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Tag: आशीष तिवारी “निर्मल”

तुम्ही बताओ
कविता

तुम्ही बताओ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** उसकी बंदिश में कब तक रहता तुम्ही बताओ, मैं उसके जुल्म कब तक सहता तुम्ही बताओ! जहर पीता रहा मैं अब तक खामोशी से यारों, आखिर कब तक कुछ ना कहता तुम्ही बताओ! जो छलती रही सदा अपना कह-कह के मुझको, मैं एक बार उसको क्यों ना छलता तुम्ही बताओ! मेरी उन्नति से भी वो जलती रही अंदर ही अंदर, फिर मैं ही उससे क्यों ना जलता तुम्ही बताओ! सफर में साथ छोड़ के वो बदल दी हमसफ़र, अपने वादों से मैं क्यों ना बदलता तुम्ही बताओ! गुजर गया अनमोल समय बेमतलब के रिश्ते में, बर्बाद हुआ समय क्यों ना खलता तुम्ही बताओ! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशव...
वाह रे ठाकुर जी
कविता

वाह रे ठाकुर जी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम ने गज़ब रचा संसार, चहुंओर मचा है हाहाकार, वाह रे ठाकुर जी...........! बेबसी का लगा हुआ अंबार, खोया अपनापन और प्यार, वाह रे ठाकुर जी............! छद्मश्री को पद्मश्री उपहार, सच्ची कला हो रही भंगार, वाह रे ठाकुर जी............! खूब बढ़ा काला कारोबार, मौन देख रही है सरकार, वाह रे ठाकुर जी............! नारियों पे जुल्मों, अत्याचार, दिख रही खाखी भी लाचार, वाह रे ठाकुर जी............! अपराधी घूमें खुले बाजार, शरीफों के लिए कारागार, वाह रे ठाकुर जी............! मोबाइल की है कृपा अपार, टूट रहे हैं, रिश्ते, घर, परिवार वाह रे ठाकुर जी.............! . परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन...
मत ढूढ़ना मुझको
कविता

मत ढूढ़ना मुझको

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सुबह का सूरज हूँ मैं, रात के तारों में मत ढूढ़ना मुझको मुस्कुराता ही मिलूँगा मैं, गम के मारों में मत ढूढ़ना मुझको। मिल जाऊंगा किसी मंदिर मे होते भजन, कीर्तन के जैसे यूँ सड़कों से गुजरते जुलूस के नारों में मत ढूढ़ना मुझको। अपनी एक अलग ही दुनिया बसा रखी है सबसे दूर मैं ने ढूढ़ना तो अपने दिल में, भीड़ हजारों में मत ढूढ़ना मुझको। होंगे कोई और वो जो मर मिटते हैं तेरी हर एक अदा पर अपने ऐसे बिगड़े, लफंगे, लुच्चे, यारों में मत ढूढ़ना मुझको। खुश्बू बिखेरता फिरता है यह निर्मल जमाने में चहुंओर जब भी ढूढ़ना गुलों में ढूढ़ना, खारों में मत ढूढ़ना मुझको। इंसान हूँ सिर्फ इंसानियत की बात करता हूँ सदा से ही मैं जातिवादी, ब्राम्हण, क्षत्रिय, डोम, चमारों में मत ढूढ़ना मुझको। . परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले...
पार्थिव शहीद का
कविता

पार्थिव शहीद का

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** आया पार्थिव शहीद का, दरो - दीवार खिड़कियाँ रोईं, सगे, संबधी, दोस्त, माँ, बहन, पत्नी और बेटियाँ रोईं। वतन पे मिटने वाले अपने लाल पर गर्वित थे सभी किंतु गले तक भर-भर के दर्द भरी सिसकियाँ रोईं। फेरे लेकर खाईं कस्में जीवन भर साथ निभाने की पत्नी की हथेली में अब अरमानों की मेहंदियाँ रोईं। होली, दिवाली, करवाचौथ सब हो गया है सूना-सूना सिंदूर, मंगलसूत्र, पायल संग सुहागन की बिछियाँ रोईं। नेस्तनाबूत हो गया परिवारजनों का सपना 'निर्मल' नाजुक कलाईयों से उतरती हुई रंगीन चूड़ियाँ रोईं। . परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवा...
सुशांत जैसी शख्सियत का यूँ जाना अखरता है मानव जाति को
आलेख

