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Tag: अनूप कुमार श्रीवास्तव “सहर”

जियो जिंदगी
ग़ज़ल

जियो जिंदगी

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** जियो जिंदगी जीत दुनिया को लो, बात ख़ुदा की चलें बंदगी जीत लो। इतनी तन्हाई यहां है किसके लिए, बंद पलकों में मंजर सभी खींच लो। फूल उसका बदन तीखें जैसें नयन अंजुरी अंजुरी सी उतरी मेरे सपन। एलौरा की दिवारों में अब उकेरो उसे, मन अंजता में उसको बसालों जरा। बंद पलकों में मंजर सभी खींच लो, जैसे चन्दन से जग सारा यें सींच लों। यतन के जतन भी बहुत खूब किए गुनगुनानें की खातिर कोई गीत लों। बांसुरी राधा बजाएं कहीं श्याम की पीर भुलाने की खातिर यहीं प्रीत लों। परिचय :- अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
कहां चल दिए
कविता

कहां चल दिए

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** अभी घर में रह लेनें की हिदायत है, कहां जाएंगे वो अभी जो रास्तें में है। किसी तरह से न सोनें देंगी, आज की यें तस्वीर भी कहीं । गुजार सका ना कुनबा मजूर का एक रात शहर के किसी कोनें में। दावे बड़े दिल के सब धरें रह ग‌एं जो दिल्ली बनातें कहां चल दिएं। है जेब खाली खाली है पेट खाली, ये ठहरा हुआ वक्त कितना मवाली। प्यास कैसी कैसी प्रार्थनाएं भी कैसी चलें संग परिवार, सड़क है बिछौनें। गुजार सका ना कुनबा मजूर का एक रात शहर के किसी कोनें में। परिचय :- अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
आपके श्रृंगार को
ग़ज़ल

आपके श्रृंगार को

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** रूप का जादू होतुम जादुई मिज़ाज है कितनें दर्पन तरसतें आपके श्रृंगार को। गीत इतनें वावलें नमन के लिए किस विरही वेदना के उपहार को। मूक हो जाता मौसम यूं कैसीं छटा इंद्र धनुषीं परिकल्पना मनुहार को। एक तुम अनभिज्ञ सीं अंजान सीं एक ये विवशता मन में उदगार को। देर तक नींदे लुटाई दोनों ने दोनों तरफ बाद में इलज़ाम आया तन्हा दीवार को। उस दिन भी सहमें बादल थें नयन में अश्रु पूरित क्षण मिलें थें पुरस्कार को। मूक हो जाता मौसम यूं कैसीं छटा इंद्र धनुषीं परिकल्पना मनुहार को। एक तुम अनभिज्ञ सीं अंजान सीं एक ये विवशता मन में उदगार को। देर तक नींदे लुटाई दोनों ने दोनों तरफ बाद में इलज़ाम आया तन्हा दीवार को। उस दिन भी सहमें बादल थें नयन में अश्रु पूरित क्षण मिलें थें पुरस्कार को। इश्क़ किस तरंह से सर चढ़ता है सौंप दी आशिकी जैसें...
मेरी उसकी बातें
ग़ज़ल

मेरी उसकी बातें

अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" इंदौर मध्य प्रदेश ******************** मेरी उसकी बातें होती, कमरे में वीरानी हैं । चौखट से लौटा के आएं, शहर के सब पहचानें चेहरे। अंजाना अब खुद में हूं, आइने की निगरानी हैं। बिखरीं बिखरीं कविताएं, ग़ज़लें, नज्में सब भींगी भींगी, आंखों से अब बह निकलेंगे, किस बरसात का पानी हैं। स्याह दीवारों के साये में, तुम आये भी मुस्कायें भी। जहां छनकती हो पायल, दिल रोयें तो बेईमानी हैं। ख़त उसने लिखें कितनी दफें, कितनें तह तह करके फेकें। इक लफ्ज ने जादू कर डाला, इतनी राम कहानी हैं। परिचय :- अनूप कुमार श्रीवास्तव "सहर" निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...