Sunday, February 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: छत्र छाजेड़ “फक्कड़”

मन कहे.. लो बसंत आ गया
कविता

मन कहे.. लो बसंत आ गया

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** अंगुलियाँ हिलने लगी कलम चलने लगी उतरने लगे फिर प्रणय गीत मन कहे.. लो बसंत आ गया डाल डाल पर नई कौपलें बन जायेगी कल कलियाँ मंडरायेंगे मधुप पीने पराग छल जायेंगे फिर छलिया जब बहे प्रीत का दरिया उर आनंद समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया चले पवन ले पतंग प्रीत डोर से बंधी हुई संग चली छाया अपनी कदम कदम सधी हुई नेह भरे नयन अंजनी अंग अंग यौवन छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया बदन मदनी हुआ उन्मत्त मन आनंद छाने लगा ले नव गीत जीवन संगीत मनपाखी मस्त गाने लगा सातों सुर सजे सात रंग इंद्रधनुष नभ छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया तारे सनद मन मदमत तन पुलकित होने लगा बाँध भुजपाश मीत के साथ अभिसार विचार होने लगा मन पढ़ भाव मीत मन के दिवा स्वप्न में समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया रति उतरे धरा ...
यूँ बन जाती है कविता
कविता

यूँ बन जाती है कविता

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** शब्दों का मीठा टुकड़ा मुस्काता मनभाता मुखड़ा धुँधली यादों में खोया मन रोता रहा जीवन का दुखड़ा जलता रहा अलाव तपता.... यूँ बन जाती है कविता.... मन एक तपिश बढ़ी पवन में कशिश बढ़ी तन कुछ कह न सका मन वह सह न सका बिन धुंवे रहा सुलगता..... यूँ बन जाती है कविता.... घाव मौन सिसकते रहे अरमान यूँ बिखरते रहे कुछ कहे,कुछ अनकहे झरने प्रेम के बहते रहे अंदेशा तूफ़ान का रहा बढ़ता... यूँ बन जाती है कविता.... काग़ज़ की नाव ही सही भाव नफ़रत के ही सही बहाने बनते बिगड़ते रहे पर डोर तो जुड़ी ही रही रंग प्राची नभ रहा चढता..... यूँ ही बन जाती है कविता.... आस अभी मन से छूटी नहीं चल रही सांसे भी टूटी नहीं चिंगारी को ज़रूरत हवा की आग भड़कने से रूकती नहीं पर रूख हवा का रहा पलटता... ऐसे ही बन जाती है कव...
सिंदूरी  सूरज
कविता

सिंदूरी सूरज

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** सुहानी सी ढलती शाम नजरें टिकी थी अस्त होते सूरज पर खोया खोया सा मन कैसे खोजूं चढते भानु की दैदीप्यमान अरूणिमा गरिमा की द्योतक से उभरता मन ललचाता वो लाल रंग कहाँ नजर आ रहा था तमतमाता भास्कर आँखे चुंधियाते चमचमाते दिवाकर का वो सुनहरा रंग बस नजर आ रहा है दिन और दोपहर के रंगों का मिश्रण धुंधला धुंधला सा निस्तेज मगर फीकी फीकी लाली लिए क्षितिज में डूबते सूरज का सिंदूरी रंग बना गया सूरज को सिंदूरी सूरज....! परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच अनुवाद हिंदी से राजस्थानी में प्रकाशित, राजस्थान साहित्य अकादमी (राजस्थान सरकार) द्वारा, पत्र...