Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: ओमप्रकाश श्रीवास्तव ‘ओम’

पर्व शिव कीर्तन का
भजन, स्तुति

पर्व शिव कीर्तन का

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** मेरे मन में भाव उठा अब, बाबा शिव के कीर्तन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। इस दिन भोले बनते दूल्हा, करके वह पुष्प श्रृंगार। झूमें नाचे तब भक्त सभी, खुशी मनाते हैं अपार। प्रेम मगन होकर उर आता, मधुर भाव शिव नर्तन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। गौरा माता बनती दुल्हन, करती शुभ प्रेम श्रृंगार। आँखों में शिव की छवि होती, सत उर में उमड़ता प्यार। भाव उठे शिव बारात सदा, प्रभु नील पुष्प वर्षण का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। भाँग धतूरा सेवन करते, नित भूत प्रेत गण सारे। भाँग मधुर पीसें गौरा जब, पीते तब भोले प्यारे। भोले की करती नित सेवा, रखें मान माँ कंकन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्...
महके बसंत
कविता

महके बसंत

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** स्वागत कर लो आज बना यह सारा साज। उपवन खिले देखो महके बसंत के फूल। फैली चहुँदिश देखो हरी-हरी हरियाली। बसंत मौसम आया मिटेंगे उर के शूल। बसंत जब भी आता खुशी के पैगाम लाता। सब जन जाते तब ताड़क गरमी भूल। करलो स्वागत तुम मौसम सुहाना यह। मिलेगी अबतो मुक्ती ऋतु जो उड़ाये धूल।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्...
हिंदी माता सम सदा
कविता

हिंदी माता सम सदा

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** हिंदी होती है सदा, प्रेम भाव आधार। सुंदर शोभित वाक्य दें, अटल ज्ञान भंडार। अटल ज्ञान भंडार, रही भाषा की जननी। प्रांजलि का अभिमान, यही है भाषा अपनी। भाषा की सिरमौर, लखे मस्तक में बिंदी। छोड़ो सोच विचार, पढ़ो बच्चों नित हिंदी। हिंदी माता सम सदा, देती अनुपम ज्ञान। हिंदी पढ़ पढ़ के बने, तुलसी दास महान। तुलसी दास महान, लिखी प्रभुवर की माया। करने जग उद्धार, रखी मानव की काया। होता विधिवत ज्ञान, समझ कामा वा बिंदी। आती लेखन धार, रचो रचना नित हिंदी।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच...
माया छोड़ो मानवता जोड़ो
कविता

माया छोड़ो मानवता जोड़ो

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** देखे माया जब जग, भटके उसका पग। द्वेष दर्प अति झूमे होता मानवता पतन। होते ज्ञानी कुछ लोग, त्यागें यह माया भोग। चले मानवता पंथ इंसान को करे नमन। कुछ नर लोभी होते, सत्य धर्म सब खोते। पाने को अकूत धन करते कितने जतन। कहे ओम मानो बात, छोड़ो भेद धर्म जात। लोभ दर्प द्वेष त्यागो प्रेम से रहिए वतन।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्य...
आयी देखो दीपावाली
कविता

आयी देखो दीपावाली

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार। घर घर में शुभ दीप जलेगा, जगमग होगा घर संसार। होली दीवाली जब आती, करते सब जन सारा साज। लीप पोत घर को चमकाते, करते सब ही सुंदर काज। तब चमके खिड़की दरवाजा, चमके सारा ही घर द्वार। आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार। त्योहार हैं कितने सारे, सबके अपने अपने मान। सकल त्योहारों से बढ़ती, भारत माता की नित शान। देते त्यौहार सभी खुशियां, बढ़ता जग में इनसे प्यार। आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार। कहे ओम कवि सारे जग से, मदिरा से सब रहिए दूर। जग व्यसन से रखिये दूरी, मिलती खुशी पर्व भरपूर। व्यसन से ही बिगड़े देखो, कितनों के ही घर संसार। आयी देखो दीपावाली, लेकर खुशियों का भंडार।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८...
रिमझिम-रिमझिम
कविता

रिमझिम-रिमझिम

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रिमझिम-रिमझिम बारिश है छिमछिम, भीगने से अपने को, सदा ही बचाइए। बारिश में लेलो छाता, बहुत जरूरी नाता, इसको कभी भी मत, भूल से भुलाइये। भूले यदि तुम छाता, बने सरदी से नाता, जान बूझ कर कभी, रोग न बुलाइये। मानो तुम मेरी बात, कितनी हो बरसात, घर मे रहकर ही, पकौड़ी बनाइये।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्न ...
भागदौड़ की दुनिया
कविता

