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Tag: गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

पानी ही पानी है
कविता

पानी ही पानी है

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** धरती से अम्बर तक, एक ही कहानी है। छाई पयोधर पै, कैसी जवानी है।। सूखे में पानी है, गीले में पानी है । आँख खोल देखो तो, पानी ही पानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। नदियों में नहरों में, सागर की लहरों में। नालों पनालों में, झीलों में तालों में।। डोबर में डबरों में, अखबारी खबरों में। पोखर सरोबर में, खाली धरोहर में।। खेतों में खड्डों में, गली बीच गड्ढों में। अंँजुरी में चुल्लू में, केरल में कुल्लू में।। कहीं बाढ़ आई है, कहीं बाढ़ आनी है। मठी डूब जानी है, बड़ी परेशानी है।। सोचो तो पानी है, घन की निशानी है। जानी पहचानी है, यही जिन्दगानी है।। पानी ही पानी है, पानी ही पानी है।। हण्डों में भण्डों में, तीर्थ राज खण्डों में।। कुओंऔर कुण्डों में, हाथी की शुण्डों में। गगरी गिलासों...
देख सजनी देख ऊपर
कविता

देख सजनी देख ऊपर

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** देख सजनी देख ऊपर।। इंजनों सी धड़धड़ाती, बम सरीखी दड़दड़ाती रेल जैसी जड़बड़ाती, फुलझड़ी सी तड़तड़ाती।। पंछियों सी फड़फड़ाती, पल्लवों को खड़खड़ाती। कड़कड़ाती गड़गड़ाती, पड़पड़ाती, हड़बड़ाती भड़भड़ाती।। बावरी सी बड़बड़ाती, शोर करती सरसराती, आ रही है मेघमाला। देख सजनी देख ऊपर।। वह पुरन्दर की परी सी घेर अम्बर और अन्दर । औरअन्दर कर चुकी है श्यामसुन्दर से स्वयंवर।। खा चुकन्दर रीक्ष बन्दर सी कलन्दर बन मछन्दर । हो धुरन्धर खून खंजर छोड़ अंजर और पंजर ।। कर समुन्दर को दिगम्बर फिर बवण्डर सा उठाती, आ रही है मेघमाला। देख सजनी देख ऊपर।। जाटनी सी कामिनी उद्दामिनी सद्दामिनी सी। जामुनी सी यामिनी सी चाँदनी पंचाननी सी।। ओढ़नी में मोरनी सम चोरनी इव चाशनी सी। जीवनी में घोलती संजीवनी चलती बनी सी।। तरजनी सी मटक...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है।। दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द्ध रात अज्ञारी जैसी, सुबह शाम अखबारों सी।। सिगड़ी जैसा दहक रहा घर, देहरी धू-धू जलती है। गरमी फैंक रही है गरमी, तपती सड़क पिघलती है।। सीना सिकुड़ गया नदियों का, नहरें नंगीं खड़ीं दिखीं। कुए बावड़ी हुए बावरे, झीलें बेसुध पड़ीं दिखीं।। तपन घुटन में हौकन ज्वाला, बाग-बाग में लगी हुई। बदली बनकर बरस रही है, आग-आग में लगी हुई।। जीभ निकाले श्वान हाँफते, बेबस व्याकुल लगते हैं। जीव जन्तु प्यासे पशु पक्षी, जग के आकुल लगते हैं।। हरे खेत हो गए मरुस्थल, पर्वत रेगिस्तान हुए। सारे विटप बिना छाया के, जलते हुए मकान हुए।। एसी, कूलर, अंखे, पंखे, डुलें वीजने नरमी से। बिगड़ रहे...
वन्दे मातरम्
कविता

वन्दे मातरम्

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** वन्दे मातरम् बोलो वन्दे मातरम्। वन्दे मातरम् बोलो वन्दे मातरम्। तालियाँ बजाओ बोलो वन्दे मातरम्, खोलो दिल खोलो बोलो वन्दे मातरम्।। भारतीयता का है परम प्रमाण सा । एकता का मूल मन्त्र है पुराण सा । दासता को बेधता अचूक बाण सा, हिन्द की हवा में जिन्दगी के प्राण सा ।। इसे गाने वाले कभी डरते नही । कोरा दम्भ थोथी बात करते नहीं। अदम कदम कभी धरते नहीं, बलिदान देते किन्तु मरते नहीं।। फहराता तिरंगा भरे फरफर दम। उसी निकलता है वन्दे मातरम् । इसीलिए कहता हूँ भर दम खम । एक साथ सभी बोलो वन्दे मातरम्। वन्दे मातरम् बोलो वन्दे मातरम्।। वन्दे मातरम् का अर्थ चाहो जानना। तो बताऊँ ये है शुद्ध राष्ट्र साधना । मादरे वतन सलाम की है भावना , मातृभूमि को प्रणाम की है कामना ।। यही युक्ति देश की दशा सँवारती। स...
प्राण के बाण
कविता

