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Tag: गोविंद पाल

वैक्सीन
कविता

वैक्सीन

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वैक्सीन लगाना किसी इंसान की शारीरिक मृत्यु पर मुझे उतना दुःख नहीं होता जितना इंसानियत की मृत्यु पर किसी देह की मृत्यु कुछ पल कुछ घंटे, कुछ दिन या कुछ सालों का मृत्यु है पर इंसानियत की मृत्यु एक युग, एक सभ्यता या हजारों वर्षों की मृत्यु है, किसी इंसान के मृत्यु शाश्वत व सत्य है पर इंसानियत की मृत्यु सत्य की मृत्यु है, मां की कोख में कन्या भ्रूण का कत्ल करना हजारों वर्षों का मानवीय सभ्यता का कत्ल है, बूढ़े मां बाप को वृद्धाश्रम भेजना हजारों लाखों वर्षों के रिश्तों की बुनियादों का ध्वस्त हो जाना, अमृता प्रीतम, निर्मल वर्मा, नेमीचंद कमलेश्वर, सुनिल गंगोपाध्याय आदि साहित्यकार व वुद्धिजीवियों की मृत्यु की खबरों से फिल्मि नायक-नायिकाओं के जन्मदिन की खबर महत्वपूर्ण हो जाना हजारों वर्षों के वौद्धिक विचारों को दरकिनार कर पंगु बना देना, हवश...
जीवन चक्र कैसे अवरूद्ध हो गया
कविता

जीवन चक्र कैसे अवरूद्ध हो गया

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन चक्र कैसे अवरूद्ध हो गया है देखो आज, इसे चलाने कर्तव्यों की वलिवेदी पर डटे हुए हैं मेरे सरताज। विरह की अग्नि में जल रही हूँ प्रिये तुम्हारे बिन, पर डटी हुई हूं घर पर गईं सारी सुख-चैन छीन। हे प्रिये कुछ ही महीने तो हुए थे तुम्हारे संग हमनें गुजारी, क्या पता था तुमसे दूर कर देगी हमें ये महामारी। संकट की इस घड़ी में देश बचाने कबसे निकले हो पहनकर वर्दी, पर चिंता मुझे खाये जा रही है तुम्हें न हो जाये कहीं खांसी- सर्दी । प्रकृति को नाश किया है मानव ने उढेलकर अपना मन का जहर, प्रकृति भी कहाँ छोड़ने वाली वो भी वरपा रही है कहर। पर प्रिये तुम छोड़ना नहीं अपना कर्तव्यों का डगर, मैं बचूं या न बचूं प्रियतम तुम शहर को बचा लेना मगर । हे चंचल हवा मेरे प्रीत की पाती लेकर उन तक पंहुचाना, आंसुओं से लिखी गईँ मेरी पाती का संदेश उन्हें जरूर सुनाना...
मदिरालय
कविता

मदिरालय

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजस्व कमाने का जरिया क्यों शराब में ढूंढते हो? मौत से जिन्दगी की तुलना क्यों शबाब में ढूंढते हो? कौन जाने कितनी लाशें दफ्न है इन मदिरालयों में, तबाह हो चुकी जिन्दगियों में क्या हिसाब ढूंढते हो? अनाथ हुए मासूमों के चेहरे पर लिखे इबारत पढ़ लो, क्यों बेकार बेफिजूल इधर-उधर का किताब ढूंढते हो? पांव में पड़े छाले और दिल में जहाँ आग लगी हुई हों, बुझाने मानवता का जल चाहिए क्यों तेजाब ढूंढते हो? माना गाड़ी को चलाये रखने इंधन की जरूरत होती है, पर पेट के इंधन का समाधान क्यों हिजाब में ढूंढते हो? . परिचय :-गोविंद पाल शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन। लेखन : १९७९ से जन्म तिथि : २८ अक्तूबर १९६३ पिता : स्व. नगेन्द्र नाथ पाल, माता : स्व. चिनू बाला पाल पत्नी : श्रीमति दीपा पाल पुत्र : प्लावनजीत पाल निवासी : ...
मै कामगार हूँ
कविता

