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Tag: जगदीशचंद्र बृद्धकोटी

तिरस्कृत मन
कविता

तिरस्कृत मन

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) ******************** स्तब्ध मन हो रहा है जब क्रोध बांटा जा रहा है। अनगिनत अवहेलनाओं से पुकारा जा रहा है। खुद की कुंठा को छिपाने मुझको रोका जा रहा है। कटु वचन से शब्दभेदी बाण मारा जा रहा है। मगर भ्रम उत्पन्न करके सत्य छुपता क्या कभी? अन्ध बन स्वीकारने से द्वन्द छिड़ता क्या कभी? मूक बन खुद की जिसे अवहेलना स्वीकार है। द्वन्द क्या छेड़ेगा वह कायर उसे धिक्कार है। ये लड़ाई हो गई है अब मेरे अधिकार की। रोक ना पाएँगी मुझको वेड़ियाँ संसार की। प्रत्येक जीवन के सफर का यह अनोखा पर्व है। जिसको अपनी स्वाभिमानी पर सदा ही गर्व है। निन्दकों की बात का उसपर न पड़ता फर्क है। उसके लिए द्युलोक क्या यह धरा ही स्वर्ग है। परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
ज़िन्दगी का संघर्ष
कविता

ज़िन्दगी का संघर्ष

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) ******************** रुसवा है यूं जिंदगी , कल का कुछ पता नहीं। नाराज सभी है मुझसे, पर की मैंने कुछ खता नहीं। आगे बढ़ने की चाहत है , लेकिन डग का पता नहीं । कब कौन चुभा जाए खंजर, इस जुल्मी जग का पता नहीं। कुछ पाने की कोशिश मेरी, ना जाने क्यों नाकाम रही। दौलत शोहरत औरों को मिली, तड़पन ही मेरे नाम रही। अब तड़पन ही सच्चा सुख है, जीवन का दूसरा सार नहीं। दुख सुख में साम्यता है जिसकी, दुख उसके लिए संसार नहीं। परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
पतझड़ के बाद बसंत
कविता

पतझड़ के बाद बसंत

जगदीशचंद्र बृद्धकोटी जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) ******************** हरे भरे वृक्षों की छाव में वह कोयलों की बोलियां, सुन खिल उठा आनंद से मन मुग्ध होने है चला। पतझड़ में मौसम टूटता सा लगे सब कुछ छूटता सा, वृक्ष की हर एक डाली पतझड़ में हो जाती है खाली। लेकिन बसंत बहार लाया मौसम में पूरा प्यार लाया, खिल उठे हैं प्रत्येक वृक्ष कर रही कोयल आज नृत्य। हो पुनः विकसित वृक्ष होकर यह हमें बतला रहा है , क्यों भागता है मूर्ख प्राणी अब बसंत तो आ रहा है । जीवन में आए अगर पतझड़ मार्ग ना छोड़ो कभी, नित रोज के संघर्ष में एक दिन बसंत तो आएगा। बिन ज्ञान जीवन के सफर का आज या कल अंत है, पतझड़ के बाद बसंत है पतझड़ के बाद बसंत है परिचय :- जगदीशचंद्र बृद्धकोटी निवासी : जनपद अल्मोड़ा (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...