इज्जत थी, सम्मान था। कोई किसी भी जाति का हो, सबसे कोई न कोई रिश्ता था- बाबा, काका-काकी, भाई-भौजी, बूढ़ी माई, बुआ, बह...
कोविड-१९ लॉक डाउन-अनलॉक डाउन- एक मनोसामाजिक विवेचन
आलेख

कोविड-१९ लॉक डाउन-अनलॉक डाउन- एक मनोसामाजिक विवेचन

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                   कोरोना वायरस मानव इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना है।अकस्मात आयी इस विपदा से निजात पाने की अनिश्चितता विश्व के समस्त देशों में है। व्यवसाय-व्यापार, निर्माण कार्य बंद हो जाने से सामाजिक-अर्थिक स्थिति परिवर्तित हुई है।लोगों में लॉक डाउन के कारण अलगाव व विवशता बढ़ी हैं। हमारे सामाजिक व मानसिक दृष्टिकोण परिवर्तित हुए हैं। सोच का दायरा, रहन-सहन, जीवन शैली, आचरण, व्यवहार में परिवर्तन आया है। घर मे लगातार पड़े रहने से लोगों में उत्तेजना बढ़ रही है। कोरोना वायरस से जो बेबसी और निराशा उभरी है, उससे हमारा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। हम इस समय सामाजिक परिवर्तन से गुजर रहे हैं, धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक मान्यताएं, मापदंड परिवर्तित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारा शारीरिक व मनोसामाजिक ...
चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना
आलेख

चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                     कभी यह गाना हमारे बहुत ही अजीज अच्छू बाबू (श्री अच्छेलाल राजभर) प्रायः गुनगुनाया करते थे। आज सुबह-सुबह अच्छू बाबू की याद आयी और यह गीत अनायास ही मेरी जुबान पर आ गया। मन बड़ा बोझिल हुआ। आज इस कोरोना वायरस से उत्पन्न हुई महामारी के कारण जो पूरे देश में भारतीय गरीब मजदूरों का देश के कोने-कोने से पलायन हो रहा है यह काफी दर्द भरा एवं खौफनाक मंज़र है। यह मंजर कभी हमारे पुरनियों ने १९४७ में भारत विभाजन के दौर में अपने आंखों से देखा था। उसमें से श्री लालकृष्ण आडवाणी जी जैसे महानुभाव भी अभी हैं, जो विभाजन में यहां आ गए थे। उस खौफनाक मंज़र को हमलोगों ने तो फिल्मों में ही देखा या सुना है। वह मंज़र देख कर दिल दहल जाता है। आज वही मंज़र जब भारत स्वतंत्र है तब देखने को मिल रहा है। बस अंतर यही है कि...
कोरोना:  सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक एवं आर्थिक आपदा
आलेख

कोरोना: सामाजिक, सांस्कृतिक, मानसिक एवं आर्थिक आपदा

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************                                           भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में शुमार हैं, इसके मूल्य और विश्वास, सत्य, अहिंसा, त्याग सम्पूर्ण विश्व को आलोकित करते हैं। जन-जन से परिवार, परिवारों से समाज, समाजों से राष्ट्र का निर्माण होता है। अपने देश भारत का निर्माण इसी संकल्पना पर आधारित है। शाश्वत मूल्य, 'अनुव्रत:पितुः पुत्रः' (पुत्र पिता का अनुवर्ती हो) अर्थात निर्धारित कर्तव्य का समुचित रूप से पालन करने वाला हो। 'सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम' से भारतीय संस्कृति अनुप्राणित है। हमारे यहां कहा गया है कि मनुष्य दूसरों का अध्ययन न कर स्वयं के अध्ययन में समय व्यतीत करे, हमेशा दूसरों की भलाई के बारे में विचार करे। इस वैश्विक परिदृश्य में कोविड-१९ को हमें सम्मिलित प्रयास से ही अपने इन्हीं प्राचीन शाश्वत म...
सत्य, अहिंसा, त्याग की प्रतिमूर्ति भगवान बुद्ध
आलेख

सत्य, अहिंसा, त्याग की प्रतिमूर्ति भगवान बुद्ध

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ वह जन्म भूमि मेरी, वह मातृ भूमि मेरी। वह धर्मभूमि मेरी, वह कर्मभूमि मेरी। वह युद्धि भूमि मेरी, वह बुद्धभूमि मेरी। वह मातृ भूमि मेरी, वह जन्मभूमि मेरी। पंडित सोहन लाल द्विवेदी की यह पंक्तियाँ भारत की संस्कृति व सभ्यता इस तथ्य को उदघाटित कर रही हैं कि तथागत भगवान बुद्ध भारतीय संस्कृति के अधिक निकट हैं। भारतीय संस्कृति और मानव कल्याण के उत्थान के लिए बुद्ध की अहिंसा और सत्य का अतुलनीय योगदान है। सम्पूर्ण विश्व मे सबसे पहले शांति और अहिंसा का पाठ हमारे महान राष्ट्र भारत ने ही पढ़ाया था। अखिल विश्व का सबसे प्राचीन सभ्यता वाला देश, जिसने अपनी सभ्यता व संस्कृति के प्रकाश से सारे जगत को आलोकित किया था। "यूनान मिश्र रोमा मिट गए जहां से, कुछ बात है कि मिटती नहीं हस्ती हमारी।" भारत की सुदीर्घ उदात्त विचारों की श्रृंखला का जयघोष क...
माता भूमि:पुत्रो अहं पृथिव्या:
आलेख

माता भूमि:पुत्रो अहं पृथिव्या:

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार रहती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ पर चलती गाड़ियों की शोर नही गूंजती जिस जगह की हवा कभी प्रदूषित नही रहती सारे जानवरों की आवाजें सदा गूंजती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ नदियों व झड़नों का पानी पिया जाता है जहाँ जानवरों के बच्चों के साथ खेला जाता है बिना डर के जानवर विचरण करते हैं जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। पहाड़ जहाँ सदा शोभा बढ़ाते हैं धरती की नदियाँ जहाँ सदा शीतल करती हैं मिट्टी को वातावरण अपने आप में संतुलित रहता है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। . परिचय :- डॉ. ओम प्रकाश चौधरी निवासी : वाराणसी, काशी शिक्षा : एम ए; पी एच डी (मनोविज...