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Tag: ओमप्रकाश सिंह

मानवता का रुदन
कविता

मानवता का रुदन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज करोना फिर बढा है मानवता का रुदन बढ़ा है। चाह अमृत की है मगर चीन ने विष-वमन किया है। यह काल महा प्रयलंकार बना है अब वायु में यह वायरस घुला है। प्राण वायु पर पहरा है आज कल यह षड्यंत्र गहरा है। आज मानव गिद्ध बना है हर स्वांस को वह लूट रहा है। मानवता है सेवा भाव फिर दानव बन कोई लूट रहा है। विस्वास प्रेम सौहार्द का वह- क्षण-क्षण, पल-पल घुट रहा है। जीवन उपयोगी अवषधियो को लुटेरे ऊंची कीमत पर बेच रहे है। धैर्य संयम से ही जीतेंगे फिर से नव जीवन खिलेंगे। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आज पुनः
कविता

आज पुनः

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज पुनः फैल रही है कोरोना वायरस की महामारी। चीत्कार फिर मच रही मानवता पर संकट भारी। समसान में धधक रही है चिताओ की ज्वाला भारी। अर्थव्यवस्था जो पटरी पर थी छीन भिन्न हो रहा है सारी। पूरे विश्व मे कोहराम मची है फिर फयल रही है महामारी नित नवीन वैक्सीन बनी फिर फिर भी मानवता पर यह संकट भारी सूरदास, रैयदश आदि संतो ने, देख लिया था दिव्य दृष्टि से मानवता की यह दुर्दिन सारि योग क्षेम प्रणायाम से ही मिट सकेगी यख दूर दिन सारि मानव ही है इसके जड में मानवता पर संकट भारी वुहान लैब में दुसट चीन ने रच डाली यह कुचक्र सारि हाहाकार सर्वत्र मची है यह संकट अति विस्मय करि। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० र...
माँ तारा
कविता

माँ तारा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तू हो समर्पिता, अर्पिता तू हो सृष्टि की मूल बिंदु तुम्ही हो। माँ तू हो अनय की सृंखला बनी तू हो भोग की ग्रहिका बनी। तू हो धरा पर अर्चिता, गर्विता अनादि अनन्त तू विभु सम्पन हो। प्रचंड मार्तण्ड की सुप्त किरणों से तू शशि सम्पन्न धरा करती हो। माँ तू मनु की सतरूपा अनादि अभिन हो जब भी धारा पर गहन अंध छाता है मां तू महा ज्योति प्रभा बनकर आती मां तारा तू अनादि अनन्त हो मातेश्वरी तू प्रीति संपन्न हो पुरुरवा की मेनका रमभा तुम्हीं हो साहचर्य सहगामनी सत्य सनातनी हो महाभोगनी फिर भी योगिनी हो कुंडलिनी सर्पनी तू महआभैरवी हो धधकती चिताय महाश्मशान में जीवन की नश्वरता चिंता की रेखाएं। जीवन की कोलाहल में मृत्यु की निरव शांति में मातेश्वरी तारा तुम्ही छुपी हो। इस जीवन की संध्या में मां तू अपूर्व लालिमा हो। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...
कोरोना के कोहरे
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कोरोना के कोहरे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** कोरोना की घने कोहरे की वीरानगी में छिपी दुबकी जिंदगी सूर्य की प्रखर किरणों की ताप से उल्लासित,सुवासित,मुखरित हो उठी है। विधालयो में पुनः मै देखता हूं कि छात्र -छात्राओं की संख्याओ में बेतहासा बृद्धि समृद्धि सी हो गई है। खिले धूप में फिर से पढन-पाढन आरम्भ हो गई है पढन से उत्साहित छात्र छत्राए एक नई जीवन की उम्मीद बांध एक नईं स्फूर्ति के साथ नये वर्ग में माँ सरस्वती की आराधना में अपने आपको सतर्कता के साथ संलग्न कर। जिन्दगी की डोर को स्नेह और करुणामयी याचना के साथ इस कोरोना के कालखण्ड में। ओत प्रोत हो माँ शारदे कि कर कमलों में समर्पित अर्पित कर रहा है अपना सब कुछ। कोरोना के घने कोहरे की वीरानगी में छिपी दुबकी जिंदगी ,उल्लासित,सुवासित फिर से मुखरित हो उठी है। वैक्सिन के लिए अपने राष्ट्र के महान वैज्ञानिको को धन्यवाद ज्ञापित कर रहे है। पर...
योगिनी
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योगिनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सुदूर-क्षितीज में उज्जवल तारे तुझे देख कर विहँस रहे है। नीले अम्बर के नीचे योगनी निलिमामयी आभा बिखरी है। निल मणि सी तू अतिसुन्दर हर पल तू सुन्दर दिखती हो। नूतनता की सेज सजी है मादकता से परिपूर्ण क्षण। तुझे देख कर बिहस रही सब आतुरता की मधुर मिलन क्षण। फिर भी मौन बनी रहती हो प्रखर तेज से दीप्तिमान तू। महायोग में लिप्त रहती हो मौन ध्यान की गहराई में। हरक्षण तू खोयी खोयी रहती हो कुंडलिनी सहस्त्र सार आज्ञाचक्र में रमण करती हो। बोलो तो कुछ मुखारबिंद से इस शरद पूनम में कहा खोयी हो? जय माँ तारा जय माँ तारा की जय घोष को महस्मशान में बोल रही हो। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान...
कंकाली स्तुति
भजन

