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जुर्म
लघुकथा

जुर्म

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) अदालत लगी थी...कटघरे में खडी थी माँ, आरोप था कि 'उसने ले ली है अपने दो बच्चों की जान'। करती भी क्या ? काम न मिलने पर घर में ही फाँसी का फंदा लगा अबोध बच्चों के साथ कष्टों से मुक्ति पा जाना चाहती थी। यहाँ भी दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा, जाने कैसे बच गई। आत्महत्या और हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी गई। घर, अदालत और जेल सभी की दीवारें मौन थी। सजा पूरी होने पर बाहर आई भी तो वहाँ भी मौन बाँह पसारे खड़ा था.. बदला कुछ भी नहीं बल्कि पहले से और अधिक भयानक हो गया था। मन में भय और सवालिया निशान लिये वो बोझिल कदमों से चली जा रही थी कि कहीं कोई फिर से जुर्म न कर बैठे। . परिचय :- किरण बाला पिता - श्री हेम राज पति - ठाकुर अशोक कुमार सिंह निवासी - ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) शिक्षा - बी. एफ. ए., एम. ए. (पें...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) भाव ह्रदय के पन्नों पर उतार प्रीत की पाती भेजी है आज शब्द नहीं हैं दिल के जज़्बात कुछ अनकहे से हैं अल्फाज़ "तुम क्या जानो तुम बिन दिन बीतें ना बीतें रतियां रहा शेष ना इक भी दिन रोए बिन रही हों अखियाँ हारी मैं तारे भी गिन-गिन करें ठिठौली सब सखियाँ राह तकूँ मैं हर पल-छिन होंगी फिर से मीठी बतियाँ" अश्रुपूरित से नेत्रों का भार सँभाले नहीं सँभलता आज टकटकी लगाए बैठी मैं द्वार ले पुनर्मिलन की अब आस . परिचय :- किरण बाला पिता - श्री हेम राज पति - ठाकुर अशोक कुमार सिंह निवासी - ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) शिक्षा - बी. एफ. ए., एम. ए. (पेंटिंग) यू जी सी (नेट) व्यवसाय - टी. जी. टी. फाईन आर्ट्स (राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, मौली जागरण चण्डीगढ़) प्रकाशित पुस्तकें - ३ साँझा काव्य संग्रह प्रकाशित और ३ प्रकाशाधीन सम्म...
ये दो जल बिंदु
कविता

ये दो जल बिंदु

किरण बाला ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब) ******************** ये दो जल बिंदु, न जाने कब और क्यों छलक पड़ते हैं ! अस्थिर से मुझको क्यों कभी-कभी ये लगते हैं। ये सिर्फ अश्रु धारा ही हैं या फिर हैं कुछ और क्या हैं ये पीड़ा के उद्भव ! या फिर हैं चिर-शान्त मौन। ये तो हैं दर्द का कोमल अहसास ले आता है बीते दिन भी पास युगों-युगों से चिर-स्थाई सा दे जाता है सुख की आस। नहीं सिर्फ पीड़ा के साथी उन्माद में भी छलक पड़ते हैं कभी-कभी बन जीवन के प्रेरक नियत मंजिल तक ले चलते हैं। कमजोर नहीं तुम इनको समझो प्रलयकारी भी हो सकते हैं कहीं बनते हैं घावों के मलहम कहीं चिंगारी भी बन सकते हैं। यदि न होते ये अश्रु तो जीवन भाव-शून्य हो जाता रंग न होता कोई जीवन में बेजान सा ये जग होता। फिर भी सोचती हूं, न जाने कौन से उद्गम से निकल पड़ते हैं ये दो जल बिंदु, न जाने कब और क्यों छलक पड़ते हैं .... (पूर्व में प्रक...