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उसकी चिंता
लघुकथा

उसकी चिंता

कुणाल शर्मा अम्बाला सिटी (हरियाणा) ******************** (मौलिक एवं स्वरचित) फेसबुक पर प्रकाशित “क्या जरुरत थी इतनी ठंड में इस फ्रिज पर पैसे फूंकने की…पर यहाँ मेरी सुनता ही कौन है !" माँ चारपाई पर बैठी बड़बड़ा रही थी। माँ की बड़बड़ाहट सुनकर मँझला बेटा कमरें से बाहर निकल आया, "माँ, अब तुझे कौन समझाये, ऑफ-सीजन में बहुत कम दाम में मिला है।” "मुखत में तो नहीं मिलता। पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, पर इतना तो जानती हूँ।” "तुझे तो दिहाड़े भुगतने की आदत हो गई है माँ, कम से कम हमें तो सुख से रहने दे।” इस बार वह तल्खी से बोला। "पहले सिर पर जो कर्ज चढ़ा है वो उतर जाता। घर में क्या खा रहे हैं, कौन देखता है? पर मांगने वाले चौखट पर आये तो तमाशा बन जाता है।” माँ अधबुने स्वेटर पर सिलाइयां चलाती हुई बोली। "तमाशा तो मेरा बन गया है, छुट्टी के दिन भी चैन नहीं…तुम्हारी तो आदत हो गई है हर बात पर बड़बड़ाने की।" "चलो भई, मैंने...