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Tag: ओमप्रकाश सिंह

समय की चक्रधर
कविता

समय की चक्रधर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** समय की चक्रधर घूम-घूम कर, नियति की हाथों का स्पर्श पाकर, वही सुकोमल, कभी भाव बिहवल। कभी अनेकों-कर्म बल से जुड़कर, कभी अपनापन कुछ पाकर, कभी कुछ खोकर। पा लिया था एक सुघड़ अंतस, बस बसना था एक सुंदर सा घर, जहां शांति और, अटूट प्रेम था। तभी झंझावात की, थपेड़ों ने, बिखरा दिया उसकी स्वप्निल- नीर का तिनका तिनका, आश्रय हिन बना दिया- उसे पंख हीन बना दिया। किसी की बेसुरी चैन ने- शायद उसे बेचैन बना ही दिया। लेकिन आज भी उसे याद है- फरियाद और आह है- उसे देख कर अपराध बोध में- खो जाता हूं उदासी देखकर। वह और बेचैन होकर फिर- बीते समय की चक्र में गुमसुम हो जाती है। मुझे देख कर एक लंबी उच्छ्वास लिए, करुण ऐकटक निहार वेदना पूरित नेत्रों से पुकार कर जाती है। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी...
हे बुद्ध… सुबुद्ध… तू अद्भुत…
कविता

हे बुद्ध… सुबुद्ध… तू अद्भुत…

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हे बुद्ध सुबुद्ध तू अद्भुत मानवता से परिपूर्ण। सूर्य चंद्र अग्नि मारुत- सब में तू ही ज्योति पुंज। तू निर्विकार साकार विराट- तू विज्ञान से परिपूर्ण। हे अखिल ब्रह्मांड के मूल रूप- सत्य निष्ठ तू ब्रह्म निष्ट। हे बुध सुबुद्ध तू अद्भुत- मानवता से परिपूर्ण। तू करुणा के साक्षात रुप- महानिर्वाण का मूल रूप। तू अंतस की आनंद रूप- राजा शुद्धोधन का कुलदीप। कपिलवस्तु के शांति दूत- तू नीरवता के अग्ररूप। महामाया का तू अशेष- जंबद्विपो में द्वीप श्रेष्ठ। सहस्त्र योजन विस्तृत- जिसकी सीमाएं सुनिश्चित। पूर्व सीमा पर कंग जल- अनंतर साल वन गंभीर। दक्षिण दिशा के कनिक जनपद- तत्पश्चात सीमांत देश, हे बुद्ध सुबुद्ध तू अदभुत। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविता...
शिक्षण-संस्थान
कविता

शिक्षण-संस्थान

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** शारीरिक श्रम से मांसपेशियो को। फैलाता हूं, सिकुड़ाता हूँ मरोड़रता हूँ नस नस को दिलोजान से पसीने से नहलाता हूँ। शरीर की गंदगी को रोम-रोम की छिद्र से बाहर निकालने में सक्षम बनाने की कोशिश करता हूँ मानसिक श्रम से ही सही व्यक्तित्व का विकास नहीं होता श्रम की दो चक्रों पर जिंदगी की गाड़ी को धकेलता हूं। लक्ष्य की ओर निगाहें दौड़ाकर कर्म पथ की चौराहों पर यें, गीत गुनगुनाता हूं शिक्षण संस्थान में, योग, श्रम की सही पहलुओं को समझाता हूं अपनाता हूं चबाता हूं श्रम की पत्तों को किमती कीड़ा बन, रेशम उठ जाता हूं पसीने की हर-बूंद पर एक -एक, कविता, बनाता हूं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...
जीवन यात्रा
कविता

जीवन यात्रा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जीवन यात्रा में यह संजोग कैसी? अद्भुत सुखद दिवास्वप्न सी आलस की नीरवता सी सागर की गंभीरता से! उद्धत कर्म पथ पर अर्चना की समर्पण में! भावा विभोर होकर मैं एक अदना सा प्रकाश विलीन होकर! एक नई जीवन सजाने की कामना करता हूं! इस जीवन यात्रा में अनेक पगडंडियों से या पहाड़ियों से गुजर ना होगा! कंदरा गुफा में रातें गुजारने होगी एसी अपेक्षाएं की जाती है जीवन की साहसिक यात्राओं में सरपट सड़कों पर दौड़ लगाना होगा ऐसी उम्मीद की जाती है अक्सर माननीय यात्रा में यह आश्चर्य से ही संभव है जीवन यात्रा एक सपना है, रंगमंच है रंगमंच पर सभी को उतरना है! अपनी कलाकारीताको निखार ना है-सवारना है क्योंकि एक पूर्ण को इसमें बंधना होगा, ऐसी धारणाएं है मेरी संस्कृति की! यह अर्चना क्या है एक समर्पण है एक आकार है आरोपी अध्यात्म का अनुपम प्रकाश है! . लेखक ...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** नव वर्ष के शुभ अवसर पर नव संकल्प ले जीवन पथ पर। विगत पतझड़ को भूल जाओ नव बसंत को याद करो। कोयल की वह मधुर कुक लालटेसुओ की भरमार। नव किससय से प्रफुल्लित तन मन आम्र मंजरीयो की जयमाल। भूल जाओ उस विगत वर्ष को दानवता की भयावह चित्कार। जोर-जोर ऊंची आवाजों में रोया जो स्वान और श्रृंगाल। याद करो उस चटक चांदनी को जो खिला था नभ में भरपूर। खिल गई थी पीली सरसों महक रही थी रजनीगंधा। हरियाली थी भरपूर चिपक गई थी चटक चांदनी दूधिया रोशनी थी भरपूर। याद करो उस विगत जब प्रकृति की वैभव से धरती मां रहती थी भरपूर। कलकल निनाद से बहती थी नदियां पक्षियों का कलरव भरपूर। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
अपनापन
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अपनापन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अपनापन कितना कटु सत्य है, शायद हम सभी मानते हैं। मानवीयता की कसौटी पर, इससे तौल सकते हैं। जब हम जीवन की प्रतियोगी बन, सफली भूत होते हैं, तो यह अपनापन कितना मनभावन लगता है। क्या सही मायने में हम, इसे अपनापन कहते हैं। जब मजबूरी के क्षण में, यह अपनापन टूटने लगता है। तो वास्तविकता के सही मायने, सामने आने लगता है। क्या इस कटु सत्य को, अपनापन सही मायने में कहते हैं। जो हर एक क्षण सांत्वना देता हो, विपत्तियों के छन में भी, दिल को चूम लेता हो। नए उत्साह और स्फूर्ति, फिर से भर देता हो। सही मायने में इसे, हम अपनापन कहते हैं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
लालिमा
कविता

लालिमा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सूर्य की लालिमा पूरब से आई। सुबह में अचानक शबनम मुस्कुराई। आंखों में चमक पैदा करने लालिमा पूरब से आई। पोखर नदी के किनारे पानी की सतह पर। लाल सुर्ख सी साड़ी पहने बन दुल्हन मुस्कुराए शरमाई। ओठ फड़फड़ाए अचानक प्रदायिनी वायु कि थपेड़ों से। सूर्य की लालिमा पूरब से आई चिड़ियों की चहक से गूंज गई आमराई। निंद्रा रानी की गहन निश्चिंता के बाद। सुबह की धड़कन लिए अचानक लालिमा आई। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
समय की सहेज
कविता

समय की सहेज

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** समय की चलायमान गति में मैं बहता गया, क्योंकि समय की सहेज, एक निश्चित प्रक्रिया है अपने साथ मानव को, मंत्रमुग्ध सा मानव को सहेज लेता है। क्षणभंगुर कामनाओं को, मटिया मेट कर देता है। दिखा देता है अपनी असीम शक्तियों को, मैं कितना सहेज मान हूं। तुम कैसे मेरे गति से उत्पन्न थीरकनो पर, धीरे-धीरे थिरक रहे हो, क्योंकि यह सांसारिक सत्य है मैं कितना सहेजवान हूं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक...
नारी
कविता

नारी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** नारी तुम मेरी भावना हो तुम मेरी प्रेयसी हो। श्रद्धा हो मेरी कामनाओ का मेरी सपना हो जीवन कीन मशिकाओ का। जीवन की समस्याओ का। तुम रहस्या हो अंनता हो। सागर की गभीरता हो तुम मेरी बंदना हो। प्रेयसी हो तुम मेरी पूरक मैं अधूरा हूँ तुम सृष्टि की विस्तारिका हो । तुम श्रृंगारिता हो प्रकृति का तुम अनुपमा हो पुष्पा हो। व्याकुलता हो दो दिलो के तारतम्य का तुम विणा हो अराधिता हो कवियों और कलाकार का तुम अनादि हो अनंत हो बाइबिल, वेद कुरान का तुम मायावी हो। महामाया हो क्षमा हो कुंडलिनी विस्तार का I तुम मीरा हो शबरी हो कृष्ण और राम का .... . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा
आलेख

सामान्य शिक्षा एवं शारीरिक शिक्षा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** दोनों का उद्देश्य समान है दोनों एक दूसरे के पूरक है। शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है। शारीरिक शिक्षा विभिन्न क्रियाशीलनो के माध्यम से बच्चे-बच्चियों एवं युवकों के शारीरिक मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक क्षमताओं का विकास कर उन्हें जिम्मेवार नागरिक तैयार करना है। जो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विकास में सक्रिय सहयोग दे सके। शारीरिक शिक्षा की उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति एवं उसके सफल कार्यवाही के लिए संसद द्वारा अनुमोदित प्रोग्राम ऑफ एक्शन में शारीरिक शिक्षा को शिक्षण को एक महत्वपूर्ण अंग बताया है। ऐसा संसार के विद्वानों का कहना है, गांधी जी ने कहा है कि शरीर जगत का एक संपूर्ण नमूना है। जो शरीर में नहीं है और जो जगत में नहीं है वह शरीर में नहीं है इसी से यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे का मह...
फिर से जग जाओ
कविता

फिर से जग जाओ

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ गुरुकुल की भांति ज्ञान ज्योति फैलाओ अखिल विश्व से फिर से दिव्य चेतना लाओ अंतस सेतू धौम्य में बनो असंख्य आरुणि लाओ फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ ऋचा रचो फिर से नई नई ज्ञान पुष्प बिखराव गुरुतर तेरे कंधों पर श्रवण कुमार बन जाओ उत्पीड़न है अखिल विश्व में योग क्षेम को लाओ फैले चेतना मानवता की तू त्याग मूर्ति बन जाओ बोधिसत्व तू बन कर ज्ञान पुष्प बिखराओ फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ गुरुकुल की भांति ज्ञान पुष्प बिखराऒ जातिवाद नस्लवाद फासिस्ट वाद मिटाओ फिर तू जग जाओ हरा भरा अखिल विश्व हो शांति का पाठ पढ़ाओ अंतरिक्ष शांति वनस्पति शांति पृथ्वी को शांत बनाओ क्रौंच पक्षी की विरह वेदना अंतस में तु लाओ अभिनव बाल्मीकि तू बनकर महाकाव्य को लाओ फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ गुरुकुल की भांति ज्ञान ज्योति फैला...
ओ समाज के गुरु शिक्षक
कविता

ओ समाज के गुरु शिक्षक

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** ओ समाज के गुरु शिक्षक तू अपनी ओर देख। तू नव पौधों के वन उपवन का माली है।। ये गुलशन है, गुलजार, चमन उजियाले हैं। बगिया है रोशन, चमक दमक हरियाली है। यह वक्ता प्रोक्ता ये अधिकारी- ये न्यायमूर्ति, ये जिलाधीश, ये मंडलधीश ये लोकपाल, ये राज्यपाल, ये डाकपाल- ये व्ययस्थापक, संपादक- सूचना संयारी- ये जन के नेता, भाग्यविधाता-ये मार्गदर्शक। ये जन उन्नति के तुंग शिखर पर चढ़े हुए उनके अंदर की प्रतिभाएं है विकसित सिक्के है तेरे टकसालों के गड्ढे हुए।। पर आज देख आया है कैसा विकट -काल- छाया है कैसी राक्षसीपन, वहसीपन। पीड़ा से पीड़ित, मानवता आहे भर्ती। है ओर छोर तक नग्न भ्रष्टता का है नर्तन।। मानव का मानो चोर अरे! यह बात गजब है। नरके प्राणों का मोलतोल अब होता है। जाने इस दुनिया में कोई भगवान भी है।। यदि है तो जाने कहां नींद में सोता है? यह और ...
जागो गुरुजन एक बार
कविता

जागो गुरुजन एक बार

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जागो गुरुजान एकबार। भारत में मच गई हाहाकार। फिर से तांडव नर्तन कर जितना समर्थ हो उतना कर तू प्रलय बन प्रकंपित कर रावण दल पर टूट पड़। तू चाणक्य और विश्वामित्र बन फिर से नई नई सृष्टि रच। कौटिल्य और कणाद बन, अर्थ नीति, अणुनीति रच। तू सर्वज्ञ पूर्ण समर्थ बन, तू ब्रह्मा विष्णु महेश बन, ज्ञान प्रकाश को फैलाकर अज्ञानता का भक्षण कर। तू दधीचि बन अस्थि दान दे, फिर से आशीष असीम प्यार दे, तू समर्थ गुरु रामदास बन, शेर शिवा को फिर उतार दे। शिष्ययो मे ऐसा ज्ञान भर, मिट जाए जिससे प्रपंच, नई कोपले ,नई उमंग फिर, गुंजित हो वंदे मातरम वंदे मातरम।। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...