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Tag: डॉ. अर्चना राठौर “रचना”

अटल व्यक्तित्व के धनी “अटल”
कविता

अटल व्यक्तित्व के धनी “अटल”

डॉ. अर्चना राठौर "रचना" झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** अटल रहा हर लक्ष्य जिनका अटल थे सब इरादे, कथनी करनी एक थी जिनकी, सभी निभाये वादे वाणी की प्रखरता करती मानव मन को झंकृत अलंकृत कर भारत रत्न से राष्ट्र हुआ है उपकृत। राजनीतिक षड्यंत्रों सेे थे दूर रहते वे सदा, बोलने से पहले थे, सौ बार वे सोचते सदा। कवि थे निराले, कभी भावुक हो जाता था मन, सीधे- सादे शब्दों में वे खोल देते थे अपना मन। देश के मुखिया थे हमारे, अटल थे जिनके इरादे भारत मां के लिये जियेे, थे सेवा में प्राण त्यागे। परिचय :- डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी : झाबुआ, (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
विश्व की ये शक्ति
कविता

विश्व की ये शक्ति

डॉ. अर्चना राठौर "रचना" झाबुआ म.प्र. ******************** बिटियां होतीं प्यारी-प्यारी, घर की होती हैं फुलवारी। रंग-बिरंगे फूलों जैसी, सजती इनसे घर की क्यारी। मां की होतीं सखी वे प्यारी, और पिता की राजदुलारी। जिनके घर जन्मे है बेटी, उनकी दुनिया हो उजियारी। मात-पिता की सेवा करतीं, कभी ना होती उनसे न्यारी। नहीं किसी से कम है बेटियां, देख रही ये दुनिया सारी। जगमग करता है घर इनसे, रौनक होतीं घर की प्यारी। ईश्वर की रचना है निराली, विश्व की ये शक्ति सारी। परिचय :- नाम - डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी - झाबुआ, (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gm...
हिन्दी हमारा स्वाभिमान
कविता

हिन्दी हमारा स्वाभिमान

डॉ. अर्चना राठौर "रचना" झाबुआ म.प्र. ******************** अंग्रेजी अनिवार्यता है मगर हिन्दी हमारी माता है, अंग्रेजी विदेशी भाषा है, मगर हिन्दी मातृभाषा है। उपयोग इसका अधिक करें, माता का सम्मान करें, मातृ भाषा है हमारी, सदैव इस पर अभिमान करें। भूल रहे सब कलियुगी बच्चे, हिन्दी हमारी भाषा है, विदेशी अंग्रेजी भाषा को ही, समझें अपनी भाषा है। चल रहा षडयंत्र ये कैसा क्या मासूम समझता है, मात-पिता को भी क्या समझ नही कुछ आता है। बाहरी कार्यों के लिये उपयोग की भाषा अंग्रेजी है, मगर न बोले हिन्दी घर पर ऐसी क्या मजबूरी है। देश कोई भाषा का अपनी करता नही अपमान है, करता जो अपमान वो सिर्फ अपना हिन्दुस्तान है। आजादी को प्राप्त करके, हो गये वर्ष पिचहत्तर हैं, बुखार चढ़ा अंग्रेजियत का, मानसिक ये गुलामी है। महत्वपूर्ण क्यों हिन्दीं है, बच्चों को हमें बताना है, बिल्कुल मां जैसी है हिन्दी, उनकोे ये समझाना है...
राज
कविता

राज

============================= रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर "रचना" ये राज न कोई जान सका , दुनियाँ ये कैसे चलती है , दिन - रात ये कैसे होते हैं और घूमती कैसे धरती है| ये राज न कोई जान सका, क्यों सूरज आग उगलता है , क्यों चाँद ये घटता - बढ़ता है, कैसे शीतलता देता है | साइंस ने राज ये खोल दिया, कि धरती कैसे घूमती है , सूरज क्यों आग उगलता है, ये चाँद क्यों घटता-बढ़ता है| पर क्या ये साइंस बता सका कि क्यों केदारनाथ शेष रहा , क्यों दैदीप्यमान ज्वालादेवी,क्यों गौमुख से जल बह रहा | धरती क्यों गोल-गोल घूमें , किस पर आखिर ये टिकी हुई , क्यों आसमान नीला दिखता , क्यों दिखे है बादल जैसे रुई | क्या राज ये कोई जान सका, क्यों सागर में ही हैं मोती , क्यों सोना उगले ये धरती, क्यों इस पर ही होती खेती | गर साइंस में इतनी है शक्ति, तो आसमान में करें खेती | क्या राज ये कोई जान सका, क्यों नारी ही सृष्टि कर्त...
श्रद्धांजलि
कविता, संस्मरण

श्रद्धांजलि

============================= रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर "रचना" देकर श्रद्धाँजलि, दी सु-षमा को शमा धरती माँ है बहुत उदास, पर है आकाश भी उदास | खो दिया है आज उसको , देती थी जो सबको आस | भारत माँ का थी अभिमान, देश की थी आन और बान | सीता चरित्र ,नारी की शान, करते सब जिसका सम्मान | दहाड़ती जब  शेरनी  सी , हो सदन में खलबली सी | वो बोलतीं बेबाक थीं जब , सब देखते अवाक् थे  तब | ज्ञान की  भंडार थी  वो , संस्कृति का मान थी जो | वक्तव्य भिन्न भाषाओं में , करती विदेश जाती थीं तो है नभ रो रहा,धरा भी रो रही , बिटिया तो चिर निद्रा सो रही| अब तो नदियां सी हैं बह रहीं , यहाँ-वहाँ नयनों से हर कहीं | करते हम सलाम उनको , देकर सब सम्मान उनको | ह्रदय से सुमन अर्पित कर, हार्दिक श्रद्धाँजलि उनको | लेखिका परिचय :- नाम - डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी - झाबुआ, (म...
दिन चर्या है चारों धाम
कविता

दिन चर्या है चारों धाम

============================= रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर "रचना" दिन चर्या है चारों धाम दिनचर्या है हर प्राणी  की, लगभग होती एक समान। पूजा अर्चना गुरू वंदना, प्राणायाम औ फिर व्यायाम। सुबह से उठकर गृहिणी करती, बारी - बारी सारे काम। जब आती भोजन की बारी, वो ही बनाती भोजन पान। अन्नपूर्णा के हाथों  का, स्वादिष्ट भोजन और जलपान। छककर जीमें बच्चे-बूढे़, संग मेहमान और मेजबान | कहीं सम्हाले घर को नारी , कहीं सम्हाले दोनो काम। बच्चे स्कूल कॉलेज हैं जाते, और पतिदेव अपने काम। पढ़लिख दिन भर मेहनत करके, जब आवे वे घर को शाम। मात - पिता और दादा-दादी संग, सब मिल बेठे इक ही धाम। भोजन कर अपने कक्षों में, सब होते जब अंतर्धान। वह बच्चों को पूर्ण कराती, विद्यालय से मिला जो काम। गृहकार्य से निवृत्त होकर, तब लेती है वो विश्राम। सुखद स्नेहिल परिवार की, धुरी है नारी सुबहोशाम...