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 मन की धारा

रचयिता : विजयसिंह चौहान

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 मन की धारा

कॉलेज की अभी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई थी कि योगेश की आंखें, आंचल की छांव, जुल्फ और कजरारी आंखों में समाने लगी । एक तरफा दिन दे बैठा रमा को।
अब योगेश का मन  पढ़ाई में कम और उसके इंतजार में ज्यादा लगता था। फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टा के संदेश और उसके इंतजार में पढ़ाई भी प्रभावित होने लगी। गुड मॉर्निंग से गुड नाइट तक नियमबद्ध हर संदेश पर नजर गड़ाए योगेश भावी जीवन के ढेरों सपने बुन चुका था। रमा भी जानती थी, उसके मन की बात।  मगर कभी कह नहीं पायी, शायद इसीलिए योगेश के संदेश के जवाब में वह महज स्माइली और सेड़ी  इमोजी ही  भेजती थी जिससे योगेश खासा परेशान रहता।
एक दिन कट्ठा मन करके रमा ने योगेश को एक संदेश भेजा जो कि इस प्रकार था:-
मोहब्बत
पहले अंधी हुआ करती थी । इलाज के बाद उसे समझ में आया की उसे शक्ल, खूबसूरती, गाड़ी- बंगला और पॉकेट की भी जरूरत होती  है ।
इन चंद लाइनों के साथ फिर ढेरों इमोजी,  जो की बारी -बारी से आंख मारती, हंसती, एक आंख से रोती, दोनों आंखों से रोती तो कभी बिलखती हुई नजर आ रही थी।
संदेश को योगेश ने दिल से पढ़ा और पढ़ते ही उसे यथार्थ का भान हुआ। अब उसे समझ में आ गया था कि खाली दिल लगाने से काम नहीं चलेगा जीवन जीने के लिए दिल के अलावा काम भी करना होगा ।
रमा की बात समझ में आते ही योगेश ने किताबों से धूल झटकाई और मन की धारा मोड़ ली।

लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० जन्मस्थान इन्दौर (मध्यप्रदेश) है, इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की, आप सामाजिक क्षेत्र में गतिविधियों में सक्रिय हैं, वहीं स्वतंत्र लेखन, सामाजिक जागरूकता, के साथ साथ समाज सेवा भी करते हैंl
लेखन में आपकी विधा-काव्य, व्यंग्य, लघुकथा और लेख हैl आपकी उपलब्धि यही है कि, उच्च न्यायालय (इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता जारी है। हाल ही में आपको डॉक्टर एसएन तिवारी स्मृति सम्मान समारोह में साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया है।

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