कंकाली स्तुति

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** श्री कंकालीकायै नमः जगत कल्याणी जानकर,ब न्दों चरण तुम्हार। समस्त कामना पूर्ण करो, हरहु क्लेश हमार। जय माँ कंकाली क्लेश बिनाशनी। जग-जननी शम्भु भामिनि।। शवारूढ़ श्मशान -वासिनी। उग्ररूप अभयंकर करणी।। श्याम-वर्ण बाघम्बर धारी। लक्ष सूर्य सम ताप तुम्हारी।। पिंगल जटा अरुण त्रिनैनी। चतुर्बाहु भुजदंड बिशाला।। खप्पर जलज कत्री कृपाणा। हस्त लिए तुम काल समाना।। पद नख झलमल ज्योतिरत्न की। छुअत खुलत कपाट नयन की।। वाक चातुरी छंद गायिका। तू पूर्ण ब्रम्ह ब्रमांड नायिका। तू माँ पूर्ण पुनः तू रीता। सगुनागुण से परे अनिता।। जड़ चेतन अरु जीव प्रवीणा। सब तुममे तुम सबमे लीना।। सभी तुम्ही से जीवन पाते। अन्त समय तुझमे मिल जाते।। यंत्र मंत्र इतिहास पुराना। आगम निगम वेद प्रमाणा।। घोर छटा माँ तरी जितनी। परम कारुणिक हो तुम उतनी।। दया मात्र माँ जा पर तेरी। ऋद्धि-सिद्धि...
मैं एक पौधा हूं
कविता

मैं एक पौधा हूं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ खाद उर्वरक की कमी से गुजरा हूँ मरूभूमि की खजूर सा लंबा शरीर वाला मतवाला हूँ ताड़ सा शब्द ब्रह्म का नशा देने वाला हूँ अगर मेरे नशा को पीकर कोई बनता मतवाला हो कल्पना की महानद मे गोता लगाने वाला हो आ जाए मेरे पास मैं वह परम तत्व देने वाला हूँ अप्प दीपो भव का वैराग्य देने वाला हूँ किसी बुद्ध की खोज में बेसहारा हूँ बोधि वृक्ष मैं बन पाऊं ऐसी मेरी कामनाएं है भावनाएं हैं मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ पूनम की सर्द रात्रि में सत्य देने वाला हूँ शांति सौभाग्य का छाहँ देने वाला हूँ हर दिलो में है दुखों के गागर भरे मैं पी रहा हूं ग़मों के प्याले ने धीरे धीरे शून्य से उतर कर आ रही है सुजाता पुनः अमृत रूपी खीर की थाली लिए धीरे-धीरे परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण ...
हाहाकार
कविता

