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Tag: गरिमा खंडेलवाल

वक्त सीखा रहा है
कविता

वक्त सीखा रहा है

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** एक सुकून है जो मुझे तबाह कर रहा है तू मुझे कितनों से बेवफा कर रहा है। कर रहा हूं मैं मुहब्बत हर पल जिससे वो मुझसे कतरा कतरा छल कर रहा है। कभी मैंने पाने की कोशिश न की तुझे क्यों दूर हो जाने के जतन कर रहा है। मुझसे ज्यादा प्यार वो करते है मुझे दूर हो कर क्यूं मेरी फिकर कर रहा है। इश्क में रुलाया जिन्होंने हमें , मुहब्बत मुझे उन्हीं से फिर करने को जी चाह रहा है । रहता हूं जब प्यार में बिना यार के साथ मैं प्यार के साथ रहना प्यार से वक्त सीखा रहा है। परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी र...
पति को भी इंसान मानो
कविता

पति को भी इंसान मानो

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** उसके कंधे है इतने मजबूत वह सारी दुनिया को उठा लेगा तुम एक सुख दे कर देखो वो खुशियों की झड़ी लगा देगा। पति नहीं कोई जादूगर या कोई भगवान उसकी भी भावनाएं होती है वह भी हाड मास का इंसान प्रेम की चाहत बस उसकी करो तुम पति का सम्मान। भूख पसीना सब सहकर मेहनत कर जब वह घर लौटे मुस्कान भरे चेहरे से उसके तप का तुम करो सम्मान। अपने पति की ताकत बन कर परिवार बगिया सा महकाना होता है पति भी इंसान उसके दुख का कारण कभी मत बनना। शादी संस्कार दो लोगों का यह कोई व्यापार नहीं नफा नुकसान फायदे का साझेदारी का बाजार नहीं। तुम औरत हो शक्ति हो शिव संग सृष्टि रच डालो संग चलो संगिनी बन कर इसमें छोटे बड़े की बात नहीं। वो दुख तकलीफ नही बतलाता होसलो को पर्वत कर लेता परिवार पर कभी आंच ना आए हिम्मत पत्नी को बतलाता।...
मुहब्बत चाहिए अगर तो
कविता

मुहब्बत चाहिए अगर तो

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** मुहब्बत चाहिए अगर तो नफरत ना फैलाओ मिलेगा अमन तुम्हे शांति से बात समझाओ ये कौन सा रास्ता तुमने अपनाया है तीसरी पारी का विश्व युद्ध खेल कर तुमने इतिहास के पाठ को भुलाया है। सियासी राजनेता के लिए सिर्फ अंकड़ो के खेल हुए युद्ध में मरने वालो के कभी निश्चित आंकड़े नहीं हुए। पहले भी विश्व युद्ध की चिट्टिया सुनाई थी शांति के लिए हो रहा ये कैसा युद्ध भाई धरा गगन के बीच खालीपन छोड़ जाएगी सैनिक अपाहिज बन जीने को मजबूर हो जाएंगे कुछ मर जायेंगे तो कुछ अपनो को खो जायेंगे मातृ भूमि से पलायन का दर्द झेलेंगे औरतों और बच्चों पर क्या क्या गुजरेगी सहोदर रहे दो मुल्क शत्रुता झेलेंगे। कीमतों में इजाफा महंगाई बोझ बढ़ते जाएंगे पटरी से उतरती अर्थव्यवस्था रास्ते पर वापस कैसे लायेंगे। दुनियाभर की अ...
पुरवैया
कविता

पुरवैया

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** प्रेम नगर से चली आई पुरवैया ये तो बता प्रियतम कैसे है जिनके पास है दिल हमारा सनम बिना मेरे कैसे है? कोई संदेशा देजा पुरवैया साजन की बगिया से आई है उनके नाम से शर्माती अखियां वो भी क्या मुझ बिन तड़पे है? आंचल लहराए जब पुरवैया रंग चुनरिया का तो बता दे जिनकी याद में रहे जागते उनकी शामें ढलती कैसे है? कोई निशानी प्रेम की पुरवैया उनकी सुगंध संग ले आना जिनकी चाहत में खोए रहते वो भी तलाश में क्या मेरे है? झोका हवा का लाई पुरवैया ये तो बता साजन की गली की हंसी ठिठौली कैसी है सनम याद में क्या रोते हंसते है? परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
स्त्री नियमो की सीमा को क्यों लांघ न पाए?
कविता

स्त्री नियमो की सीमा को क्यों लांघ न पाए?

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** अतीत के विकृत संकल्पो, की मिथ्या परछाई ने, उन्नति के पथ पर रोडे अटकाए, जाने क्यों ? स्त्री थोथे नियमो की सीमा को लांघ ना पाए। ब्रह्मांड में जो कुछ भी चलायमान, उत्पत्ति निर्माण में स्त्री का योगदान उपलब्धियों पर हीन दृष्टि पाए जाने क्यों ? स्त्री अपनी शक्ति को, पहचान न पाए। शून्य जगत का हर कोना गति पाता स्त्री के तप से वही जगत से हेय दृष्टि पाए जाने क्यों ? स्त्री अभिमानियों के मिथ्या दम को मिटाना चाह ना पाए। नियम वर्जनाओ की बेड़ियों मे भी सृजन व पालन की ताकत, मानस पटल पर भय शंका बढ़ाएं, जाने क्यों ? स्त्री अपनी पीड़ा को, बतला न पाए। जग स्त्री उपलब्धियों को पचाना पाए, कमी निकालने से बाज ना आए, टूटता स्त्री मनोबल षड्यंत्रों में फंस जाएं, जाने क्यों ? स्त्री अपनी विवशता को...
प्रेम सदा जिंदा रहता है
कविता

प्रेम सदा जिंदा रहता है

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** दशक उम्र के बीत जाए जवानी पर चांदी चढ़ती जाए शहर बदल ले जीने के सलीखे मेरी यादो से दूर जाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे जीवन की हजार समस्याएं दुनियादारी की समझाइशे मौसम पर चढ़ जाए धुंध की चादर जो लम्हा जी लिया उसे भूलाएगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे हर ख्वाहिश पर भगवान बदलते हर मौके पर रिवाज बदलते दिल तो तेरे पास भी एक ही है सासो पर लिखा था नाम बदलेगी कैसे प्रेम सदा जिंदा रहता है मिटाएगी कैसे परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...