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यूँ  ही खुद को मिटा दिया
कविता

यूँ ही खुद को मिटा दिया

कल्पना चौधरी बुलंदशहर, (उत्तर प्रदेश) ******************** यूॅं ही सब कुछ समेटते-समेटते, खुद को जाने कब कहाॅं मिटा दिया, किसी ने पूछा अगर अपना हाल, यूॅं ही बस आहिस्ता से मुस्कुरा दिया, बचा ही क्या था जलती लकड़ियों में, हृदय तिनका मात्र था वो भी जला दिया, यूॅं ही सुलगते-सुलगते एक अग्निकण ने, देखते ही देखते मन श्मशान बना दिया, मिल भी जाएं अगर सितारे अब मुट्ठी भर, चमकेंगे किस तरह जब आसमाॅं ही भिगो दिया, वक़्त रहते सम्भल जाना ही सबसे भला है, लकीर पीटने से क्या होगा, जब सब कुछ लुटा दिया, क्या कर लोगे गर भर भी लिया चाॅंद मुट्ठी में, चाॅंदनी तो तब बिखेरेगा जब, उसको आजाद करा दिया ! परिचय :- कल्पना चौधरी निवासी : बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...