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एक पहल ऐसी भी

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रचयिता : कुमुद दुबे

सचिन  का ट्रांसफर पूना हो गया था। एक नये बने काम्प्लेक्स के केम्पस में सचिन ने फ्लेट ले लिया था। जिसमें स्विमिंग पुल, पार्क, बच्चों के लिये प्ले ग्राउंड, झूले, फिसलपट्टी, कम्यूनिटी हाॅल, सभी कुछ आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थी। सचिन की पत्नि सुचिता और छः साल का बेटा प्रमेय बहुत खुश थे।
रोजाना शाम सभी बच्चे पार्क में एकत्रित होकर खेलते। बच्चों की मम्मियों में भी आपसी परिचय अच्छा हो गया था। सुचिता को बचपन से ही पेड़-पौधों से बहुत लगाव था। साथ ही स्वच्छ वातावरण में रहने की वह आदि थी। शाम के समय पार्क में छोटे-बडे़ सभी बच्चे  इकट्ठे होते थे। कुछ बच्चों की मम्मियां बच्चों के खाने-पीने की सामग्री भी अपने साथ लेकर आने लगी थीं। बच्चे प्ले एरिया में कागज व फलों के छिलके फेंक देते! तो सुचिता को यह पसन्द नहीं आता। उसने एक-दो बार टोका भी तो उसे यही उत्तर मिला कि बच्चे हैं, गंदा तो करेंगे ही। हम सोसाईटी का मेन्टेनेन्स भी तो भरते हैं। उसमें साफ-सफाई का पैसा भी तो शामिल है।
     बच्चे कभी फूल-पत्तियां नोंच डालते। माली टोकता तो, मम्मियां कह देतीं भैया, बच्चे हैं उन्हें यह सब कहां समझता है! माली काम न छूट जाए इस डर से चुप हो जाता। यह देख सुचिता को बहुत बुरा लगता! वह बहुत दुखी हो जाती।
एक दिन सचिन ऑफिस से लौटे और सुचिता को उदास पाया तो पूछ लिया, क्या बात है? आज तुम उदास लग रही हो? आज प्रमेय को लेकर पार्क नहीं गई क्या? सुचिता उदास मन से बोली – हां गई थी पर जल्दी लौट आयी। सुचिता मन ही मन परेशान तो थी ही उससे  रहा नहीं गया। पार्क में घटित सारी बातें उसने सचिन से कह डाली। सचिन परिपक्व और समझदार इंसान था। उसने सुचिता को समझाया! सभी तुम्हारे जैसे नहीं होते सुचिता! तुम जिस भी केम्पस में रहोगी विभिन्न प्रकार के लोग मिलेंगे। क्यों न हम, कुछ ऐसी पहल करें कि बुराई भी न हो और लोग भी तुम्हारी बातों को समझने लगे।  दो दिन बाद ही पर्यावरण दिवस है मेरी भी छुट्टी है। हमारी तरफ से सोसायटी के रहवासी विशेषकर बच्चों के लिये रिफरेशमेंट पार्टी रखते हैं। ऑफिस से लौटते समय नर्सरी से कुछ पौधे लेता आऊंगा। बच्चों के हाथों से पौधारोपण करवायेंगे उन्हें पर्यावरण, प्रदूषण और स्वास्थ लाभ के सम्बन्ध में जानकारी से भी अवगत करा देंगे।
       दूसरे ही दिन सुचिता ने केम्पस के सूचना-पटल पर कार्यक्रम की सूचना लिख दी। साथ ही अपने-अपने घर से कुर्सियां लाने का भी निवेदन किया। सोसायटी के सेक्रेटरी को कार्यक्रम की सूचना दी तो उन्होंने भी कम्यूनिटी हाल में कार्यक्रम करने की अनुमति दे दी। पर्यावरण दिवस के दिन अवकाश होने से सोसायटी के सभी लोग एकत्रित हो गये। सचिन ने बच्चों को प्रकृति के बारे में विस्तृत जानकारी से अवगत कराया कि पेड़-पौधे हमें ऑक्सीजन देते हैं, हवा को शुद्ध रखने में मदद करते हैं, यदि पेड़-पौधे नहीं होंगे तो हमारा स्वाँस लेना कठिन हो जायेगा! इसलिये, हमें शुद्ध हवा व पर्यावरण के लिये वृक्षों को बचाना चाहिये। हमें स्वच्छता पर भी ध्यान देना चाहिये आदि… ।
      बड़ों के लिये भी सुझाव रखे कि यदि आप एक ही दिशा में जा रहे हैं तो आपस में कार शेयरिंग करके जाएं ओर यदि बस की सुविधा हो तो कभी-कभी घर से जल्दी निकलकर बस से जाएं जिससे वाहन से फैलने वाले प्रदूषण से भी बचा जा सकता है। सभी ने शान्तिपूर्वक बात सुनी और सभी रहवासियों ने केम्पस को स्वच्छ रखने की शपथ ली। पूरे उत्साह से बड़ों के साथ बच्चों ने पौधारोपण के कार्य में बढ-चढकर हिस्सा लिया और नाश्ते का लुफ्त उठाया। पारिवारिक माहौल निर्मित हो गया था।
प्रतिवर्ष पर्यावरण-दिवस मनाने का प्रस्ताव भी रखा गया जिसका सभी ने कर्तलध्वनी से स्वागत किया। अंत में सबके हाथ से खाली प्लेट्स एकत्र करने का काम सचिन, सुचिता और प्रमेय ने शुरु किया तो उनका हाथ बटाने प्रसन्नतापूर्वक बाकी लोग भी आगे आ गये।
आज सुचिता बहुत खुश थी सचिन का सुझाव सफल रहा। दूसरे दिन सुचिता प्रमेय को लेकर पार्क में गई “एक नई उम्मीद के साथ”।
लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।

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