Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: जनार्दन शर्मा

हाँ वो पैसे बचाते थे
कविता

हाँ वो पैसे बचाते थे

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** पुरानी पेंट रफू करा कर पहनते जाते थे, ब्रांडेड नई शर्ट देने पे आँखे दिखाते थे टूटे चश्मे से हीअख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते थे टोपाज के ब्लेड से ही वो दाढ़ी बनाते थे हा वो  पिताजी  पैसे बचाते थे …. कपड़े का पुराना थैला लिये दूर की मंडी तक जाते थे, बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते थे आटा नही खरीदते, वह तो गेहूँ पिसवाते थे.. वो  पिताजी ही थे जो पैसे बचाते थे… वो स्टेशन से घर तक पैदल ही आते थे सदा ही रिक्शा लेने से कतराते थे। अच्छी सेहत का हवाला देते जाते थे ... बढती महंगाई पे हमेशा चिंता जताते थे वो  बाबूजी थे जो सबके लिये पैसे बचाते थे ... कितनी भी  गर्मी हो वो  पंखे में बिताते थे, सर्दियां आने पर रजाई में दुबक जाते थे एसी/हीटर को सेहत का दुश्मन बताते थे लाइट खुली छूटने पे नाराज से हो जाते थे वो पप्पा ही थे जो भविष्य के लिये पैसे बचाते थे....
नर्स
कविता

नर्स

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** वर्षो से देखा सबने, सुदंर सफेद परिधानों से सज्जित, सदा अपने अधरो पर लिये, मधुर मुस्कान, वो तरूणाई । सदा सेवाओ में तत्पर रहती, जो किसी ने आवाज लगाई। सीस्टर कहा किसी ने, तो कहा किसी ने नर्स, कोई कहता नर्स बाई, वात्सल्य, सेवा, त्याग की, मूरत, सदा करती हैं सब कि भलाई। जो रक्त देख के रहे निडर, जन्म, मृत्यु देख न कभी हो घबराई। मां सी ममता उड़ेल, जन्म से, रोते बच्चों की बन जाती आई। मन, मे प्रेम, कोमलता, दया के, भाव लिये सदा ही वो मुस्कुराई। प्रेम दिया किसी ने तो किसी ने, उसका कही अपमान भी किया। पर अपनी सेवा में कोई कमी न रख, हर मरीज को ठीक कर, मुस्कुराई हर मरीज के मर्ज से रिश्ता जोड़, वो मीठे से सुईया चुभाती हैं। कभी प्यार से तो कभी डांट के, वो कड़वी दवा भी खिलाती हैं। जिसका दिल है दयावान, सेवा भाव से सदा सबकी सेवा करती आई है, अपने दर्द को...
माँ
कविता

माँ

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** राम लिखा कीसी ने, कीसी ने गीता लिखा किसी ने बाईबल, तो गुरुग्रंथ और क़ुरान लिखा, जब बात हुई पूरी दुनियाँ को, एक शब्द में लिखने की तब मैंने हे"माँ" तेरा ही नाम लिखा, माँ तेरा ही नाम लिखा,,,, कैसे कहूँ कि माँ तुम्हारी याद नहीं आती चोट मुझे लगती थी, आंखें तेरी भर जाती मेरे घर न आने तक, तेरी साँसे गले में ही अटकी सी रह जाती थी। कैसे कहूँ कि माँ तेरी याद नहीं आती, कैसे कहूँ कि माँ तेरी याद नहीं रुलाती आज भी ठोकर लगतीहैं, तो ओ,माँ,,, कहकर मुझे तेरा ही अहसास दिलाती है, कैसे कहूँ माँ मुझे तेरी याद नही आती। तुमने ही जन्म देकर, इस दुनियामें लाया। जीवन यह मां, मैने तुमसे उपहार मेंपाया। मेरे जीवन का, हर पाठ मुझे तू ही पढ़ाती कैसे कह दूं माँ मुझे तेरी याद नही आती। शायद इसलिए सब कहते है... कि माँ कबीर की साखी जैसी तुलसी की चौपाई-सी माँ मीरा की पदाव...
होली है
कविता

होली है

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** बुरा ना मानो होली है। ढोलक कि मादक थाप पर, हाथो में रंग लिये चली टोली हैं टेसू के फुलो से रंगी ये धरती, ठंडी बयार की ठिठोली है। प्रेम के रंगो से रंग दो आज कान्हा प्यार की होली है। उड़े रंग गुलाल कहे सखी सबसे, बुरा ना मानो होली है। पत्नी होती गुस्से में लाल, पीली ,पति चढ़ाये भांग गोली बच्चे करते मस्ती पास, पड़ोस के चेहरे गुस्से से लाल हो,हो,हाहा अआ कि आवाजो पे नचवाए ढोली हैं बुरा ना मानो होली है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ससुराल में गये जमाई, सालीया देख हैं मुसकाई, जिजाजी की रंगो से, सब करती पुताई, हैं बरबस ही देती गारी, नही निकलती बोली है। बुरा न मानो होली है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,। दल बदल का खेल बुरा है, नेताओ का हाल बूरा हैं बातो का किचड़ उछाले, सत्ता हथियाने कि होड़ में अब तो खुलेआम, लगती नोटो कि बोली है। बुरा न मानो होली है.... . पर...
ऋतु राज बसंत
कविता

ऋतु राज बसंत

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** देखो मां शारदे के बसंतोउत्सव की, बही बासंती बयार है। मां स्वरपाणी के चरणो को करते, बारंबार वंदन नमस्कार है। विद्या, बुद्धि, स्वर, वाणी कि देवी का, करते हम पूजन है। आओ ऋतु के राजा बसंत, आपका करते हम अभिनंदन है। शिशिर कि सर्द हवाये भी अब हमसे दूर होती जाती है। जाडो़ कि कुनकुनी लगती धूप में भी, चूभन सी आती है। हरियाली के नवांअंकुरित फूलो से प्रकृति ने किया श्रंगार है। नवयौवनाओ के रूप से भी,छलका मनमीत के लिये प्यारहै। पीले मीठे चावल की महक,चहुंऔरपीले वस्त्रो का नजारा है। करे स्वागत हम सब ये बसंत पंचमी का पर्व बहुत प्यारा है। ये उत्सव बहुत ही प्यारा है। . परिचय :- जनार्दन शर्मा (मेडीकल काॅर्डीनेटेर) आशुकवि, लेखक हास्य व्यंग, मालवी, मराठी व अन्य, लेखन, निवासी :- इंदौर म.प्र. सदस्य :- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद... उपलब्धियां :- हि...