हाहाकार

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आंसू अवतरित होती, हर युग की साक्षी होती- जब भी धरा पर अनाचार बढ़ जाती जब हाहाकार। मां तेरी फिर सृजन होती खड़ग हस्त में अडिग होती- फिर भीषन गर्जन होती, मां धरा पर प्रलय होती। महिषासुर की मर्दन होती, मां तेरी भयंकर हाहाकार से- पुनः धरा प्रकंपित्त होती हर युग हर क्षण में। मां अंबे तुम्हीं साक्षी होती- जब भी पापियों के हाथों, में इस धरा की सत्ता होती। मद मोह और छल प्रपंच से- हर मानवी सभ्यता रक्त रंजित होती। आज पुनः इस विश्व में- मां अंबे तू अवतरित होती। आ गया है वह क्षण माँ, बज चुका अब दुदुंभी। भिषण संग्राम अब छिड़ गया है- संघार शुरू अब हो चुका है। आर्मेनिया, अजरबैजान, ईरान, तुर्की पाकिस्तान चीन और कई राष्ट्र। भीषण युद्ध के आहट लिए- अति संहारक अस्त्र शस्त्रों के साथ। शुरु शुरु में न्याय-अन्याय में होगा पुनः एक भीषण संग्राम। परिचय :- ओमप्...
मैं एक अदना सा शिक्षक
कविता

मैं एक अदना सा शिक्षक

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मैं एक अदना सा शिक्षक, अपनी जिंदगी की सफर में, समय का पाबंद और नियमों, का गुलाम रहा घनघोर बरसात हो। या कड़क धूप की दुपहरिया हो- हम अपनी पूरी लगन और निष्ठा से- जीवन की विगत कई बसंतो को- अपनी जीवन में आहिस्ता-आहिस्ता दफन होते देखकर हैरान हुआ- एक पुरानी साइकिल पर रेंग कर चढना फिर अपने गंतव्य पर! पहुंचने की जद्दोजहद से- हकलान और परेशान हुआ! मैं एक अदना सा शिक्षक- अपनी जिंदगी की सफर में- समय का पाबंद और नियमों- का गुलाम रहा परेशान रहा! अपनी जीवन के बीते पल पल को- समय की प्रवाह में बहते देख अवाक रहा! दरवाजे पर खड़ी इंतजार में- मेरी सह धर्मनी और छोटे बच्चे- सभी परेशान और उदास रहा! नियत समय पर हाथों में पंखा लिए- चिलचिलाती धूप की लू में उदास भया क्रान्त रहा! अब थक गया हूं जिंदगी की उम्मीदों से- बस मां भारती तेरी आंचल में छुप कर- सो जाओ जिंदगी ...
हे योगेश्वर
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हे योगेश्वर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हे योगेश्वर यह नागेश्वर- हे अभ्यंकर हे शिवशंकर! जागो जागो है प्रलयंकर- ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय! जागो -जागो हे भोले शंकर- संघार करो तू दानव दल का! कर फिर से तू नव नर्तन- मानवता की धर्म ध्वज को! अडिग करो ही नागेश्वर- खोलो त्रि नेत्र हे प्रलयंकर- "मणिकर्णिका" महासमसान है! मां-गंगा की पुनीत तट पर- महासमसान में धधक रही! अनवरत चिता की ज्वाला- अर्ध रात्रि में निशा रात्रि में- विचरण करते कई "अवधूत" मतवाला! मैं अकिंचन इनके जीवन रहस्य- को समझ न पाया हे भोले शंकर! तंत्र मंत्र योग क्षेम सब तेरी ही माया- भटक रहा मैं भी "महाश्मशान" में! हे काशीनाथ हे विश्वनाथ सब तेरी ही माया- श्री तैलंग स्वामी महा अवधूत ने- यहां किए थे कठिन साधना! कमरू के स्वर मेरे हृदय में भर- करो कृपा हे विश्वेश्वर ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय यह "महामंत्र"है पंचाक्षर! परिचय :- ओ...
मां तारा
कविता

