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Tag: अर्चना अनुपम

तुम से सपूत के होने से
कविता

तुम से सपूत के होने से

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - क्रांतिवीर श्री चंद्रशेखर आज़ाद जी के बलिदान दिवस पर विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली। रस - वीर, करुण, भाव - देश भक्ति इस माटी की खुशबु का दीवाना था एक शोला था। शत्रु भी था चकित, सिंह वो कर गर्जन जब बोला था ।। मैं पैदा आज़ाद हुआ आज़ाद धरा से जाऊंगा। तुझमें है ताकत जितनी कर ज़ुल्म मैं ना घबराउंगा।। हूँ स्वतंत्रा का राही इस वसुंधरा का लाल हूँ। तेरे जैसे निसाचारों का साक्षात् ही काल हूँ।। बांध कफ़न आया सर पर हूँ। मौत का डर तू ना दिखला।। है जननी अवनि मेरी यह। इसका आँचल जो कुचला।। इसकी ही रक्षा की ख़ातिर। शीश कटाने आया हूँ।। तुझको तेरे हर कर्मों का। दंड दिलाने आया हूँ।। शान से बोला जय भारत। यूँ फिरंगियों को डरा दिया। मिटा गया निज हिन्द पे यौवन । कर्ज धरा का अदा किया।। है अफ़सोस मुझे इतना। वो कैसा भाग्य का फेरा था? अल्फ्रेड पार्क में ...
तो सुख सदा समाय
छंद, दोहा

तो सुख सदा समाय

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** दर्शन- टूटते घर और जिम्मेदार बहु। जी खूब कही। माता पिता की नाज़ो पली आपके लिए बिल्कुल ना भली। सोचा है इसका कारण कभी? कारण क्या है अचानक उसके लक्ष्मी से दुर्गा बन जाने के? कली जो थी फूल की उसके अंगारे बन जाने के? आपका बुढ़ापा बिगड़ जाने से लेकर वृद्धाश्रम की दहलीज़ तक पहुंचा दिए जाने के। बेटी हमेशा सुकुमार, नादान, चंचल चित्त युक्त सुंदर शालीन युवती वाचाल, चपला है। बहु स्वर्ग से उतरी महान वुभूति सब उलूल-जुलूल सहने वाली अच्छी, सभ्य, संस्कारी घूँघट धारिणी, गुस्से वाला थप्पड़ खाकर भी शांत रस विचारिणी, एक निरीह अबला है। अजी ख़ूब सोची, हाड़ मांस की देह धारी दोनों बेटी-बहु में भेद कुछ ज़्यादा ही तगड़ा है। तो बस यही आपकी उल्टी गंगा वाली सोच आपको भुगतवाती है। स्त्री हो चली शिक्षित जान चुकी अपना स्तर आपको आप, ही की भाषा में, ब्याज सहित जब लौटती ह...
शिव स्तुति
छंद, दोहा

शिव स्तुति

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** संग गौरीश, गंग धर शीश। शिवा के रंग, पान कर भंग।। मनोहर रूप, अखिल के भूप। कंठ धर नाग, वरे वैराग।। काम के काल, वस्त्र सिंह खाल। गरल रस प्रीत, हरि के मीत।। भस्म श्रृंगार, क्रोध विकराल। चंद्रमा भाल, प्रभु महाकाल।। जयति अवनीश, राम के ईश। नमित दशशीश, एव सुरजीत।। नाश कर दंभ, नृत्य बहुरंग। मगन नित योग, भेष जिम जोग।। छंद- भव-स्वामी नमामि हे नाथ प्रभो। अविकार विकार सदा ही हरो।। जड़ बुद्धि जो बैरी रिपु सी लगे। निर्वाण मिले संताप मिटे ।। त्यज भूधर को हिय आन बसो। तुम कोटिक सूर प्रकाश प्रभो।। तम को जिम मन अज्ञान रुँधे। अलोक जिमि हिरदय मा शुभे।। बड़वार बतावत भूल भगत। अभिमान के दंश सराबर हो।। तब क्षीर से नीर को थोथा करे। तुम ऐंसे ही दिव्व मराल प्रभो।। . परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम जन्म - २१/१०/१९८७ मूल...
जैसे को तैसा धुनूँ
चौपाई, छंद, दोहा

जैसे को तैसा धुनूँ

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** रस - रौद्र, अलंकार - अतिशयोक्ति। भाव - आत्मकुंठोपजित भक्ति। छंद - दोहा, सोरठा एवं कुंडलियों के प्रयास। कारक - बचपन में अपने आस पास समृद्ध और सभ्य परिवार की उपाधि प्राप्त परिवारों में वधुयों की दहेज़ या अन्य पारिवारिक कारणों से हुई परिचिताओं की जीवित जलकर या अन्य हनित संसाधनों द्वारा हत्या एवम आत्महत्या से उत्पन्न भाव जो अधिकाधिक बारह या तेरह वर्ष की आयु के समय प्रभु से करबद्ध अनुरोध करते मेरे द्वारा ही वरदान स्वरूप चाहे गए थे। कुछ परिवार ने उनकी हत्या को भाग्य कुछ ने उनमें थोपी गई अतिवादी स्त्री सहनशीलता की कमी बताया मायके वालों ने कहा "बिटिया तो ना मिलेगी हमारी" अतः कोई केस नहीं लगाया। और मेरे हृदय में उस उम्र में दहेज़ के दानवों विरुद्ध, अवस्था; अतिशह क्रुद्ध क्रांति जनित यह भाव! 'यूँ ही' आया। कि..... दुष्टन से कंजर बनूँ, ज्ञानी से...
कहो वो कैसे भक्त हो?
कविता

कहो वो कैसे भक्त हो?

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - श्री रामकृष्ण परमहंस जी की निर्मल सरल आनंदित कर देने वाली प्रेमायुक्त भक्ति को.. जो वास्तविक प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है... भावनाओं के व्यापारियों को समझना होगा प्रेम कितना पावन है... जिसे औचित्यविहीन अंधी आधुनिकता ने कलिकाल के विकराल दलदल में सराबोर कर रखा है... प्रेम वही जिसमें ज्ञान अप्रासंगिक हो जावे फिर भक्ति इससे अछूती भला रहे तो कैसे? स्वलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत :- भाषा - तत्सम हिन्दी शब्द संयोजन रस - शांत, भाव-भक्ति, अलंकार - अनुप्रास, श्लेष. नाथ के विचार से अनाथ हो विरक्त हो; भावना विहीन जो, कहो वो कैसे भक्त हो? प्रेम बिंदु भाव का; आधार ही है अर्चना, प्रीत की विजय तभी; आराधना असक्त हो। भावना विहीन जो, कहो वो कैसे भक्त हो? ज्ञान के प्रसंग में; दंभमय कुसंग में, तो! मोक्ष ही विषक्त हो...
त्वदीयं नमः
छंद, दोहा

त्वदीयं नमः

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा अगम्य अगोचर विशेश्वर वराह वमन मत्स्य कश्यप रूप धरा चरण गंग साजे कंठम स्वरा.. हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा.. राम मनोहर परशु बुद्ध रूपम् सूर्यम् मयंक पावक प्रकाशम् दुःख पाप नाशी क्षीरं निवासी सदा भक्ति प्रीतम् प्रियम् अक्षरा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा वीरम च धीरम मिथक दोष घातम भवसिंधु तारम् वरण बृंदिका अधर देह सुन्दर भुजा चार धारम् कल्याणकारी असुर मर्दणा हृदय कुञ्ज स्वामी गौ पूजयामि त्वदीयं नमामि चरण वंदना प्रणमामि आदि अनादि सदा हे नाथ श्री वल्लभ वासुदेवा सवैया - हम तो हरि मूरख देख के मूरत रीझत गावत आन पड़े.. यह नेह भी देह भी केवल रेह सी श्री चरणों में आन धरे मुस्कान की तान के तीर किये गंभीर हिय जब आन धसे तुम एक हमें हर एक से प्यारे बोलो प्रमाणित कैसे करें यह नेह भी देह भी केवल रेह सी ...