मै कामगार हूँ

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बहुत उम्मीदें बांधी थीं हमने तुमसे हम भी देखे थे कितने सारे सपने, अपना समझकर सत्ता पर बिठाया पर तुम नहीं निकले कभी अपने। समझने की कभी कोशिश नहीं की कैसे बनायें रखें हमारा स्वाभिमान, जब बुनियादी हक ही हमें न मिले तो समझो ये मानवता का अपमान। हम तो कामगार है हम कामचोर नहीं पर हमें उचित रोजगार और काम दो, खैरात बांट बांट कर पंगु बना दिये हो अब हमें कामचोर का न बदनाम दो। अशिक्षित अनपढ़ और गंवार हूँ भले ही पर मैं आत्मसम्मान के लिए लड़ता हूँ, हो सकता है तुम ढेरों पुस्तक पढ़े होंगे पर मैं तो जिन्दगी का किताब पढ़ता हूँ। हैसियत की बातें मत करो तुम मुझसे पूंजी है मेरी जिंदादिली की खुद्दारी, उॠण होने के लिए बहाता हूँ पसीना नहीं कर सकता हूँ धरती माँ से गद्दारी। पर शोषण के खिलाफ ऊंगली उठाता हूं जो हक के लिए संघर्ष करना है जरूरी, इंसानियत का तका...
जनता जनार्दन
कविता

जनता जनार्दन

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** झूठ के पीठ लदे "सत्यमेव जयते" की लाशें आंखों पर पट्टी बंधी कानून के लाशघर के फ्रीजर में बंद है जरूरत के मुताबिक जिसका किया जाता है पंचनामा, कभी-कभी चीरघर में उसका पोस्टमार्टम होता है इसके बाद मरघट में शुरू होता है लाशों का धर्मिय बहस की इसे जलाया या दफनाया जाय, इधर इंसानियत ओढने की नुमाइशे जोरो पर चलती है इस ताक में बैठे कुछ जन विरोधी प्यादे भी बहती गंगा में धो लेते हैं हाथ इस मौके की ताक में बैठे कुछ लोग अपने को इश्वर होने की घोषणा कर देते हैं, हर तरफ इस अवसरवादी कानफोड़ू शोरगुल में अंदर की सच्चाई कब दफ्न हो जाती है उसका अहसास भी नहीं कर पाती जनता जनार्दन। . परिचय :-गोविंद पाल शिक्षा : स्नातक एवं शांति निकेतन विश्व भारती से डिप्लोमा इन रिसाइटेशन। लेखन : १९७९ से जन्म तिथि : २८ अक्तूबर १९६३ पिता : स्व. नगेन्द्र नाथ पाल, माता : स्...
विराट कैनवास की छत्रछाया
कविता

विराट कैनवास की छत्रछाया

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** "गर तेरी आवाज़ पे कोई न आये तो फिर चल अकेला, चल अकेला, चल अकेला रे.." गुरुदेव आपको पता था की चलते जाओगे तो कारवां बनता जायेगा अगर आज होते तो नहीं ले पाते अकेले चलने का प्रण क्योंकि कारवां के पीछे भी रचा जाता षडयंत्र तब आप अलग-थलग पड़ जाते और अधूरा रह जाता आपका शांति निकेतन की परिकल्पना हे विश्वकवि-आज के इस इंसानी रोबोटिक भीड़ में कहाँ खोज पाते मिली के उस काबुलीवाले को या डाकघर के "अमल" के उस दही बेचने वाले को और उनके निश्छल प्रेम, गुरुदेव कहाँ है वह बंकिमचन्द्र चन्द्र जिन्होंने आगामी प्रजन्म को बचाने अपने गले की माला उतार कर आपके गले में डाली थी और आप भी उन परम्पराओं को निभाते हुए आह्वान किये थे उस "विद्रोही धूमकेतु" (काजी नजरुल इस्लाम) को, गुरुदेव आज के संवेदनहीन सामाजिक टीले और राख होते देश भक्ति के स्तूप पर कैसे लौटाते नाईट उप...
हम बच्चे
कविता

हम बच्चे

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** पूछ रहे हैं बच्चे बड़ों से आज एक गंभीर सवाल, हमें चुप रहने को कहते हो और खुद मचाते हो बवाल। हम चलाते हैं हथियार खिलौने का और तुम चलाते हो असली बंदूक, क्या बेकसूरों की मौत से नहीं पंहुचता है कभी तुम्हें दुःख ? साफ कर रहे हो जंगल के जंगल पेड़-पौधों को काट'-काटकर, प्रकृति को भी कर दिये हजार टुकड़े इस धरती को बांट-बांटकर। तुमसे अच्छे हम बच्चे हैं नहीं करते हैं कोई भेद-भाव, तुम तो जाति धर्म के नाम पर करते हो दिन रात कांव-कांव। छोटी छोटी गलतियों पर तुम बड़े हमेशा डांटते हो ? पर तुम्हारी कितनी बड़ी गलती है इंसान से इंसान को जो बांटते हो ! अल्लाह खुदा भगवान क्या है हम बच्चे कुछ भी नहीं जानते, पर धर्म के नाम पर खून खराबा हम इसे सही नहीं मानते। दुःख हमें तब होता है बहुत जब तुम बड़े हमे भटकाते हो, अपने मनसूबे को अंजाम देने तुम हमें मानव बम...