Saturday, September 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: आस्था दीक्षित

बरखा
कविता

बरखा

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** नाच नाचने बादल आया, संग में कितना पानी लाया। हर ओर थिरकती हवा चली, मदहोश मचलती मनचली। सांय-सांय हो इधर उधर, न पता उसे जाना किधर। बरखा को न्यौता दे आई, देख उसे बरखा मुसकाई। बरखा रानी हवा सयानी, इक सिरे की दो कहानी। घन-घन फिर बादल गरजा, लगा जोर से ढोल बजा। लो बरखा ने रफ्तार पकड़ ली, थिरक रही वो छेन छबीली। हर पत्ता भीगा, डाली भीगी, हुई धरा भी भीगी-भीगी। सड़क भीगी, कपड़े भीगे, छत पर सूखे गेंहू भीगे। इधर उधर यूं डोल कर, घूम रही हर गली डगर। शीतल वन उपवन हर पात-पात, शीतल बरखा की शीतल मुलाकात। परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
मेरा भाई
कविता

मेरा भाई

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** घर के कोनों में, शिकायतें तमाम है। मेरा भाई, आतंक का दूसरा नाम है। जितना भी समझाओ, नसमझ ही रहता है। अक्ल वक्ल तो है नही, खुद को शहंशाह समझता है। 'बड़ी हूं मैं', मां कहती, फिर भी लड़ाई करता है। लड़ के जब थक जाता, सहारा फिर रोना बचता है। सोती जब आराम से, बाल नोंच के भागता है। मिठाई जल्दी खा कर, मेरे से बँटवारा करता है। कीड़े- मकोड़े जानवर, जाने क्या क्या नाम से बुलाता है। कोई ओर जो आंख उठाये, तो बेझिझक लड़ जाता है। पिट-पिटा के जब भी आता, संग मेरे सो जाता है। सारे भाई क्या होते ऐसे, मन में यही सवाल आता है? ये अगर घर में हो तो, आराम हराम है। मेरा भाई आतंक का दूसरा नाम है। पहले जानवर सा था जो, आज जेंटलमैन हो गया है। शहर की ऊंची इमारत में कहीं, नौकरी करने लगा है शू लेस बांधने में रोता था, अब दिक्...
शंभू
भजन, स्तुति

शंभू

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कराल तन पे जो बसा, कपाट पे तो भस्म है। मृदंग गर्जना करे की, शंभू के ही अस्म है। धम- धमा के चल रहे है, देखो ये धरा हिली। मिट्टी खिलखिला उठी, न जाने क्या खुशी मिली। नाचता ये तन बदन, गगन हुआ मगन मगन। कब बिजलियां चमक उठे, सब आपका ही आकलन। डमरू डम डमा रहा, त्रिशूल का अलख जगा। तुमको बस है पूजना, है कौन क्या? कोई सगा। चंद्रमा तो सज रहा, और बज्र सी भुजाएं हैं प्रचंडता को पा रही, ये किसकी अस्मिताएं है हर बार हम प्रणाम कर के, शंभू तुमको देखते। ललक भरा है ये गगन, ये धार हाथ जोड़ते। ये वाद पात नाचते, की द्वार है शिवाय के। ये बेल पत्तियां हंसी, जो सजी है पांव में। विश्व की प्रजातियों के, एक तुम ही नाथ हो। तुमको ही तो रट रही, दिखों प्रभु जो साथ हो। मैं डर रही, तड़प रही, दिखो प्रभु, कभी दिखों। जय जय शंभू कह ...
पतंग वाले दिन
कविता

पतंग वाले दिन

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हंसता हुआ समय, खिचड़ी का दान चुरा ले गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए अचार, पापड़, घी, बड़े, के कितने चटखारे होते थे संग हो चटनी पुदीने की, तो क्या नजारे होते थे तीखी तीखी चटनी संग, बाते मीठी खा गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए .... जीरे का छौका लगा कर, भर-भर घी पड़ता था कभी मिलते दान, तो कभी देना भी पड़ता था सादी खिचड़ी की सादगी को, सब मिलकर खा गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए .... छोटा होना लाभकारी है, तभी पता चलता था बड़े भाई दीदी से, जो मलाई मक्खन मिलता था पिज्जा विज़्ज़ा तो, मक्खन की मलाई ही खा गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए .... परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
हम छोटे ही अच्छे थे
कविता

हम छोटे ही अच्छे थे

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मासूमी से बाते करते, समझदारी में कच्चे थे बड़े होने का शौक चढ़ा था, जब हम छोटे बच्चे थे नंगे पैर दौड़ लगाते, सजाते ख्याबो के लच्छे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे स्कूल जाना वापस आना, संग दीदी के होती थी डांट पड़ती हमको, जब गुम कोई चीज होती थी टूटे दांतो मे दर्द होगा, बस इतनी चिंता होती थी अब चिंता से गहरा नाता, तब नादानी में सच्चे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे राजा जैसा रख रखाव और जेवर गुड़ियां होती थी नखरे बढ़ते जाते मेरे, घर में रौनक होती थी दालमोट संग बिस्कुट खाना, ऐसी सुबह तब होती थी अब हड़बड़ में जिंदगी, तब हँसी के घरों में छज्जे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे दोस्त यार अब साथ नही, गपशप किसके साथ करे नियम बना है जीवन मेरा, नि...
मां
कविता

मां

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां कामों में उलझा रहता, और याद करता मां आंखों में सपने भरे, पर सपने तुमसे है तुम मुझमें कुछ यूं बसीं, सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने में, तुम साथ देना मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां रात को सर पे तेरी थापे, याद आती है आंगन की वो किलकारी, भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूं, तुम याद आती मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां अंधियारा होने पर मां, तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के, मेरा सर सहलाती थी उन लम्हों मैं में फिर से जीना चाहता हूं मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां शाम को घर वापस आता, बस ताला मिलता है पूरा दिन तुमने क्या किया, न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच कर, सब सह लेता हूं मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां पर...
कोरोना आया रे
गीत

कोरोना आया रे

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** https://www.youtube.com/watch?v=18I0m1BPmqk परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी र...
लाडली
कविता

लाडली

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आनंद मेरा बन के मुझको, कैसे सजा रही घुटनों घुटनों चल रही है, पास फिर बुला रही लाड लाड लाडली, ये लाडली, ये लाडली लाडली ये मेरी, लाड-लाड-लाड-लाडली... झुनझुने की ताल से, दासों दिशा है झूमती हँस के वो जो देखती है, खुशियां जैसे चूमती खुश हूं इतनी कि मैं सारी दौलते हूं पा रही लाडली ये मेरी, धीरे-धीरे मुस्कुरा रही.... लाडली ये मेरी, लाड-लाड-लाड-लाडली... सोम सी है आंखे, मसूड़ों से अब चबा रही हाथों में है कंगन, और तालिया बजा रही किलकारियों से मेरे घर को ये खिला रही लाडली ये मेरी, घर को गुलजार कर रही... लाडली ये मेरी, लाड-लाड-लाड-लाडली... चल रही है घुटनों घुटनों, नन्हे हाथ खींच कर हाथ में जो आ गया, वो फेंके आंखे मींच कर जाने कौन-कौन से वो गाने गुनगुना रही लाडली ये मेरी, शैतानियां भी कर रही... ला...
दहेज
कविता

दहेज

आस्था दीक्षित  कानपुर ******************** किसी का सेहरा सज रहा, किसी का चूड़ा जम रहा। किसी के घर बारात खड़ी, किसी की थी उम्मीदें बढ़ीं। किसी की ग़रीबी से जेब फटी, किसी नजरें पैसे में सटी। किसी ने दिल खोल जलील किया, किसी ने सिर झुका सब सह लिया। किसी की बदनामी है किसी की शान बढ़ीं, किसी की पगड़ी फिर किसी के जूतों में पड़ी। किसी का दिल फिर बेटी में उलझा रहा, किसी को बस दहेज दिखता रहा। किसी की दुनिया फिर बिक गयी, किसी की चौखटें फिर तन गयी। किसी के फिर अरमां कुचले, किसी और की जुबां के तले। किसी के लब्ज दूसरो को गढ़े, किसी की हसरतों के दाम बढ़े। किसी की सहनता ने आह भरी, किसी की लालसा फिर भी न डरी। किसी ने फिर अपनी जान गंवायी, किसी के जीवन के आड़े फिर दौलत आयी। . परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
तुमसे अलग हो कर
गीत

तुमसे अलग हो कर

आस्था दीक्षित  कानपुर ******************** तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है माँ कामो मे उलझा रह कर भी याद करता माँ आँखों मे सपने भरे पर सपने तुमसे है तुम मुझमे कुछ यूँ बसी सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने मे तुम साथ देना माँ . तुमसे अलग ….. रात को सर पे तेरी थापे याद आती है आँगन की वो किलकारी भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूँ तुम याद आती माँ तुमसे अलग…. अँधियारा होने पर माँ तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के मेरा सर सहलाती थी उन लम्हो मे मै फिर से जीना चाहता हूँ माँ तुमसे अलग.... शाम को घर वापस आता न कोई मिलता है पूरा दिन सब क्या किया न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच ते सब सह लेता हूँ माँ तुमसे अलग…. . परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक...