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सुरूर और गुरुर

माधुरी व्यास “नवपमा”
इंदौर (म.प्र.)

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चाँद से चाँदनी जब चैन से सरसती है,
निगाह ए चकोर तब चाँद को तरसती है।

गरजते है बदल तो बिजली कड़कती है.
हो घोर अंधेरा, तो रोशनी चमकती है।

रोता है जब बदल, तो बूंदे बिछड़ती है,
स्वाति की बूंद को तब सीप तरसती है।

प्रचंड शीत जब धूप से पिघलती है,
बुझी राख में भी चिंगारी चटकती है।

दिन के उजाले पर काली चादर तनती है,
जलती रहती है शमा रोशनी बिखरती है

काली बदली मतवाली होकर उमड़ती है,
मयूर की आँखें पाँव देखकर बरसती है।

किनारे के नम्र पेड़ तो झुक जाते हैं,
जब नदी सागर की तरफ उफनती है।

उखड़ते है वो मगरूर दरख़्त, ऐ “नवपमा”!
जिनकी गर्दने गुरुर से सदा ही तनती है।

परिचय :- माधुरी व्यास “नवपमा”
निवासी – इंदौर म.प्र.
सम्प्रति – शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत)
शैक्षणिक योग्यता – डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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