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Tag: आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह ‘भ्रमर’

शोर विभोर करे अँगना
गीत

शोर विभोर करे अँगना

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ********************  "छंद परिचय" छंद का नाम-  शैल सुता वर्णिक छंद वर्णवृत-  नगण, जगण, जगण, जगण, जगण, जगण, जगण, लघु गुरु। अंकावलि -  १११, १२१, १२१, १२१, १२१, १२१, १२१, १२। शिल्प-  प्रति चरण २३ वर्ण, दो-दो चरण समतुकांत। नायिका की स्वप्निल कल्पनाओं का चित्रण पुहुप पलाश निकुंज निमीलित नैनन ओझल सांझ ढले। प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।। मधुमय गंधिल याद पुरातन अक्षर-अक्षर प्रीति पढ़ें। प्रियतम प्यार पगी गलियाँ पथ आज निशीथ दुलार गढ़ें।। तन मन की अभिलाषित आकृति आतुरता सँग साथ चले। प्रिय पुलकावलि निर्भय निश्छल निर्मल भाव उजास मले।। अधर धरे अधरोष्ठ परागित स्वप्निल भव्य वितान बने। थर-थर काँप रहे अधराधर भावुकता पुरुषार्थ जने।। मधुरिम मादकता ऋतु कीअति भीतर बाहर नित्य ...
नैन बिंबित हैं
गीत, छंद

नैन बिंबित हैं

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद : मधुरागिनी छंद (वर्णिक) गीत विधान : वर्णवृत :- तगण, भगण, रगण, तगण, भगण, गा। शिल्प : १६ वर्ण, १०/६ वर्ण पर यति, समपाद वर्णिक छंद, दो-दो चरण समतुकांत। संकल्प से मन की मयूरी, नाचती वन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। आराधिके बन दामिनी की, नृत्य है करती। निर्विघ्न चंचल चंचला-सी, चूमती धरती।। आकाश से चुनती अपेक्षा, साधना घन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।‌। अम्भोज-सा बिखरा पड़ा है, दिव्यता छहरे। दे ताल अंबर को पुकारे, धारणा लहरे।। झूमें लता तरु पुष्प डाली, प्रेम अर्चन में। सामर्थ्य से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। प्रत्यूष की अभिलाष में द्वै, नैन बिंबित हैं। कौमार्य की वन वीथिका में, बिंब चिह्नित हैं।। वातास गंधिल शोभती है, प्...