सुशांत जैसी शख्सियत का यूँ जाना अखरता है मानव जाति को

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चिट्ठी ना कोई संदेश, इस दिल को लगा के ठेस कहाँ तुम चले गए....? हर दिल अजीज, उम्दा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत सर आज आप हमारे बीच नहीं हैं ख़बर सुनने के बाद ना जाने कितनी बार मेरी आँख नम हुई गला रुंध सा गया! मेरी मन: स्थिति कुछ भी लिखने की नही है लेकिन आपकी इस आत्महत्या ने मानव जाति के लिए जो सवाल छोड़ें हैं उसको लिखना भी जरूरी लग रहा है! एक पूरा जीवन जो इस धरा पर आने में सतरंगे सपनों से लेकर नौ माह का खूबसूरत समय लेता है, अचानक ऐसी कौन सी विवशता, लाचारी, दुख, दर्द इंसान को घेर लेता है कि जिंदगी जीने से ज्यादा मौत प्रिय लगने लगती है! हर कोई सवाली है इस वक्त कि आखिरकार ऐसी क्या पीड़ा ऐसी कौन सी मानसिक विचलन मन में रही होगी कि सुशांत सिंह राजपूत जैसी शख्सियत ने मौत को गले लगाया? क्यों अचानक अपनों को रोता विलखता छोड़ कर इंसान चल देत...
हुनर रखता हूँ
कविता

हुनर रखता हूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हंसते हंसाते गंभीर होने का हुनर रखता हूँ मसखरे से पलभर में कबीर होने का हुनर रखता हूँ! साधारण कपड़े,लंबी दाढ़ी,लंबी चोटी रखकर सभी को दंडवत होके नजीर होने का हुनर रखता हूँ! दुख दर्द समेटे श्रोता आते हैं सुनने सदा हमको सबको हंसाकर यार मैं फकीर होने का हुनर रखता हूँ! काम कुछ ऐसा करने की कोशिश करता हूँ मैं सभी लकीरों से बड़ी लकीर होने का हुनर रखता हूँ! माँ शारदा भवानी के आशीर्वाद से ही निर्मल मैं भी तो किसी की तकदीर होने का हुनर रखता हूँ! परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीय...
सर्वश्रेष्ठ रचनाकार हुए सम्मानित
साहित्यिक

सर्वश्रेष्ठ रचनाकार हुए सम्मानित

देहरादून : उत्तराखंड देवभूमि समाचार द्वारा आयोजित गद्य एवं पद्य लेखन प्रतियोगिता में सर्वोश्रेष्ठ रचनकारों को सम्मान मिला प्रतियोगिता का विषय "महामारी और जीवन" था जिसमें देश के सभी राज्यों से रचनाकारों ने स्वरचित रचना लेखन कार्य किया! कवयित्री मीना सामंत दिल्ली, कल्पना सिंह रीवा एवं कवि आशीष तिवारी निर्मल ने अत्यंत मार्मिक रचना दिए गए विषय में लिखकर यह सम्मान पत्र प्राप्त किया देवभूमि समाचार पत्र उत्तराखण्ड के संपादक राजशेखर भट्ट सहित सभी नौ निर्णायक कहानीकार ललित शौर्य, विजयानन्द विजय, सलीम रज़ा, कैलाश झा ‘किंकर’, डाॅ. कविता नन्दन, भुवन बिष्ट, निक्की शर्मा ‘रश्मि’, डाॅ. राजेश कुमार शर्मा ‘पुरोहित’ ने रचना का मूल्यांकन करते हुए कल्पना सिंह, मीना सामंत, आशीष तिवारी की काव्यात्मकता की प्रशंसा करते हुए ढेर सारी बधाई दी एवं उज्जवल भविष्य की कामना वहीं देश के सुप्रसिद्ध साहित्यिक जनों ने रचनाकार...
भगवान बचाए रखना
कविता