मां तारा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मां तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार- मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार! दश "महाविद्याओं"में तू अद्वितीय तू ही पालनहार- जो कुछ मैं हूं हे माते तेरी ही कृपा कटाक्ष! मैं अबोध तेरी पुत्र तेरी बिन मैं हूं अनाथ- माँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार! मैं भटका हूं इस निशा रात्रि में धधक रही चिता मसान- मध्य रात्रि में भयाक्रांत चारों तरफ है सुनसान! द्वारिका नदी में वर्षा से हो रही है तीव्र प्रवाह- माँँ तारा तुम मेरी सुनो एक करुण पुकार! मैं अकिंचन एक भिखारी मांगता हूं तेरी प्यार- बीत चुकी है कई वर्ष न मिट सकी है प्यास! मां तारा तेरी मिलन की चाह में भटक रहा महाशमसान- वरद अभय मुद्रा में मां तू अडिग हो तू ही पालनहार! महाशमसान में साधक गण सभी कर रहे करुण पुकार- इस नश्वर संसार में मां सुनो मेरी करुण पुकार- श्रृंगाल -शिवा, भैरवी ,योगिनी की आ...
विरह-वेदना
कविता

विरह-वेदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आतुर विरह की स्वर बून्दो में भर प्रियतम की अधरों पर बरस। हे ऋतुओ की रानी विरह वेदना को कर सरस पावस की अगणितकण बरस-बरस। प्रिया है ब्याकुल-आतुर विरह की वेदना बून्दो में भर तू प्रियतम की सूखी अधरों पर बरस। कोयल की कुक-चातक की पिऊ-पिऊ आवाज श्रावण की मास विरह -वेदना की। असह्य आग तू कर सरस विरह की वेदना कर सरस। पावस की कण तू बरस बरस। प्रिया की भीगी कपोलो बिंदी सी बून्दो की चमक। भीगी गात-अपलक नयन विरह की वेदना में मगन। प्रिया कर रही- अपनी प्रियतम की मिलन की जतन। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौल...
मानवता
कविता

मानवता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज धरा पर उन्माद बड़ा है, मानवता खतरे में पड़ा है! "महाविनाश" की तैयारी मे विश्व-पटल पर कुचक्र बढा हैं! चीन राष्ट्र ही इसकी धुरी हैं यह विस्तार वाद की नीति गढा है आज "मानवता" खतरे में पड़ा है। जल, थल, नभ में खतरे की, महायुद्ध की उन्माद जगह है। पुनः हिमालय कि तुंंग शिखर को, दुश्मन फिर ललकार रहा है। एटम, हाइड्रोजन नये प्रक्षेपास्त्र से रण कौशल में सैन्य सजा है आज धरा पर उन्माद बड़ा है। भुखमरी बेरोजगारी से लड़ने के बदले मानव-मानव का शत्रु बना है। भारत की शांति नीति को चीन पाक ठुकरा रहा है। विश्व युद्ध की आहट से मानवता खतरे में पड़ा है। खबरदार हो जाओ दोनों पुनः बुद्ध मुस्कुरा रहा है। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com...
रात्रि में
कविता

रात्रि में

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** निशा रात्रि में टिमटिमा रही है व्योम में तारक गण सुदूर अनन्त में। झींगुर की आवाजें गहन अंधकार को बेध रही है महाश्मशान में उठ रही है। चिता की लपटें जलती हड्डियां चटक रही है शिवा श्रृंगाल की आवाजें निशा की अपार नीरवता को भंग कर रही है। जल रही मोबतिया भी कुछ दूरियों तक महाश्मशान में जय माँ तारा की आवाजें निशा रात्रि की स्तब्धता को तोड़ रही है। तारापीठ की महाश्मसान में अमावस्या की निशा रात्रि में। साधक गण भी मग्न है अपनी साधना में कुछ क्रियाए और मंत्रोचार में। केवड़ा ,गुलाब की खुश्बू भी फैल गई है इस जाग्रत महाश्मशान में। मै भी टहल रहा हु भय मिश्रित सा माँ की चरण चिह्यो को याद कर । महान साधक वामाखेपा को प्रणाम कर। जीवन की सत्यता को तलाश रहा हु इस निशा के बीतते प्रहरो में समय के साथ अनन्त की लय में खो गया अपनी नश्वर भंगिमाओं के साथ। अनश्वर आत्म...
मै एक अकिंचन हूं
कविता

