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रशीद अहमद शेख ‘रशीद’
इंदौर म.प्र.
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हुई प्रकृति में उद्घोषित भोर!
धीरे-धीरे बढ़ा धरा पर शोर!
हुआ तिरोहित तम आया आलोक,
सूरज की किरणें छाईं चहुँ ओर!
धीरे-धीरे बीती रात!
आख़िर तम ने खाई मात!
फैली लाली चारों ओर,
दिनकर लाया सुखद प्रभात!
पूर्व में हो रहा है रवि उन्नत !
रश्मियों से हुआ तिमिर आहत!
जागृत-प्रकाशित हैं जड़-चेतन,
कर रहे हैं प्रभात का स्वागत!
किरणों से संसार सजाया सूरज ने।
अंधियारों को दूर भगाया सूरज ने।
जीव धराशाई थे और अचेतन भी,
महा जागरण गीत सुनाया सूरज ने।
हो गई है यामिनी की हार तय!
तिमिर का होने लगा है सतत् क्षय!
प्राणियों में चेतना का शोर है,
हो रहा है पूर्व में दिनकर उदय!
कोई दीपक अगर चाहे तो दिनकर हो नहीं सकता!
बड़ा हो ताल कितना भी समन्दर हो नहीं सकता!
कुटी हो या गगनचुम्बी निकेतन या हवेली हो,
बिना परिवार के कोई भवन घर हो नहीं सकता!
नियमित भू पर आलोकित होता दिनकर!
आयु निकल जाती है पूरी दिन-दिन कर!
निर्धारित कर अपने जीवन का उद्देश्य,
ए मानव तू कार्य सार्थक हर दिन कर!
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परिचय – रशीद अहमद शेख ‘रशीद’
साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’
जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१
जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत
शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद
कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य
सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा
लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे तथा लघुकथा, कहानी, आलेख आदि।
प्रकाशन ~ अब तक लगभग दो दर्जन साझा काव्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। पांच काव्य संकलनों का संपादन किया है।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार ~ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान एवं विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थानों द्वारा अनेकानेक सम्मान व अलंकरण प्राप्त हुए हैं।
विशेष उपलब्धि ~ हिन्दी और अंग्रेजी का राज्य प्रशिक्षक तथा जूनियर रेडक्रास का राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे। सन्रा १९९२ में राज्यपाल से अवार्ड मिला।
लेखनी का उद्देश्य ~ राष्ट्रीय एकता, सामाजिक समरसता तथा व्यक्तिगत सर्वांगीण विकास।
पसंदीदा हिन्दी लेखक ~ शिवमंगलसिंह सुमन, दुष्यंत कुमार, नीरज
विशेषज्ञता ~ मैं सदैव स्वयं को विद्यार्थी मानता आया हूँ।
देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार ~ भारत से मैं असीम प्रेम करता हूँ। धरती पर ऐसा अद्भुत महान देश अन्यत्र नहीं। मुझे हिन्दी बोलने,पढ़ने और इस भाषा में कुछ भी लिखने में बहुत गर्व का अनुभव होता है।
मौलिकता की जिम्मेदारी ~ मैं मौलिकता को लेखन का अनिवार्य अंग मानता हूँ।
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