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Tag: अख्तर अली शाह “अनन्त”

सुख दुख है जीवन में दोनों
गीत

सुख दुख है जीवन में दोनों

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कभी सुरों की सरिता बहती, कभी जिंदगी कांव-कांव है। सुख दुख है जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। कभी अंधेरे कभी उजाले, से होकर जाना पड़ता है। जीवन का रथ उबड़खाबड़, रास्तों से आगे बढ़ता है।। कोई फूल बिछाए पथ में, कोई कांटे बिछा रहा है। कोई टांग खींचता नीचे, कोई ऊपर उठा रहा है।। कभी मखमली गद्दो पर है, कभी धूल में सना पांव है। सुख दुख हैं जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। कभी कहीं है सर्दी गर्मी, जीवन नित्य बदलने वाला। कभी श्वेत वर्णी जीवननभ, कभी हुआ है देखो काला।। कभी-करी उत्तीर्ण परीक्षा, कभी फेलका मजा चखाहै। हानिलाभ से ऊपर उठकर, जिसने जीवन यहां रखा है।। उत्तम वही तो मनआँगन है, नहीं रहे जिसमें तनाव है। सुखदुख है जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। आशा और निराशा के जो, दो पैरों पर नाच नचाए। कठपुतली ये बना, जिंदगी, कभी...
दुख देते हैं जानबूझ कर
गीत

दुख देते हैं जानबूझ कर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दुख देते हैं जानबूझ कर, दुखियारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। देश जूझता आज तुम्हारा, मजधारों में पल पल। बढ़ते हैं विपरीत दिशा में, छलिया करते हैं छल।। बेच रहे हैं धनवानो को, निर्धन के हक सारे। श्रमजीवी मजबूर हो गए, फिरते मारे मारे।। गिरवी रखनेको आतुर घर, दीवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। व्यक्ति पूजा करने वाले, देशभक्त कहलाते। देशभक्त बेबस लगते हैं, देश निकाला पाते।। रहे प्रिय जो भारतमां को, अपमानित होते हैं। मनकी कहने किससे जाएं, मन ही मन रोते हैं।। करते तेज अहिंसावादी तलवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। सत्य अहिंसा सत्याग्रह के, अब लाले पड़ते हैं। देशद्रोहियों के सीनों पर, हम मेडल जड़ते हैं।। देश उसी का माना जाता, जिसने अपना माना। नाम भले कुछ धर्म भले कुछ, ज...
चाहे जैसी यार देख लो
गीत

चाहे जैसी यार देख लो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चाहे जैसी यार देख लो , नई पुरानी कलम मिलेगी। जूते सीती रेदासी या, चंवर ढुलाती कलम मिलेगी।। पेबंदों से इज्जत ढकती, ममतामयी लिए दो आंखें। बच्चों के भूखे पेटों में, लुकमें देती कलम मिलेगी।। सीमाओं की रखवाली में, रत कलमो के साथसाथ ही। कभी प्यारमें कभी भक्तिमें, डूब दीवानी कलम मिलेगी।। कामुकताके कीचड़ में गुम, किए हुए श्रंगार कीमती। कोठों की गौरव गाथाएं, तुमको गाती कलम मिलेगी।। जूते सजते शोकेसों में, ये दस्तूरे दुनिया है अब। फुटपाथों पर राह देखती, मेडल वाली कलम मिलेगी।। कुछ आवाज बनी जनताकी, झोपड़ियों से बाहर आकर। कुछ बंगलोंमें मक्खन खाती, नौकरशाही कलम मिलेगी।। कागज पर चलने वाली तो, "अनंत" बिखरी देखोगे तुम। मगर दिलों पर चलने वाली, कम ही दानी कलम मिलेगी।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई ...
अपनी भाषा हिंदुस्तानी
कविता

अपनी भाषा हिंदुस्तानी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सत्य अहिंसा न्याय दया की, रही सदा जो पटरानी। दुनिया में आला सबसे, हिंदी भाषा हिंदुस्तानी।। नस नस में है खून हिंद का, हिंदुस्तानी ऑन रहे। पले हिंद की भूमि में हम, हिंदी ही अभिमान रहे।। संस्कृति भाषा भूषा क, नहीं जहां सम्मान रहे। मानवता को दफनाने का, ही सचमुच सामान रहे।। है संकल्प यही हिंदी हित, देंगे हम हर कुर्बानी। दुनिया में आला सबसे , हिंदी भाषा हिंदुस्तानी।। अरबों की भाषा अरबी, यूनानकी जब यूनानी है। नेपाली नेपाल में है, जापानकी जब जापानी है।। जर्मनी रही है जर्मन की, इग्लैंड की इंग्लिशरानी है। क्योंकर भूल जाएंगे अपनी, भाषा जो सम्मानी है।। भाषा हिंदी भाल की बिंदी, नहीं करेंगे नादानी। दुनिया में आला सबसे, हिंदी भाषा हिंदुस्तानी।। तिब्बती भाषा है तिब्बत की, बर्मी बर्मा की सबजाने। पुर्तगाली है पुर्तगाल की, क्या इससे हैं अनजाने।। र...
आशिक तू हमें
कविता

आशिक तू हमें

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** आशिक तू हमें, दिलको कू-ए-यार बना दे। या रब तू अपने, इश्क का बीमार बना दे।। ये सिर तेरे आगे ही झुके मालिके जहां। तेरे ही आगे हाथ उठे मालिके जहां।। दिल तेरी हम्दे पाक पढ़े मालिके जहां। पग राहे हक में ही ये बढ़े मालिक जहां।। यूँ हक की सल्तनत का पैरोकार बना दे। या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।। इंसाफ पर चलने की हमें राह बता दे। मिलने की तमन्नाओं को तू अपना पतादे।। तेरे हैं इस जहान को मौला तू जता दे। खाते में फरिश्तों से कह के नाम खता दे।। नबीयों का रसूलों का वफादार बना दे। या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।। माले हराम पेट में जाने नहीं पाए। छल दिल में कभी पैर जमाने नहीं पाए।। नफरत जेहन में भूल के आने नहीं आने नहीं पाए। गुस्सा कभी भी सिर को उठाने नहीं पाए।। यूँ जिंदगी में सब्र को साकार बना दे। या रब तू अपने इश्क का बीमार बना दे।। जो क...
लोक अदालत और गांधी दर्शन
कविता

लोक अदालत और गांधी दर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सभी सुखी खुशहाल रहे सब, गांधी जी का ये सपना था। भले कोई कितना दुश्मन हो, वो भी तो उनका अपना था गांधी के सपनों का भारत, ये था इसको याद रखें हम। उनके पदचिह्नों पर चलकर, भारत को आबाद रखे हम।। सत्य अहिंसा की ताकत से, कबतक कतराएगी दुनिया। है विश्वास यकीनन एकदिन, इस पथ पर आएगी दुनिया।। जिसकी लाठी भैंस उसी की, क्या ये सोच बनी फलदाई। झगड़े से झगड़ा बढ़ता है, क्या दिल से आवाज न आई।। सदा युद्ध के परिणामों में, जीता एक, एक हारा है। पर क्या हार जीत ने कोई, समाधान को स्वीकारा है।। समाधान की दिशा अहिंसा, इसमें कोई हार नहीं है। जश्न जीत का दोनों ही मिल, मना सकें त्यौहार यही है।। नही फैसले, समाधान की, ओर बढ़ें तो सुख पाएंगे। लोक अदालत गांधी दर्शन, है ये सब को समझाएंगे।। जड़से अगर समस्या कोई, खत्म हमे करना है लोगों। "अनन्त" गांधी दर्शन को ही, आज ...
सख्त पत्थर
कविता

सख्त पत्थर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सख्त पत्थर को गला पानी बनाकर दम लिया। जब हठीले बनगए महफिल सजाकर दम लिया।। हारते कैसे बताओ जंग नाहक से ठनी। जान दे दी हमने अपनी सिर कटाकर दम लिया।। जिद यही थी के सरापा तम हमें भी घेर ले। किन्तु हमने डूबता सूरज उगाकर दम लिया।। लब रहे प्यासे भले मैदान में टूटे न हम। प्यास को भी तो वहां दासी बनाकर दम लिया।। लाख आए जलजले तूफान लेकिन क्या हुआ। हकपरस्तों ने शमा हक की जलाकर दम लिया।। फूलती फलती भला कैसे यजीदी भावना। लुट गया इब्नेअली लेकिन मिटाकर दम लिया।। ताकयामत हक न हारेगा भरोसा रखा "अनन्त"। हकसदा कायमरहा सिक्का चलाकर दम लिया।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...
हरते हैं अंधियारे राम
गीत

हरते हैं अंधियारे राम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सत्य न्याय दया समरसता, के सूरज को धारे राम। सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। राम नहीं व्यक्ति एक पथ है, करता भवसागर से पार। आत्मसात करलो इस पथ को, सफर नहीं होगा बेकार।। रिश्तों की गरिमा सिखलाई, करना सिखलाया व्यवहार। सदाचार का अर्थ बताया, और बताया पापाचार।। इसीलिए है सबके प्यारे, जीवन के उजियारे राम । सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। जब दुनिया के ताने सुन सुन, बनी अहिल्या शिला सामान। झरना सूख गया चंचल मन, उसका नहीं रहा गतिमान।। माँ कहकर जब उसे राम ने, प्यार दिया, पाया सम्मान। जीवन फिर से लगा चहकने, भूल गई अपना अपमान।। बिखर गई थी उसे सहारा, देकर बने सहारे राम। सभी मोह माया लालच के, हरते हैं अंधियारे राम।। साधन नहीं साधना से रण, जीता जाता है सिखलाया। अनुभव से लें परामर्श जब, पूजा की, शक्ति को पाया।। पुत्र नहीं ...
युद्ध थोपने वालों की हम
गीत

युद्ध थोपने वालों की हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के साथ यकीनन, ऐसा करना है गद्दारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** युद्ध जहां पर महिलाओं को, बेवा बना दिया जाता है। युद्ध जहां पर गोदी सूनी, करके खून पिया जाता है।। अगर नहीं जीवन दे पाते, जीवन लेने का क्या हक है। हत्या करने या करवाने, वाला सचमुच नालायक है।। भले रहनुमा हो या राजा, उसकी भी है हिस्सेदारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** क्या जनता पर निर्मम होना, काम नहीं बोलो शैतानी। महल बनें खुद के नित नूतन, खोली उनके लिए पुरानी।। तनपर भले न उनके कपड़े, हाथों में हथियार थमा दें। हिम्मत करें प्रश्न करने की, हंटर भी दो चार जमा दें।। भक्ति काआश्रय लेकर हम, बोझ न उनपर लादें भारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ****** युद्ध युद्ध होता है भाई, सतपथ पर चलना आराधन। खून खराबा...
धारा विचलित गगन विचलित है
गीत

धारा विचलित गगन विचलित है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** धरा विचलित लगन विचलित है, मालिक अब संभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालों तुम।। तुम्हारे वश में मृत्यु है, जीवनधन तुम्हारा है। ये तुमको है पता फिर क्यों, नजर से ही उतारा है।। कोरोना के विषाणू से, हमें क्यों यूँ डराते हो। किया क्यों घरमें सबको बंद, खूँ आंसू रूलाते हो।। तुम्हारे थे तुम्हारे हैं, दयालु, देखोभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। कोई पत्ता नहीं हिलता न, हो मर्जी तुम्हारी तो। इशारा दो हवा हो जाए, मौला ये बीमारी तो।। ना माथे का मिटे सिंदूर , ना गोदी ही सूनी हो। ना छीने जाएं घर हमसे, न ये तकलीफ दूनी हो।। तुम्हारी शरणागत दुनिया, हमें भी तो निभालो तुम। तुम्हारी ही ये लीला है, इसे थामो बचालो तुम।। यकीनन राज कोई इसमें, है जिसको तुम्ही जानों। है अच्छा क्या बुरा क्या है, इसे भी तुम ही पहचानों।। करम ...
बच्चों से जब काम न लेकर
गीत

बच्चों से जब काम न लेकर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुंचाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। मौलिक अधिकार है शिक्षा का, बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं। उत्तरदायी सरकारें यूँ, अपना फर्ज निभाती हैं। शिक्षित बचपन हो जाए बस, लक्ष्य हमारा अपना है। सूरज शिक्षा का तम हरले, देखा हमने सपना है।। काबिल होंगे बच्चे जब हर, बाधा से टकराएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बोझ अगर जिम्मेदारी का, बचपन में ही डाल दिया। जिनसे उड़ते, पंख उन्हीं को, जड़ से अगर निकाल दिया।। बोझ तले दबकर बच्चों की, क्षमताएं जंग खाएंगी। बिना हौसले सभी उड़ाने, बिल्कूल निष्फल जाएंगी।। जीवन को उत्सव मानेंगे, जब गुल ये, खिलजाएंगे। तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे।। बच्चों के सपने ही तो कल, की तस्वीर बनाते हैं। जैसे सपने वैसे ही तो, फल दामन में आते हैं।। बच...
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी
गीत

फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बड़ी बड़ी बातें करलें पर, यह कड़वी सच्चाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। जन कल्याण के खातिर हमने, बनती सरकारें देखी। वोट के खातिर नेताओं की, चलती मनुहारें देखी।। वादों से फिरते नेताओं, को देखा उसके पश्चात। और कभी देखा है उनको, करते जनता पर ही घात।। प्रश्न यही क्या आज करें हम, सम्मुख गहरी खाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपडी, एक यहाँ मिल पाई है।। माना हमने, देश बड़ा है, और हजारों मसले हैं। हर मसले का हल हो ऐसी, उगा रहे वो फसले हैं । लेकिन लोगों की सब माया, खाली पेट रहें कैसे। हमीं न होंगे तो क्या होगा, बोलो दर्द सहें कैसे।। इतसी जो बात न समझे, समझो वो हरजाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। "अनन्त" तन भी नंगा है और, गरमी सरदी सहता है। गांधी का है देश देर तक, सदमें सहता रहता है।। आसमान को छत कहकर वो, ...
पृथ्वी है वरदान
गीत

पृथ्वी है वरदान

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** पृथ्वी है वरदान प्रभु का, इसको गले लगाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। रहने की है जगह यही तो, पालन पोषण करती है। बाद मृत्यु के आश्रय देने, वाली भी ये धरती है।। जीवन की क्या कोई कल्पना, बिन इसके हो सकती है। इसीलिए तो धरती हमको, लोगों माँ सी लगती है।। माँ माने हम माँ सा ही दें, मान इसे सुख पाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। धरती को धनवान रखें हम, कभी न निर्धन होने दें। जितना हो आवश्यक हम लें, नाहक इसे न रोने दें।। बंजर गर कर देंगे धरती, कैसे जान बचाएंगे। भूखे प्यासे रहना होगा, जीवन कैसे लाएंगे।। ऐसा ना हो छाती छलनी, करें और पछताएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। जैव विविधता हो तो धरती, कितनी सुंदर मन भाती। हरी हरी जब चादर ओढ़े, नई वधू सी इठलाती।। पेड़ अगर कट जायेंगे तो, क्या बरसात रिझा...
भावों का रसमयी प्रदर्शन
गीत

भावों का रसमयी प्रदर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** भावों का रसमयी प्रदर्शन, करना है तो नाचें गाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। मोम बनाता है पत्थर को, नृत्य बड़ा जादूगर भाई। तन भी होता निरोग इससे, सभी जानते ये सच्चाई।। परमानंद नृत्य से मिलता, लोगों आओ नाचें गाएं । रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। जब बच्चों को भूख लगे तो, पैर पटकता देखा बचपन। तृप्त हुए जब खा पी करके, खुश होने का किया प्रदर्शन।। नृत्य कला है अभिव्यक्ति की, कैसे इसको कभी भुलाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। दुष्टों का कर दमन सर्वदा, नृत्य रहा पथ प्रभु पाने का। आराधन का साधन भी ये, नहीं तथ्य यह बहलाने का।। नृतक बनाएं खुद अपने को, भव सागर से पार लगाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। नटवर नागर कृष्ण कन्हैया, हैं "अनन्त" जो नश्वर लोगों। धर्म और संस्कृति से जुड...
प्रेम इबादत है पूजा है
गीत

प्रेम इबादत है पूजा है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** प्रेम लोक परलोक सुधारे, मेरा तो अनुमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम को जिसने भी पहिचाना, उसने सबको अपना माना। रब का रूप देखकर सबमें, सबको सेवा लायक जाना।। तम में कर देता उजियारा, लासानी दिनमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम नाव, पतवार बना है , प्रेम स्वर्ग का द्वार बना है । सुख सम्पत्ति की रक्षा के हित, ये ही पहरेदार बना है।। नग्न बदन को ढकने वाला, सदियों से परिधान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्त यही भगवान यही है ।। प्रेम बगावत करने वाला, प्रेम का विष भी अमृत प्याला। सोच समझ का काम नहीं ये, करताहै इसको दिलवाला।। विश्वासो का निर्झर है ये, कहते सब धनवान यही है। प्रेम इबादत है, पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम राह है प्रेम आस है, प्रेम तबाही में उजास है। प...
गली गली डर कोरोना का
गीत

गली गली डर कोरोना का

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** गली गली डर कोरोना का, इस डर का उपचार करें। स्वीकारें एकांत वास हम, इस विपदा पर वार करें।। संक्रामक है मर्ज कोरोना, दूरी का हम ध्यान रखें। कुल्हाड़ी ना पैरों पर हम, अपने मारे भान रखें।। नजरों से ना गिरें किसी की, बन समाज के दुश्मन हम। अपने ही भाई को क्या हम, दे पाएंगे कभी सितम।। भले लाॅकडाउन हो या हो, कर्फ्यू उसको स्वीकारें। पड़े अगर कठिनाई भी कुछ, अपनी हिम्मत ना हारें।। हम समाज से समाज हमसे, नाहक ना तकरार करें। स्वीकारें एकांतवास हम, इस विपदा पर वार करें।। कुत्ते की ना मौत मरेंगे, इटली में जो हुआ अभी। अपनी इस विपदा को हमने, कम आंका क्या कहो कभी।। साथ खड़े हम सरकारों के, नहीं आग में घी डाला। उल्टे पांव चला जाएगा, कर कोरोना मुंह काला।। खून नहीं पीने देंगे हम, खून के प्यासे दुश्मन को। करवा देंगे संकल्पित पग, जल्द बंद इस नर्तन को।। शर्...