मै एक अकिंचन हूं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** माँ भवानी मै एक अकिंचन हूं तेरी कृपा दृष्टि की भिखरी। माँ मै न मंत्र जानता हूं न कोई तंत्र जानता माँ भवानी न आवाहन जानता तेरी। न अस्तुति याद मुझे न अस्तोत्र सारी सब प्राणियों का उद्धार करने वाली। तुम्ही हो कल्याणमयी, ममतामयी माँ भवानी समस्त दुख विपत्तियो को हरने वाली इस करोना काल मे फेल रही है विपति भारी। करोंना विषाणु की महामारी तू संघार कर माँ इस विषाणु का जो बड़ा ही है क्षयकारी कष्टकारी। तू सब का उद्धार करने वाली हो माँ भवानी न मै तेरी पूजा विधि जनता न वैभव है सारी। केवल एक मै एक भिखरी माँ भिक्षा तू मुझे दे तू भर दे मानवता की भिक्षा पात्र सारि। मै सभाव से आलसी हु लोभ है सारी न तेरी पूजा ध्यान तप कर पाता। तू करुणा की सिंधु हो माँ भावनी तेरी कृपा दृष्टि का हु एक भिखरी। जब अंतिम क्षण माँ आए मेरी तो मेरे कन्ठ से निकले माँ भवानी माँ भवानी...
कल्पना
कविता

कल्पना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** विरह की अगन बनकर तूम भी बहुत पल जल चुकी हो। अब प्यार की पावस बनकर जरा बरस कर देखो। गीत बनकर पुष्प बन हार बनकर पा चुकी महिमा बहुत सृंगार बनकर। बोलो अब मौन ब्रत तोड़ो मेरे शुष्क हृदय में उतरकर। अपने अधरों में छुपे हास को विखरो कल्पना जन्म जन्मान्तरों के बंधनों से। उन्मुक्त होकर फिर ये अनन्त नाद फिर से भर दो। तुम कालचक्र हो केशव का माया बंधन को छिन्न भिन्न कर दो। पल भर में दिव्य चेतना की अमृत रस ह्रदय पटल में भर दो। शंकर की डमरू बन कर तुमअनन्त नाद भर दो। माँ सरस्वती की विणा बन कर तुम कल्पना अनन्त स्वर भर दो। कल्पना तुम ही तो कवियों की सवामिनी हो। अनन्त राग रागनी हो प्यास और नदिया तुम्ही हो। तुम्ही पाप और पुण्य हो परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी र...
जीवन-शिक्षण
कविता

जीवन-शिक्षण

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मेरे छोटे नौनिहालो- तुम चिरंजीवी रहो। तुम्हे बताता हूं जीवन जीने की कला। श्रम से पसीने से मांशपेशियों को शरीर को मस्तिष्क को स्वस्थ बनाना धमनियों में शुद्ध रक्त की प्रवाह के साथ फेफड़ो में। शुद्ध वायु एवं मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखना कठिन समय से जूझना मै समझता हूं जीवन का। अभी लंबा सफर है कही उचे टीले तो कहि पथरीली सतह है। कही समंदर की लहरें तो भयावनी खण्डहरे। कही सिसकती राते कही मरोडती उदर आते कही चांदनी का मातम कही अंधेरी राते मै समझता हूं साहसी कर्मशील होते है समय की वॉर से झटके या बयार से फिसलते गिरते है मचलते है वे पुनः लक्ष्य की ओर कूच कर जाते है। इसलिए एक नही सैकडो कहानिया उनके जीवन मे बनते है। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इं...
स्वतंत्रता
कविता

स्वतंत्रता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हम सोचे थे हमारे आहूत महान आत्मा सोचे थे। हमारा राष्ट्र कितना प्यारा होगा वह क्षन जब सभी स्वतंत्र होंगे। वे सभी लक्षय उनकी चिर अभिलाषाओ को बेधकर जोक और मच्छरों के बेसुमार। झुंड सा बेगुनाह निरीह बेसहारा भारतीयों का नर पिसाच सा चतुर बहुरूपिया। रक्त चूस रहा है राष्ट्र का युवा मौन इन प्रताडनओ का दंश झेल रहा है। क्या यही स्वतंत्रता है जहा इनसानीयत नही हो भेद भाव की सिर्फ स्वार्थ भरी कूटनीति हो। जो हैम सभी का प्रतिनिधित्व करते है। इनसानीयत को भूल जातिवाद अलगाववाद की कुचक्र रचते है। सजग होना होगा हम सभी भारतीयों को बेरोजगारी भुखमरी स्थाई समाधान ढूंढना होगा। डपोरशंखी घोसणाओ को समझना होगा माँ भारती की बाली वेदी पर जो सपूत आहूत होगए उन्हें नमन करना होगा। रोजगार परक शिक्षा को सत प्रतिशत लाना होगा हर भारतीयों के घर मे खुशियाली हो ऐसा हमारा नीतिन...
विरह मिलन की तैयारी
कविता

विरह मिलन की तैयारी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आज साजन मेरे द्वारे आए मै विरह अगन की मारी रे। बचपन ब्याह रचा दी बाबुल अब बढ़ हुई सयानी रे विरह मिलन की भूख है कैसी ठीक समय पर आए बराती डोली लाए सवारी रे सोलह सिंगर सजा मेरी सखियाँ गजरा बाँध संवारी रे। कजरा नयन भरो मेरी सखियाँ ओढ़ा दे सोना जडल चुनरिया रे। सुसक सुसक मोरे बाबुल रोए भइया बैठी दुआरी रे। बाह पकड़ कर मैया रोयी भाभी अंक भर वारी रे अब धैर्य रखो मोरे बाबुल बेटी जात बिरानी रे। एक दिन रोती छोड़ सभी को चल देती ससुराली रे। छढे मंजिल पर एक कोठरिया तामे एक दुआरी रे। अहनद घहरद शहनाई जलता दिप हजारी रे। विरह मिलन में चली अकेली लगी प्रीतम की छतिया रे। निज अस्तित्व गवा मै बैठी। विरह मिलन की तैयारी रे। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindiraks...
एक रात यूँ ही
कविता

एक रात यूँ ही

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** एक रात यूँ ही मै ठिठक कर सहम गया अस्मा की ओर हाथ बढ़ाकर लपक गया। निस्तब्ध शांत रात में क्या दीवाली माना रहे हो अपने घर मे तुम महा पटका उड़ा रहे हों। तोपो की जैसी गरज आवाज में तिमिर की प्रकाश में तुम महदीपवाली माना रहे हो बोलो बदलो तभी उत्तर में कुछ बूंदे टपकी। अचानक अंधकार की घानाआवरण सम्पूर्ण दिशा में फैल गयी। मालूम हुआ कि कम्पन से सम्पूर्ण दिशा ही हिल गयी। तिमिर की प्रकाश सभी मीठे दिख पड़े सभी स्वच्छ निरभ्र शांत। ईस्वर की तरफ से यह ओमकार ध्वनि होता है प्रार्थना रूपी साक्षात्कार होता है। वर्षा की रात सुहानी झींगुर की गुंजन दादुर की टर टर की आवाज में यह रात शोभायमान होती है परी रूपी बदलो की समूहों से वर्षा की बूंदो रूपी पुष्पो से मातृ भूमि की अभिषेक होती है जन जीवन मे फिर से नव गीत की संचार होती है। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक म...
फिर से जागे
कविता

फिर से जागे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फिर से जागे वीरो में प्रखर राष्ट्र चेतना। यौवन की अंधी फिर से जागे सवा लाख पर एक हो भारी। गुरु गोविंद की मर्दन जागे जगे फिर से महिष मर्दानी। राष्ट्र हित मे सब कुछ जागे सुभाष, भगत और वीर सवरकर की। दृढ़ संकल्प की तरुणाई जागे प्रशुराम की परसु जागे। बजे समर की पांचजन्य अब राष्ट्र हित मे सब कुछ जागे। प्रखर राष्ट्र चेतना फिर से जागे मौन नही अब कृष्ण यहा पर। गीता का समर स्वर बाचे बैभव माँ के बीर यहा के जो छन-छन अपने प्राणों को बाटे बली वेदी पर रक्त संचित सांसो को ये धन्य राष्ट्र के बीर बाँकुरे जो। राष्ट्र रकच्छन में सब कुछ बाटे . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान आप भी अपनी क...
डमरू के स्वर
कविता