भागदौड़ की दुनिया

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** आकर इस धरती पर मानव कब सुख का पल तूने पाया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया। रोटी-रोटी करता मानव दिन-दिन भर फिरता रहता है। पाने को वह सुख की रोटी, भरपूर मेहनत करता है। भूख और माया चश्मे ने, मानव को है खूब थकाया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया। सूरज की किरणों संग सदा चिंता का पहाड़ है आता। क्या करना किसको पूरे दिन सब विधान वही तो बताता । अर्थ-अर्थ की दुनिया सारी, भूख अर्थ की है इक माया। भागदौड़ की इस दुनिया में, ढूंढ रहे सब शीतल छाया।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय...
इक माँ
कविता

इक माँ

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती है, पाने को मातृत्व लाभ वह, सदा मृत्यु से भी लड़ती है। छोटी सी इक कन्या देखो, यौवन नारी बन जाती है। फिर सृष्टि जगत नियमों से बँध, खुद माँ के ख्वाब सजाती है। सास ससुर पति सेवा में वह, निज जीवन अर्पित रहती है। कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती है। माँ बनने के प्रेम पाश में, कष्ट अनेकों वह पाती है, कभी कभी साक्षात मृत्यु से, माँ सीधे आँख लड़ाती है। देने को सारा सुख सुत को, रातों वह जगती रहती है। कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती है। माँ की ममता का पैमाना, जग में कौन बता पाएगा, यह सृष्टि रची जिस ब्रह्मा ने, क्या व्याख्या वह कर पायेगा। जग में माँ ही तो होती है, सह कष्टों को भी हँसती है। कितनी त्याग तपस्या देखो, जग में इक माँ करती ...
बारिश आई
कविता

बारिश आई

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रिमझिम रिमझिम बारिश आई, भीग रहा गुड़िया का भाई। दौड़ी गुड़िया छाता लाई, बूंदों से झट उसे बचाई। झम झम झम अब बरसा पानी, छत पर भीगें दादी नानी। रानी गुड़िया शोर मचाये, छत से नीचे उन्हें बुलाये। पापा भी ऑफिस से आए, अपना गीला छाता लाए। छाता टपके टप टप पानी, देख देख हँसती है नानी। पानी पानी पानी पानी, चारों ओर भर गया पानी। बच्चे पल-पल शोर मचाये, आज पकौड़ी हमको खानी। सुन बात पकौड़ी मन डोला, पापा ने भी झटपट बोला। गरम पकौड़ी आज बनाओ, बारिश में यह लुफ्त उठाओ। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतर...
ओम प्रीत की जोड़ी
कविता

ओम प्रीत की जोड़ी

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** निजस्वप्न में सोचा था मैंने एक सुंदर सा मेरा हमसफ़र होगा। जीवन पथ में बढ़ने को बेहद ही खूबसूरत सा सफर होगा। मिला आशीष जब माता का इक्कीस जून नव को मैं प्रीति से मिला। परिणय बंधन में बंधकर एक दूजे को जीने का शुभआलम्ब मिला। मिथिला अरुण की कली को वेद अश्वनी के पुष्प ने जीवन साथी बनाया। दोनों परिवारों ने देखो कितना सुंदर पुष्पों का यह एक हार बनाया। हर पल हर क्षण तेरा मेरा दिल से दिल का खूबसूरत साथ रहता है। जुबाँ कुछ कहे या ना कहे पर, जज्बात हर बात अपनी एकदूजे से कहता है। विचारों का टकराव तो कभी कभार जीवन में होता ही रहता है। पर अंतर्मन की नदी से प्रतिपल प्रेम का बहाव सदा बहता रहता है। ओम प्रीत के उपवन में मान्यता उपलब्धि देवी रूप में आई, श्रीवास्तव परिवार को देखो असीम उपलब्धियाँ हैं दिलाई...
रक्तदान कार्य महान
कविता

रक्तदान कार्य महान

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** रक्त दान सब मिलकर अपनाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। हुई दुर्घटना मानव खून बह रहा, देखो प्राण संकट अब बढ़ रहा, रोगी के लिए फरिश्ता बन जाओ जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... आज मानव ईर्ष्या अग्नि में तप रहा, मानव ही मानवता का शत्रु बन रहा मानवता संग प्रेम का दीप जलाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... जीवन में कुछ कुछ दान सभी करते, अन्न, धन, विद्यादान तो सभी करते, एक विशिष्ट दान का संकल्प उठाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... इस जगत में रक्तदान है कार्य महान, मानव के प्राण रक्षा का सुंदर विधान, विधान में पुण्य भागीदार बन जाओ, जग में खुशियाँ चहुंओर बरसाओ। रक्तदान सब मिल.... परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शि...
मानवता का दीप
कविता