भगवान बचाए रखना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** भटक चुका है कितना बचपन, भगवान बचाए रखना, हाथों में है मोबाइल, सिगरेट, गन भगवान बचाए। रोती हैं बेबस कितनी सीते और द्रोपती अब भी, घूम रहे दुर्योधन रावण, दु:शासन, भगवान बचाए रखना। गलियों में निर्वस्त्र घुमाया इक अबला को मिलकर सबने , घोषित कर के उसको डायन, भगवान बचाए रखना। सड़कों से संसद तक जा पहुंचे जेबकतरे जितने थे, जेलों से भी जीत रहे हैं इलेक्शन, भगवान बचाए रखना। तबाही के मुहाने पर है खड़ी युवा पीढ़ी अब तो निर्मल, ले रहे दवाई देख-देख विज्ञापन, भगवान बचाए रखना।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-प...
तुझसे बेहतर पाया
कविता

तुझसे बेहतर पाया

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** अब है तुझसे कोई आस नही तेरे खातिर व्रत-उपवास नही! कड़वाहट भर दी तूने रिश्ते में पहले जैसी रही मिठास नही! स्वयं से ज्यादा तुझको चाहा, था तुझसा कोई भी खास नही! सच कहता था सच कहता हूँ, मैं करता कभी बकवास नही! कब क्यूँ किसको खोया है तुमने, शायद तुझे अभी आभास नहीं! मिला सबक तुझसे, मुझे अच्छा, धोखा गैर ही देते हैं खास नही! खोके तुझे तुझसे बेहतर पाया हूँ, है तुझको शायद एहसास नही!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी...
वृद्धाश्रम नही होता
कविता

वृद्धाश्रम नही होता

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सबसे पहले माँ के श्री चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ, उसके ही आशीषों से मैं थोड़ा बहुत जो लिख पाता हूँ। मेरे खातिर प्रथम देव है माँ मेरी, प्रथम गुरु है माँ मेरी नौ माह कोख में रख, मुझे दुनिया में ले आई है माँ मेरी। धर्म ग्रंथ और वेद पुराणों ने भी माँ की महिमा गाई है, माँ की ममता अनमोल धरोहर, माँ बच्चों की परछाई है। माँ पर कितना लिख पाऊँ मैं माँ ने मुझे आकार दिया है दुनिया में लेकर आई माँ सपनों से सुंदर संसार दिया है। तपिश में याद आती माँ के आंचल के शीतल छाया की, माँ मानवती है, माँ अरुणा है, माँ शिल्पी है इस काया की। खुद की भी परवाह नहीं, बच्चों के लिए समर्पित होती है ईश्वर ने भी है माना, माँ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृति होती है। दुख सभी सहकर माँ बच्चों का जीवन सुखद बनाती है सिलबट्टे में पिस-पिस कर मानो हिना रंग दे जाती है। ...
क़ुर्बान रहा आया
कविता

क़ुर्बान रहा आया

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दोस्त ही दुश्मन निकला, मैं अंजान रहा आया वो फरेबी खुदा हो गया, मैं इंसान रहा आया! कलयुगी तहजीबी बयारों से होकर बेपरवा मैं तो केवल मिशाल-ए-ईमान रहा आया! शिकायत उसकी करता भी तो क्या करता वह तो अपनेपन से भी बेजान रहा आया! निभा ना सको रफ़ाक़त तो दिखावा कैसा मेरे दिल में सवाल ये बड़ा नादान रहा आया! हर घड़ी करता ही रहा जो सबसे मेरी बुराई, पत्थर दिल के लिए निर्मल क़ुर्बान रहा आया!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष त...
हम दोनों के बारे में
कविता

हम दोनों के बारे में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** स्याह रात में तू रोती है, मैं रोता हूँ दिन के उजियारे में, ये दुनिया वाले क्या जानें? यार हम दोनों के बारे में! एक तेरी ही यादों में, मैं तो अक्सर ही खोया रहता हूँ, खुश हो जाता है दिल जब तू दिखती है गलियारे में! नींद हो चुकी है गायब अब तो, रात-रात भर आखों से कर रहा चांद में दीदार तेरा, तू देख रही मुझे तारे में! दिल से दिल के रिश्ते जुड़ जाते हैं बड़ी आसानी से, एक दूजे को ही सोचते रहते खड़े-खड़े अंगनारे में! दोनों को ही जुदा कर सके वो हिम्मत नहीं जमाने में, चाहे लाख जुर्म कर लें सब, मुझमें और तुम्हारे में!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपक...
सम्हल जाइये
कविता

सम्हल जाइये

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** वक्त बड़ा नाजुक है यार, सम्हल जाइये, बेदाग दामन को बचाके, निकल जाइये! कदम-कदम पर ठगी मिलेंगे दुनिया में उनकी मोहक अदा पे ना फिसल जाइये! जो खेला करते हैं किसी के जज्बातों से उनके लिए यूँ मोम सा ना, पिघल जाइये! ना जाने किस घड़ी बुझे जीवन का दीप छोटी-छोटी बातों पर ही ना उबल जाइये! सच्चाई का वजूद मिटता नही मिटाने से इसलिए झूठ के प्यालो में ना ढल जाइये दम घुटने लगा है गीत, ग़ज़लों का दोस्तों यूँ चुटकुले सुन-सुनाकर ना बहल जाइये!!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीय...
जुदा कौन करेगा
कविता

जुदा कौन करेगा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** हकदार बहुत हैं तेरे पर सच्चा हक अदा कौन करेगा महफ़िलो में खोए होंगे सब, तब याद सदा कौन करेगा! जान-जान कहने वाले, बेजान मिलेंगे आशिक बहुतेरे, जरूरत पड़ने पर सोचो, तुमपे जान फिदा कौन करेगा! साथ तुम्हारे गुजर रहे जो वो पल अनमोल ख़ज़ाने मेरे हम दोनों एक बनेंगे तब फिर बोलो जुदा कौन करेगा! जो भी हों मसले बड़े सब बेहिचक कहा करो मुझसे, यदि तुम ही खामोश रही तब सोचो निदा कौन करेगा! तेरे हुस्न की हरारत से ही, मेरी धड़कनें हरकत में हैं, इतने प्यारे महबूब को बताओ, अलबिदा कौन करेगा!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आक...
द्रोपदी की लाज
कविता

द्रोपदी की लाज

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** काश ! इंसान-इंसान की तरह जी सकता फटी वेदना की चादर को दर्जी सी सकता !! ना लुटती कहीं भी किसी द्रोपदी की लाज सुन सकते दीन, हीन, दुखियों की आवाज !! थम जाये रहजनी, डकैती, हत्याओं का दौर कोई निर्बल ना बने किसी सबल का कौर !! गरीबी, भुखमरी, ना रहे कुपोषण का साया लोकतंत्र को लूट सके ना कुबेर की माया !! लौट सकें फिर सुकून के दिन जो बीत गये हैं फिर बरसें वो बादल जो बरस के रीत गये हैं !!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आश...
धोखा खाये बैठा हूँ
कविता

धोखा खाये बैठा हूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** खुद के किरदार को आईना बनाये बैठा हूँ, मैं तेरा हर जुर्म जमाने से छिपाये बैठा हूँ!! तेरे जैसे अपने, ना मिलें दुश्मन को भी, कि मैं तेरा अपनापन, आजमाये बैठा हूँ!! कद्र नही की तूने कभी मेरे जज़्बातों की मैं तो तेरे दुख, दर्द में आसूं बहाये बैठा हूँ!! जब रहे जीवन में तेरे अंधेरों के घनेरे साये, चिरागों के मानिंद खुद को जलाये बैठा हूँ!! भूले भटकों को सही राह दिखाये बैठा हूँ पर ये सच है, मैं तुझसे धोखा खाये बैठा हूँ!!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यि...
तू मेरी मैं तेरा रहूँ
कविता

तू मेरी मैं तेरा रहूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ख्यालों में पल - पल तुझे सोचता हूँ मैं ख्वाबों में भी अब तुझे ही देखता हूँ मैं। सुकूँ मिलता है अब तुझे महसूस करके इस दिलो जां में समेटे तुझे घूमता हूँ मैं। बस यही आरजू है तू मेरी मैं तेरा ही रहूँ तेरे दिल की हर धड़कन में गूंजता हूँ मैं। लोग कहते हैं मुझको हूँ भुलक्कड़ बड़ा सब भूलकर भी एक तुझे ना भूलता हूँ मैं। पाकर तुझे जन्मों की तलाश हुई पूरी मेरी और पाने की तलाश में नहीं दौड़ता हूँ मैं। ये हाथ जब उठते हैं दुआओं के लिए मेरे तू मेरी हो हर जन्म, खुदा से मांगता हूँ मैं।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आक...
होली आई
कविता

होली आई

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** गीत खुशी के गाओ की होली आई हंसो और हंसाओ की होली आई! मौज मस्तियों का आलम है ऋतुओं, गम सभी भुलाओ की होली आई। बुरा ना मानो रंगों के इस त्योहार में रुठे हुये को मनाओ की होली आई! मिटाकर बीज नफरत बैर द्वेष के सब खुशी के दीप जलाओ की होली आई! भाईचारा अपनापन कायम रहे दिल दिल से दिलमिलाओ की होली आई! भुलाकर गिले शिकवे पुराने से पुराने जी भर के मुस्कुराओ की होली आई!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तम...
एक शाम शहीदों के नाम काव्यांजलि का गरिमामय आयोजन
साहित्यिक

एक शाम शहीदों के नाम काव्यांजलि का गरिमामय आयोजन

रीवा। मऊगंज विधानसभा के पहाड़ी कस्बे में पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों की वर्षी पर एक शाम शहीदों के नाम काव्यांजलि कवि सम्मेलन का गरिमामय आयोजन किया गया। जिसमें भारी संख्या में ग्रामवासी उपस्थित होकर शहीदों की शहादत को सलाम किया। काव्यांजलि कार्यक्रम का आगाज अमर शहीदों एवं माँ भारती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलन एवं माल्यार्पण के साथ हुआ काव्यांजलि कार्यक्रम में उपस्थित कवयित्री कुंदन पांडे ने कवि सम्मेलन का आगाज माँ वाणी की वंदना से की। तत्पश्चात युवा ओजकवि कामता माखन ने शहीदों के सम्मान में रचना पढ़ी एवं सवाल खड़ा किया कि शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले कहने वाले नेता शहीदों के परिवार की सुध लेने तक क्यों नहीं जाते। कवयित्री क्रांति पांडे ने एक से बढ़कर एक मुक्तक पढ़े - ना गीता मानती हूँ ना कुरान मानती हूँ। माता-पिता को ही भगवान मानती हूँ। लालगांव से पहुंचे कवि आशीष तिवा...
किस पर गर्व करूँ
कविता

किस पर गर्व करूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** घर का चिराग जब घर को जलाये क्या उस पर गर्व करूँ घर का भेदी ही जब लंका ढ़हाए क्या उस पर गर्व करूँ। देश बांटने वाले को अपना बताये क्या उस पर गर्व करूँ जो कौमी एकता का नारा न लगाए क्या उस पर गर्व करूँ। जो पड़ोसी दंगा, झड़प पर तमाशा देखे उस पर गर्व करूँ जो सियासती कुर्सी की रोटी सेंके क्या उस पर गर्व करूँ। छोड़ अमन की बातें, आग लगाए क्या उस पर गर्व करूँ जो नफरत से ही बाज ना आए क्या उस पर गर्व करूँ। शेर बिठाकर सत्ता में हम इतराए क्या उस पर गर्व करूँ। जलता देश देख भी चुप रह जाए क्या उस पर गर्व करूँ।।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय ...
अब जाने दो मुझको
कविता

अब जाने दो मुझको

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम पर जो शेष है वही उधार हो गया हूँ मैं चुकाकर तेरा मोल कर्जदार हो गया हूँ मैं। नही समझी तू मुझे किसी लायक भले ही एक तेरा ही तो दारोमदार हो गया हूँ मैं। मर चुके हैं दिल में पनपे सारे ही जज्बात ना तो गुल और ना ही खार हो गया हूँ मैं। आता नही था मुझे कभी यूँ शायरी का फ़न तू देख बड़े शायरों में शुमार हो गया हूँ मैं। केवल सच के बुनियाद पर टिका हुआ हूँ मैं तू मानती है झूठ का करोबार हो गया हूँ मैं। जाने दे मुझे,तू अब खुद से दूर रोकना मत किसी का सच्चा वाला प्यार हो गया हूँ मैं।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प सम...
विरह कुंड में हुए हवन
कविता

विरह कुंड में हुए हवन

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सब कुछ तुमको सौंप दिया मिला ना तुम से अपनापन। नेह का नीड़ उड़ा ले गयी स्वारथ की जो बही पवन। पागल करके हमको कहती इस पागल का करो जतन। खुश हैं हम ओस की बूंदों में सागर संग तुम, रहो मगन। प्रेम भाव जो उठे थे मन में अब विरह कुंड में हुए हवन। सब कुछ तुमको सौंप दिया मिला ना तुम से अपनापन। फिर से तुम्हारी ही यादों का जो बादल घिर-घिर आया है। मैं सोचा इस पल को जी लूं कितनों ने पत्थर लहराया है।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कव...
जमाना जालिम है
कविता

जमाना जालिम है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बचकर रहना यार, जमाना जालिम है हो जाओ होशियार, जमाना जालिम है। अपनापन, भाईचारा खत्म हो चुका है है रिश्तों में व्यापार, जमाना जालिम है। दिन प्रति दिन देखो क्या खूब बढ़े हैं लुच्चे, टुच्चे, झपटमार, जमाना जालिम है। नारी सुरक्षा के दावे भी खोखले साबित होती तेजाबी बौछार, जमाना जालिम है। रपट लिखाने कभी जो जाओ थाने रिश्वत मांगे थानेदार, जमाना जालिम है। न्याय, सत्य, निष्ठा, ईमान हुआ है बौना भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार, जमाना जालिम है। हो जरूरत यदि कभी धर्म रक्षा के लिए लो हाथ में तलवार, जमाना जालिम है।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में...
टैलेंट चाहिए
ग़ज़ल

टैलेंट चाहिए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चेहरे के हाव भाव, इनोसेंट चाहिए ब्वायफ्रेंड उनको डिफरेंट चाहिए। हसरतें भी यूँ शेष ना रहें कोई भी होनी डिमाण्ड पूरी, अर्जेंट चाहिए। हो रिच पर्सन ही ब्वॉयफ्रेंड उनका घूमने हेतु इनोवा-परमानेंट चाहिए। दारु संग सिगरेट भी पीती हैं मैडम दुर्गंध ना आए इसलिए, सेंट चाहिए। रोज तोड़ कर जोड़ रही हैं दिल को ऐसी नीचता के लिए, टैलेंट चाहिए। गर्लफ्रेंड रखना है सस्ता काम नहीं क्रेडिट कार्ड, कैश में पेमेंट चाहिए। फेसबुक पर फालोवर्स भी लाखों में हर पिक में लाईक्स, कमेंट चाहिए।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका...
नादान बहुत था
कविता

नादान बहुत था

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जिससे मिलने के लिए मैं परेशान बहुत था, उसके मिलने का ढंग देख मैं हैरान बहुत था। चाहतों के भंवर में फंस के डूब ही जाता मैं, मुझे डुबाने हेतु उसके पास सामान बहुत था। वो जब-जब मिला मतलब से ही मिला मुझसे, समझ ना पाया ये मेरा दिल नादान बहुत था। दिल से आखिर वो शख्स गरीब ही निकला, सोने, चांदी, रुपयों से भले ही धनवान बहुत था। अपना समझकर गया था उसको गले लगाने, पर उसके अंतस में कांटों का मैदान बहुत था। अच्छा ये हुआ कि बात दिल की मैं कहा ही नहीं कि फासला भी हम दोनों के दरमियान बहुत था।   लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मे...