डमरू के स्वर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। कर फिर से तू नव नर्तन संघार करो तू दानवता की। फिर से तू रच नव सृस्टि को। मानवता की धर्म ध्वज को अडिग करो हे नागेश्वर। डमरू के स्वर बूंदो में भर पावस फुहार बन फिर बरसो। मुरझाई इस बसुधा में फिर से हरियाली आयी। सुखी नदिया ताल तलैया नव उमंग की लहर हिलोरे। ले रही सब अंगराई रूखी बसुधा फिर नवसिंगार कर नव दुल्हन बन कर मुस्काई । डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। आज अडिग यह भारत भू हो फिर सरहद पर है संकट आई । खोलो त्रिनेत्र है प्रलयंकर भस्म करो तुम सत्रु दल को। डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक...
गुरु वंदना
गीत

गुरु वंदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** गुरु तो ईश्वर का साकार रूप होता है अंधाररुपी जीवन में प्रकाश पुंज होता है! गुरु की वाणी में रहती छिपी प्रखर ज्ञान, प्रज्ञा ज्ञान की चिंगारी! गुरु की कृपा मात्र से यह नश्वर जीवन अमर शाश्वत बन जाता! इस अलौकिक जीवन की यात्रा- अति-सरल सुगम बन जाता! गुरु अंदर की-दिव्यता को- जगा कर इस जीवन पथ को आलोकित कर जाता! निज पशुता को भगाकर दिव्य चेतना लाता मनुज मात्र के लिए उज्जवल प्रकाश पुंज फैलाता! सदियों से है गुरु कृपा की अनेकों दिव्य कहानी! महामूर्ख कालीदास सदृश एक दिन 'महाकवि' बन जाता! महान योद्धा अशोक सम्राट बौद्ध भिक्षुक बन जाता! 'आर्यभट्ट' ब्रह्मांड के ज्ञाता कोई 'कणाद' सदृश्य अनु ज्ञाता बन जाता! कोई चाणक्य कृपा को पाकर महान सम्राट बन जाता! मैं मूरख भी निश-दिन गुरु वंदना गाता! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम...
आक्रोश
कविता

आक्रोश

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अधिकांश युवा मानस की पटल से उभर रही है आक्रोश की गुबार। क्योकि आजकल की युवाओ को सही पहचान बनाए रखने के लिए। न तो कोई मार्गदर्शक हैं न कोई मानदंड सिर्फ भौतिकता की दौड़। उदंडता से पीड़ित सुकुमार सपने को साथ बिन्दीया सी चमकती। तुच्छ सफलताओ को चूमने पुचकारने में व्यस्त। खाशकर माध्य्म वर्गीय पिछड़े परिवार के किशोर और युवा अपनी मनोवृत्तियों में। छेड़ रखा है आक्रोश की धुंआ जो गुबार बनता जा रहा है। इस जीवन की निरस्त उत्कण्ड़ाओ को एक आकलन की सूत्र लिए। अपनी पहचान बनाए रखने की लिए भ्र्ष्टाचार की गर्माहट में भइए भतीजावाद में। जो नाजीवाद से छह गया है इस आजाद हिंदुस्तान में। अपने आपको चर्चित तस्वीरों में उवभारने के लिए आक्रोशो को साथ लिए। कानूनी अपराधों की संगीनों में बेध रहा है अपने आपको। अगर यह आक्रोश रोजगार की मरहम से बन्द न हुआ तो शांति का नब्ज डु...
व्यथा
कविता

व्यथा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** व्यथा उन शिल्पियों की जिनके खून पसीने से सिंचित है। माँ भारती का कण कण निःठुर है यह कोरोना काल। रो रो कर बेहाल है यह लाल छोटे छोटे बच्चे अबला नारी। निकल रहे है टोली में करवा बनता जा रहा है। रास्तो पर दम तोड़ते भी जा रहे है घटनाओ,दुर्घटनाओं में। न पॉकेट में है पैसा न खाने को कुछ है। अब रो रहा है यह कलम का सिपाही भी । हाय यह कैसी विवस्ता है दुखो की अंत हीन दास्ता है। यह हमारी व्यवस्थाओं पर एक भयानक प्रहार है। समझना होगा उन नियंताओ को जो सत्ता के शिखर पर है। अपने प्रदेश के मृत उद्योगों को पुनरः जीवित करना होगा। माँ भारती के इस लाल के पलायन को अब रोकना होगा। एक नया रोजगार परक नियम बनाना होगा। उधोग धंधो का जाल फैलाना होगा। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंद...