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Tag: किशनू झा “तूफान”

बदल दिया है साल
कविता

बदल दिया है साल

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** अहंकार था वर्षों को वह, दिन से बहुत बड़े हैं। सोच नहीं सकते थे, पल पल के बल साल खड़े है। टूटा अहंकार टुकड़ों में, कर डाला बेहाल। पल-पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। बहुत लाड़ली बनी जनवरी, सबसे मिली बधाई। और फरवरी प्यार भरी थी, दिल से दिल मिलवायी। मार्च और अप्रैल तो निकली, होली के रंग डाल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। बहुत क्रोध में मई जून थी, गर्म हवा ले आयी। रिमझिम बारिश लेकर आई, सबसे मधुर जुलाई। खेतों खलिहानों में पानी भर, अगस्त किया बेहाल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। अम्बर स्वच्छ सितंबर करके, शीत हवा ले आया। अक्टूबर और नवंबर ने, दीवाली दीप जलाया। कटा दिसंबर इंतजार में, कब आये नया साल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। परिचय : किशनू झा "तूफ...
नर्स दिवस
कविता

नर्स दिवस

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। देखभाल को सदा मरीजों के, घर -घर तक जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। उपयोग सदा ही करती है, वह शारीरिक विज्ञान का। देखभाल में ध्यान रखे वह, रोगी के सम्मान का। कितनी मेहनत संघर्षो से, एक नर्स बन पाती है फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है सदा बचाती है रोगी को, दुख, दर्दो, बीमारी से । भेदभाव को नहीं करे वह, नर रोगी और नारी से। देख बुलंदी को नर्सों की, बीमारी डर जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देती शिक्षा और सुरक्षा, बीमारी से बचने की। कला नर्स को आती है, रोगी का जीवन रचने की। असहाय मरीजों की केवल, परिचायक ही तो साथी है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देखभाल का जिसके अंदर, एक अनोखा ग्यान ...
मिट्टी मेरे गांव की
कविता

मिट्टी मेरे गांव की

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** युगों युगों से रही बोलती, भाषा जो सद्भाव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। खेतों में हरियाली वसुधा, का श्रृंगार कराती है। एक पड़ोसन दूजे के घर, मठ्ठा लेने जाती है। भाईचारा सिखलातीं हैं, गलियां मेरे गांव की । जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। यहाँ सूर्य भी पहले आकर, उजियाला फैलाता है। और पिता के नाम से हर इक, घर को जाना जाता है । आती यादें, चोर सिपाही, कागज वाली नांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। गाँव में किशनू के आने को, ईश्वर भी ललचाते हैं। राम, श्याम, घनश्याम यहाँ, नामों में सबके आते हैं। चारों धामों से बड़कर है, मिट्टी माँ के पांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। परिचय : किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती ...
है सलाम
कविता

है सलाम

किशनू झा "तूफान" ग्राम बानौली, (दतिया) ********************** है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। दे गये देशहित, प्राण उनको सलाम। जां लुटा दी उन्होंने, वतन के लिए । चुन लिया है तिरंगा, कफन के लिए। कतरा कतरा बहाकर के अपना लहू, कर गये हैं समर्पित, चमन के लिए। उनके घर बन गये, जैसे तीरथ के धाम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। धरातल, गगन ये, समय रुक गया। जब गये छोड़कर, हर ह्रदय झुक गया। हो गये जो अमर, अब युगों के लिए। हम जपें सुबह शाम, उन शहीदो का नाम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। राष्ट्र ध्वज था कफन, यह भी अर्ग मिल गया। यह धरा छोड़ दी उनको, स्वर्ग मिल गया। जब गये होंगे ईश्वर के, घर पर शहीद। झुक शहीदों का स्वागत किये, होंगे राम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। राष्ट्र के सामने था, धर्म झुक गया। घाव को देखकर, के मरहम झुक गया। हिन्दुओं, मुस्लिमों ने किया था न...
मजबूर मजदूर
कविता

मजबूर मजदूर

किशनू झा "तूफान" ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** तन से बहता रोज पसीना, हर दिन होता दुर्लभ जीना। खाने की तो बातें छोडो़, मुश्किल जिसको पानी पीना। मन में जिसके टूटे सपने, हर उम्मीद अधूरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। सत्ता लाखों वादे करती, उनसे अपनी जेबें भरती। निर्धन मजदूरों के घर की, मजबूरी से रात गुजरती। पेट पालने की ख़ातिर, मजदूरी बहुत जरुरी है। मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। दिल्ली से सब गावों में, मजदूरों को पैसे आते। सड़क लैटरिंग पैसे सारे, पहले नेता जी खा जाते। मजदूरो को कुछ न मिलता, मजदूरी मजबूरी है । मजदूरों की किस्मत में, जीवन भर मजदूरी है। लेखक परिचय : - नाम - किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती अंजना झा निवासी - ग्राम बानौली,(दतिया) सम्प्रति - बी. एससी. नर्सिंग अध्यक्ष - सत्यम...
करके आजाद हमको वतन दे गये
कविता

करके आजाद हमको वतन दे गये

किशनू झा "तूफान" ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। उनके भी शौंक थे दिल जवानी भी थी, उनके भाई भी बहनें भी मां बाप थे। सोचा न एक पल दे दी कुर्बानियां, देशभक्ति के उनमें भी क्या जाप थे। देश के बाग में सींचकर  के लहू, फूलते फलते हमको  सुमन दे गये। तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। क्या हुआ नींद आयी जो वो सो गये, नींद दुश्मन के घर की उड़ाकर गये। गर जरुरत पड़ी सिर कटाने की भी, शान से शीश अपने कटाकर गये। जान को अपनी देकर वतन के लिए, वो बचाकर वतन को वतन दे गये। तोड़कर सारे बंधन गुलामी के वो, करके आजाद हमको वतन दे गये। मैं सदा उन शहीदों को करता नमन, जिनके कारण वतन मेरा आजाद है। हिन्दू मुस्लिम मिटे इस वतन के लिए, उनकी कुर्बानी हमको सदा याद है। तीन रंगों को अपना बनाकर कफन,  ज...
मां के चरणों में
कविता

मां के चरणों में

किशनू झा "तूफान" ग्राम बानौली, (दतिया) ********************** झुक जाती हैं ताकत सारी, मातृशक्ति के शरणो में । ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो, मेरी मां के चरणों में । दुख दर्दो को सहकर मम्मी, हमको जीवन देती है। खून पसीना पसीना बहा बहाकर, मेहनत का धन देती हैं । सर्वश्रेष्ठ है ममता का रन्ग , दुनिया के सारे वर्णो में । ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो , मेरी मां के चरणों में आये कोई भी सन्कट , बच्चों को सदा बचाती है। गीले में सोकर के खुद , सूखे में उन्हें सुलाती है । रहें सुरक्षित हरदम बच्चे, मम्मी के आवरणो में। ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो , मेरी मां के चरणों में बचपन की वो यादें मा की, हमको बहुत सताती हैं , माँ का आँचल में सर हो, तो नींद स्वतः ही आती है। जल मन्दिर का हमें पिलाती , संग तुलसी के पर्णो में । ऐसा लगता स्वर्ग छुपा हो , मेरी मां के चरणों में लेखक परिचय : - न...