प्राण के बाण

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** १ दुख देती है जब दरिद्रता आती विपदा घड़ी घड़ी। बड़ी बड़ी प्रतिभाएँ पागल हो जातीं पड़ी पड़ी ।। २ कापुरुषों के लगे निशाने महासशूरमा चूक गए। कोयल रही टापती मौका पाकर कौए कूक गए।। ३ जब कवियों ने बढ़ाचढ़ा कर, कौओं को खगराज कहा। व्याख्या करने वालों ने तब, गर्दभ को गजराज कहा।। कहा बटेरों को ब्रजरानी, बगुले को ब्रजराज कहा। "प्राण" गिलहरी को गुलबदना, बिल्लड़ को वनराज कहा।। ४ हारे नहीं हिम्मती राणा ऐसा काम विराट किया। कटता काठ कुल्हाड़ी से जो नाखूनों से काट दिया।। ५ जो न बता पाते थे अन्तर केले और करेले में। वे रस के मुखिया बन बैठे प्रजातंत्र के रेले में।। ६ जिनकी शक्ल देखते रोटी के लाले पड़ जाते हों। कौओं की क्या कहूँ कबूतर तक काले पड़ जाते हों।। उनके सम्मुख अपना माथा रोज टेकना पड़ता ...
समझो द्वारे पर है बसन्त
कविता

समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पंँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलते लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई-नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे तरुणाई पर ताजगीभरी कुछ मंत्र शक्ति शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी स...
सुन्दरी सवैया
सवैया

सुन्दरी सवैया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुन्दरी सवैया छन्द २५ वर्णों का है। इसमें आठ सगण और एक गुरु का योग होता है। इसका दूसरा नाम माधवी है। कण्ठस्थ करने योग्य एक सवैया याद कीजिए। गुणगान समान न गायन है, जयगान समान बखान न कोई।। अपमान समान निशान नहीं, अभिमान समान गुमान न कोई।। अनुमान समान मिलान नहीं, अरमान समान उड़ान न कोई।। कवि "प्राण" समान अजान नहीं, मुसकान समान क‌मान न कोई।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...
एक दिए ने धूम मचा दी
कविता

एक दिए ने धूम मचा दी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** विकट अँधेरे लगे हुए थे, रातों के जयकारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।। तुम दिनकर के वंशज होकर, असमंजस में जीते‌ थे। देख अँधेरोँ की ताकत को, घूँट खून का पीते थे।। तुमको शक था जिस दीपक पर, क्या इकलौता कर लेगा। अँधियारों से डरकर, चुपके से समझौता कर लेगा।। उसी दीप ने दिखा दिया दम, तम बदला उजियारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।१।। अपने आप नहीं मिटते तम, इन्हें मिटाना पड़ता है। खुद को दीप बनाकर खुद का, दीप जलाना पड़ता है।। तब ही कान्ति केश तक छाती, तिमिर तोम हर लेती है। दीपशिखा सूरज बन जाती, ज्ञान व्योम कर देती है।। फिर अन्तर क्या रहा दीप में, तारे और सितारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।२।। आभा के कारण रवि का तम, दरश नहीं कर पाता ...
बहुरंगी दुनिया
कविता

बहुरंगी दुनिया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दुरंगी मत कहो इसको, बहुत रंगीन दुनिया है। कहीं गमहीन दुनिया तो, कहीं गमगीन दुनिया है।। कहीं नमकीन है कुछ कुछ, कहीं शौकीन है दुनिया, कहीं शालीन भारी तो, कहीं संगीन दुनिया है।। कहीं बस बात चलती है, कहीं पर मन्त्र चलते हैं। कहीं पर हाथ चलते तो, कहीं पर यन्त्र चलते हैं।। कहीं पर सादगी अपनी, विरासत छोड़ जाती तो, कहीं पर सादगी से भी, विकट षडयन्त्र चलते हैं।। किसी का मन बतासा है, किसी का तन तमाशा है। किसी के पास धन ही धन, मगर सुख से निराशा है।। खुलासा हो चुका है यह, उदासी दास किसकी है, करीने से जिया है जो, जिसे सुख ने तराशा है।। किसी ने गाय पाली है, किसी ने भैंस पा ली है। किसी ने झोलियाँ भर लीं, किसी की जेब खाली है।। किसी की चाह ज्यादा है, किसी को आज भी आशा, किसी की दाल में काला, किसी की दाल काल...
समझो द्वारे पर है बसन्त
कविता

समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलने लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएंँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे ताजगीभरी तरुणाई को कुछ बीज मन्त्र शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी सृष्टि द...
वीरांगना झलकारी बाई
कविता

वीरांगना झलकारी बाई

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** २२ नवम्बर २०२१ को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की सेनानी वीरांगना झलकारी बाई की १९१ वीं जयन्ती पर। झाँसी की रानी के समान, झाँसी की एक निशानी है। है सदा शौर्य की प्यास जहाँ, पिघले लोहे सा पानी है।। बचपन से लेकर मरने तक, मरती ही नहीं जवानी है। वीरता लहू में बहती है, घर घर की यही कहानी है।। बुन्देले तो बुन्देले हैं, जिनकी गाथा अलबेली है। उस पर गर्वित बुन्देलखण्ड, हर कौम यहाँ बुन्देली है।। मैं कथा सुनाऊँ यहाँ एक, योद्धा झलकारी बाई थी। जो मर्द न थी पर मर्दों के, भी कान काटने आई थी।। वह वीर व्रता अपनी रानी, झाँसी के लिए समर्पित थी। लक्ष्मीबाई की सेना में, दुर्गा दल की सेनापति थी।। हूबहू लक्ष्मी बाई सी, वीरता भवानी जैसी थी। वय में भी लगभग थी समान, सूरत भी रानी जैसी थी।। तलवार पकड़ते ही कर में...