जुर्म
(हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा)
अदालत लगी थी...कटघरे में खडी थी माँ, आरोप था कि 'उसने ले ली है अपने दो बच्चों की जान'। करती भी क्या ? काम न मिलने पर घर में ही फाँसी का फंदा लगा अबोध बच्चों के साथ कष्टों से मुक्ति पा जाना चाहती थी। यहाँ भी दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा, जाने कैसे बच गई। आत्महत्या और हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुना दी गई। घर, अदालत और जेल सभी की दीवारें मौन थी। सजा पूरी होने पर बाहर आई भी तो वहाँ भी मौन बाँह पसारे खड़ा था.. बदला कुछ भी नहीं बल्कि पहले से और अधिक भयानक हो गया था। मन में भय और सवालिया निशान लिये वो बोझिल कदमों से चली जा रही थी कि कहीं कोई फिर से जुर्म न कर बैठे।
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परिचय :- किरण बाला
पिता - श्री हेम राज
पति - ठाकुर अशोक कुमार सिंह
निवासी - ढकौली ज़ीरकपुर (पंजाब)
शिक्षा - बी. एफ. ए., एम. ए. (पेंटिं...