मानवता का दीप

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** चलो मिल मानवता का दीपक जलाएं एक सुंदर सा मानव समाज बनाएं। देखो चारों ओर फैला ईर्ष्या, द्वेश, आपसी सद्भावना से इसे मिटायें। आज मानव माया मद में अंधा हुआ, जला ज्ञानदीप सही पथ उसे दिखाएं। विकास नाम पर साफ होते वन कानन, रोक प्रकृति विनाश पर्यावरण बचाएं। कल कारखानों से फैल रहा है जहर, कर पौध रोपण जीव जगत को बचाएं। कहता ओम अगर हो मानव तुम सच्चे तो मानवता का प्रकाश तुम फैलाओ।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल...
मीठी वाणी
कविता

मीठी वाणी

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** मीठी वाणी मीत मिलते, तीखी वाणी शत्रु पनपते। मीठी मीठी वाणी बोलिए जगत में मधुरता घोलिए। मीठी वाणी देव की जानी तीखी वाणी दैत्य निशानी। मीठी वाणी दिल मिलाए तीखी वाणी कहर बरपाए। मीठी वाणी औषधि बनती तीखी वाणी जहर उगलती। मीठी वाणी सबको भाती, जगत में सम्मान दिलाती। मीठी वाणी उपजे सुविचार, तीखी वाणी कुत्सित विचार। प्यारे तुम भी मीठा ही बोलो, पहले तोलो फिर मुख खोलो। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, र...
ऐसा क्यों?
कविता

ऐसा क्यों?

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** नये जमाने में कितना आगे हम आ गए, दिल के भाव सोसल मीडिया में समा गए। आज हम सबका दिवस मनाने लगे, फेसबुक व्हाट्सएप में भाव जताने लगे। मातृ दिवस व पित्र दिवस खूब मनाते हैं, पटलों में श्रद्धा भावो की गंगा बहाते हैं। नये जमाने में कितना आगे हम आ गए, दिल के भाव सोसल मीडिया में समा गए। जो निशदिन सम्मान करते माता का, सच वही श्रद्धा से मातृ दिवस मनाते हैं। जो माता को एक रोटी देने से बचता, वह झूठ मूठ श्रवण बन पटल सजाते हैं। नये जमाने में कितना आगे हम आ गए, दिल के भाव सोसल मीडिया में समा गए। पर्यावरण, पृथ्वी, जल दिवस खूब मनाते हैं, बड़े-बड़े काव्य और आलेख लिख जाते हैं, पर सोचो क्या हम वर्ष में एक पेड़ लगाते हैं, उपदेश तो देते पर स्वयं ही पीछे रह जाते हैं। नये जमाने में कितना आगे हम आगए, दिल के भाव सो...
कोरोना
कविता

कोरोना

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** है यह कोरोना महामारी अति घातक बच के रहना। ये काल कोरोना धरा पर अपने पांव पसार रहा है। हो कोई समाज बचा नहीं महामारी से सावधान रहो। हे नर अब भी समय है संभल जाओ खिलवाड़ रोको। ये धरा सबकी मातृभूमि पालन हार सबका आश्रय। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हा...
प्रकृति संरक्षण
कविता

प्रकृति संरक्षण

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** देखो आज कितना बुरा समय है आया चारों ओर दिख रही है मृत्यु की छाया। आदमी हर पल हर तरह से मजबूर है, ऑक्सीजन बनी जैसे छाया खजूर है। हर तरफ ऑक्सीजन की मांग हो रही, अस्पतालों में जिंदगी मौत में खो रही। मानव अब भी समझ जा अपनी गलती, झूठे विकास से ही बंजर हुई यह धरती। साफ कर जंगलों को तूने महल हैं बनाए, स्वकृत्य से धरा को खून के आंसू रुलाए। धन की वासना में मानवता की बलि चढ़ाई, माया के लिए तूने संस्कारों की होली जलाई। तुच्छ जीव ने विकास का दर्पण दिखा दिया, बड़े-बड़े देशों को मृत्यु के आगे झुका दिया। अब प्रकृति के संरक्षण का बीणा उठाओ, भविष्य की आपदाओं से जग को बचाओ।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : ...