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रशीद अहमद शेख ‘रशीद’
इंदौर म.प्र.
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गहरी पीड़ा धरती की है।
मीठी ईद लगे फीकी है!
कोरोना के जाल बिछे हैं!
नयनों से आंसू बरसे हैं !
सारे कारोबार थमे हैं!
बन्द सभी बाज़ार हुए हैं!
दशा यही हर बस्ती की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
बेटी गई मुरारी बा की!
सखी सिधारी है सुखिया की!
लाठी छिनी बनू बाबा की,
विधवा हुई पड़ोसन काकी!
यही कथा सलमा बी की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
कई घरों में हैं रमज़ान!
हुए कई चूल्हे वीरान!
भिन्न उपनगर हैं सुनसान!
सीमित हैं भोजन-जलपान!
बाहर सख़्ती कर्फ्यू की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
मस्जिद,मंदिर औ’ गुरुद्वारे!
बहुत समय से मौन हैं सारे!
घर में ही पूजन-अर्चन है,
कहाँ जाएँ पीड़ित दुखियारे!
आँख सजल हर श्री जी की है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
नहीं लग रहे हैं अब मेले!
कहाँ गए लोगों के रैले!
उदासीन बन्दी जैसे हैं,
घर में ही परिवार अकेले!
मेरी क्या चिन्ता सबकी है!
मीठी ईद लगे फीकी है!
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परिचय – रशीद अहमद शेख ‘रशीद’
साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’
जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१
जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत
शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद
कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य
सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा
लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, आलेख आदि।
प्रकाशन ~ अब तक लगभग दो दर्जन साझा काव्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। पांच काव्य संकलनों का संपादन किया है।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार ~ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान एवं विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा अनेकानेक सम्मान व अलंकरण प्राप्त हुए हैं।
विशेष उपलब्धि ~ हिन्दी और अंग्रेजी का राज्य प्रशिक्षक तथा जूनियर रेडक्रास का राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे। सन्रा १९९२ में राज्यपाल से अवार्ड मिला।
लेखनी का उद्देश्य ~ राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता तथा व्यक्तिगत सर्वांगीण विकास।
पसंदीदा हिन्दी लेखक ~ शिवमंगलसिंह सुमन, दुष्यंत कुमार, नीरज
विशेषज्ञता ~ मैं सदैव स्वयं को विद्यार्थी मानता आया हूँ।
देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार ~ भारत से मैं असीम प्रेम करता हूँ। धरती पर ऐसा अद्भुत महान देश अन्यत्र नहीं। मुझे हिन्दी बोलने,पढ़ने और इस भाषा में कुछ भी लिखने में बहुत गर्व का अनुभव होता है।
मौलिकता की जिम्मेदारी ~ मैं मौलिकता को लेखन का अनिवार्य अंग मानता हूँ।
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