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Tag: अमिता मराठे

ख़ामोश होती हरियाली
संस्मरण

ख़ामोश होती हरियाली

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बात कुछ पुरानी है, लेकिन आज जब "वटवृक्ष दे वरदान" अभियान में लोग जुड़कर वृक्ष का आभार मानकर "बरगद रोपेंगे" कहते संकल्प ले रहे हैं, तब मुझे याद आया। हमारा घर अच्छी पाॅश काॅलोनी में था। घर के पीछे बहुत सुंदर बगीचा था। उसके बीच होलकर राज घराने का सुन्दर बंगला था।वही राधा कृष्ण का मंदिर था। लोग उसे कृष्ण मंदिर कहते थे। इसलिए उस काॅलोनी का नाम भी कृष्ण नगर था। पूरा बगीचा पीपल, नीम, आम, निबू, बरगद, गुलमोहर, जैसे वृक्षों से सज्जित था। तुलसी के पौधे तो सारे बगीचे में लगे हुए थे। बादाम तथा चिकु के पेड़ तो हमारे घर की छत पर झांकते थे। "प्रकृति से सिर्फ मनुष्य को ही नहीं, बल्कि पृथ्वी के हर जीव को जीवन मिलता है।" यह बात इस स्थान को देखकर सिद्ध हो रहीं थीं, क्योंकि बग़ीचे में मोर, गाय, गौरैया, तोते आदि का निवास था। मौसम के अनुसार उद्यान खुबसू...
सफर
कविता

सफर

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जिन्दगी के सफर में, समानांतर चलते जाना, एक सुहावना अवसर है। जो संकटों से टकराते, जीवन यात्रा के, सुगन्धित पुष्प महकाते हैं। कैसी भी हवा हो, तेज आंधी-तूफान हो, अचल अडोल रहना है। गतिशीलता ही रफ्तार है, नये उत्साह से जुड़ना है। पुरूषार्थ भाव निर्मल हो, कुछ करने की दृढ़ता से, लक्ष्य तक पहुंचना है। प्रतियोगी देखकर, द्वेष, क्लेश में ना फंसना है। ये सफर है मौज में, सूरज चांद सा चमकना है। मुसीबतों का आना, तय है इस जीवन में, सामना किए बिना, मंजिल पा नहीं सकते। इस अविनाशी सफर में, डेरा कहीं भी डालें, अदृश्य शक्ति के बल पे, मार्ग प्रशस्त करना है। जिन्दगी के सफर में, समानांतर चलते जाना, एक सुहावना अवसर है। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्...
एक शब्द में
कविता

एक शब्द में

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां मां एक शब्द में, सम्पूर्ण सृष्टि समाई है। प्रकृति के रहस्यों में, स्थित प्रश्नों का उत्तर है मां! मातृत्व प्राप्त करते, देवत्व को प्राप्त करती है। सृजन की शक्ति में, ईश्वरीय देन होती है। मां! मां के अनेक रुपों में, ममता भरा ओज दमकता है। स्नेह के आंचल में, स्वाभिमान समाया है। संघर्ष को कठोर तप से, प्रदीप्त हो निवारण करती है। मां! मां कामिनी, प्रेयसी में, तो पत्नी, दुहिता, धारिणी हैं। प्रवृत्ति की रीढ़, खेतों में वीर, वीर प्रसूता भी मां हैं। संस्कृति की वाहक, परम्पराओं की संरक्षक 'मां' है। धन्य हो माँ ! जिससे मिला जीवन हमको। सार्थक कर दिखाना है। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है। वर्तमान में मूक ब...
मजदूर हूं मैं
कविता

मजदूर हूं मैं

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। मेहनत ही मेरी पूंजी है। धरती ही मेरी माँ है। उसकी गोद में खेलता हूं, प्यार से माटी सहलाता हूं, हीरे मोती उगाता हूं। मज़दूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। हाथों में गेती फावड़ा, दृढ़ता से कदम उठाता हूं। कड़ी धूप में भी शीतलता, महसूस कर चलता हूं। जब माटी में मिलता पसीना, नवीनता के दर्शन करता हूं। मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं मैं। ऊंची अट्टालिकायें यें, जन मन को दिलासा देती हैं। मैं सबका साथ निभाता हूं, बस व्यर्थ न जायें मेरा श्रमफल। दिन रात मेहनत करता हूं, परिवार की रोजी-रोटी पाता हूं। मजदूर हूं मैं, मजबूर नहीं हूं। विघ्नों के तूफान जब आते हैं, पहले श्रमिक ही भुगतता हैं। सहना तो है सह लेता हूं, जन की इच्छा पूर्ति करता हूं। खुशियां देना मेरा काम है, बदले में अल्पधन पा लेता हूं। संतुष्टता मेरा मूल गुण है, उसके ही बल ...
जिन्दगी का अर्थ समझे
आलेख

जिन्दगी का अर्थ समझे

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** सत्य है कि ईश्वर का दिया यह जीवन हर व्यक्ति के लिए किसी आशीर्वाद से कम नहीं। यह एक सुंदर उपहार है। इसे स्वीकार करते हुए बस अपने दम पर जिंदगी को सुकूनभरा बनाते जाएं यह प्रयास हमें ही करना होंगे। इसलिए हमेशा जिंदगी का धन्यवाद करें और उसने जो दिया है उसी में प्रसन्न रहना ही उचित होगा। जीवन अविरल और अविनाशी यात्रा हैं। सृष्टि चक्र के साथ मानव प्राणी भी अपने कर्मों मुताबिक पार्ट करने हेतु साकार शरीर धारण करता है।यह गतिशील चक्र ठीक पांच हजार वर्षों का है। जिसमें मनुष्य प्राणी सिर्फ ८४ जन्म कम या पूरे लेता है। अतः मनुष्य का हर जन्म महत्वपूर्ण हैं। जन्म मृत्यु का चक्र जो समझ लेता है वह अपने भविष्य को सार्थक बनाने में जुट जाता है। ८४ लाख योनी का कोई हिसाब नहीं होता है।यह जीवन रहस्य जो समझे वह प्रति सेकंड का सदुपयोग करता है। वह ईश्वर के प्रति हर जन्म...
तेजू की धुन
लघुकथा

तेजू की धुन

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** लंबे इंतजार के बाद वातावरण बदलने लगा था। महामारी और लाॅकडाउन से लोगों को निजात मिलने लगी थी। रामबाबू भी अपने रूकें कामों को पूरा करने में जुट गये थे। स्कूल के पट खुलने लगे थे। सबके कारोबार गति पकड़ ही रही थी, तो कोरोना की दूसरी लहर बेभान हो उछाले मारने लगी। तेजू अपनी झोपड़ी के बाहर टूटी सी खटिया पर बैठे कभी मुस्कुराता तो कभी गंभीर चेहरा बनाये टेढ़े बांके हाथ किये कुछ बड़बड़ाता था।आते जाते लोग कहते विक्षिप्त है। बच्चे उसकी पीठ पर मारते तो कोई खाने की चीज उसके सामने डाल देते थे। उसे महामारी से कोई सरोकार नहीं था, लेकिन चौकस रहता था। लोगों की भेंट की चीजें लेते समय कहता 'जागते रहो, अरे! पगले भला हो कहते हैं। राम बाबू हमेशा उसे टोकते किन्तु तेजू ने अपनी चाल नहीं बदली। राम बाबू की समाज सेवा में तेजू और उसकी माँ को प्राथमिकता थी। उन्हें तेजू से प्...
नीना
लघुकथा

नीना

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन रात बढ़ते संक्रमण पर काबू पाते और मरीजों की सेवा करते डाॅक्टर नीना निढाल हो टेबल पर गर्दन रखते ही नींद के साथ अतीत के आगोश में चली गई थी। अरे! सुन, बेटीके लिए इतना अच्छा घर मिला है। देर सबेर नीना के हाथ पीले करने ही है। लेकिन पता नहीं उसके दिमाग में कोई कालेज का लड़का छाया हुआ है। जाति भी कुछ अलग है। साफ मना करती है शादी के लिए। देख शिबू नीना की सहेली कह रही थी। लड़के ने अपने परिवार की पसंद की लड़की से शादी भी कर ली है।एक साल होने आया है। फिर भी तेरी बिटिया मानती नहीं। प्रेम में पूरी दिवानी हो गई है। ध्यान रखना शिबू प्यार से समझाना नहीं तो उल्टा गलत काम कर लेगी तो समाज में नाक कट जायेगी। माँ आप इतनी चिन्ता मत करो। मुझे समाज की चिंता नहीं बेटी के भविष्य की चिंता है। पढ़ी लिखी जवान लड़की उसे बहुत सारे बड़े काम करने हैं यह कौन समझाए। मां आज...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** प्रकृति हमें शिक्षा देती, मार्ग हमारे प्रशस्त करती। नदी कहती बहते चलो, मधुर निनाद करते चलो। स्व शक्ति का लाभ ले लो, जीवन की सफ़लता पाओ। विश्व शांति का गीत गाओ, अशांति को दूर भगाओ। प्रकृति हमें शिक्षा देती पर्वत कहते,चोटी देखो, मेरे जैसी ऊंचाई पाओ। दृढ़ता के गुण अपना लो, विश्व का नव निर्माण करो। नवीनता का आश्रय ले लो, श्रेष्ठकर्म से सफल हो जाओ। उड़ती कला में उड़ते चलो। प्रकृति हमें शिक्षा देती। पेड़ कहते,फलते रहो, नम्र चित्त सरल बनो। शीतल छाया दान करो, जग में पुण्य यूं कमाओ, पीढ़ियां याद करती चले। अभिमानी कभी न बनो, क्रोध अंहकार छोड़ दो। सब होंगे काम तमाम, पूर्णता को पा जाओगे। प्रकृति हमें शिक्षा देती। सूर्य चांद कहते चमको, नभ को देदीप्यमान करो, घोर रात्रि का ज्ञान दे दो। सोझरे में खड़े हो जाओ। कर्म करते कर्मयोगी बनो, ऊंच पद को प्राप्त...
संदेश
कविता

संदेश

अमिता मराठे इंदौर (म.प्र.) ******************** दिन के चमकते प्रकाश में स्वच्छ नील हँसता नभ गंगा पर छाई रवि किरणे अविरल बहता यह जल तटो से सटी बंधी ये नावो से देख आर -पार दृश्य मनोरम स्फटिक सा गंगा जल में चपल पवन होता स्पन्दित हिलोरे लेता शान्त ह्रदय में तन मन से हो अल्हादित विहंगो की जल क्रीडा में जानव्ही रूप मस्त मनोरम प्रकृति के सुन्दर नीड में मानस होता व्यथा मुक्त उर को स्नेहासिक्त करते जीवन नैय्या करते सुगम इस धूप छाँव की छटा में कलरव करते पक्षी अनेक प्राणीमात्र को अंक में समाये गंगा देती अनुपम संदेश   परिचय :- ८ अगस्त १९४७ को जन्मी इंदौर निवासी श्रीमती अमिता अनिल मराठे को लिखने का शौक है आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। नई दिशा एवं जीवन मूल्यो के प्रेरक प्रसंग नाम से आपकी दो किताबे भी प्रकाशित हुई है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिं...