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धूल की कहानी

श्रीमती विभा पांडेय
पुणे, (महाराष्ट्र)
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मैं धूल हूँ,
तिरस्कृत रहती हूँ।
लोगों की आँखों में
बड़ी चुभती हूँ।
जहाँ पड़ी,
झाड़ दी जाती हूँ।
या मुँह पर
मार दी जाती हूँ।
मेरे रहने पर
लोग पास नहीं
फटकते।
मुझसे भरे घर,
सबकी आँखों में
खटकते।
ये मानव,
अबोध शिशु से सारे
कहाँ जानते
मेरा महत्व।
पेड़-पौधे,
फल-फूल
ओढ़ते-बिछाते
उन पर
प्यार लुटाते।
पर जन्मदात्री
को ही भूल जाते।
वो देखो,
मैं ही तो हूँ
पैरों के नीचे
पानी से लिपटी।
ये मेरी ही
संतानें हैं जो
तुम्हें भी और
तुम्हारे घर
को भी सजाती हैं
और तुम्हें
जीवन देतीं हैं।
और तुम
विधाता के सबसे
बुद्धिमान रचना
मानव
एक-दूसरे से ही
लड़ते हो
और मेरा तिरस्कार
करते हो।
पर मेरा तिरस्कार
करने वालों
देखो तो सही
मैं कहाँ और
तुम कहाँ !
मैं ईश के
चरणों में भी हूँ
और उनके
शीश पर भी।
वीरों के
माथे पर भी
गर्व से चिपकी हूँ
और हूँ
देशभक्तों की
ललकार में भी।
किसानों के मेहनत
की खुशबू में भी हूँ
और मजदूरों के
देह पर भी।
शुभ हूँ बड़ी,
तिलक बन सजती हूँ।
ध्यान रखो ये हमेशा
मैं ही इतिहास रचती हूँ।
पर ये मानव
कितना एहसान
फरामोश
धरती की गोद
से उठा मुझे
कभी तो माथे से
लगाता है और
जो गोद में बैठी तो
तिरस्कार कर
दूर फेंकता है,
मानवता को
पैरों तले रौंदते
हे अहंकारी मानव,
तुम्हारा रूप किसी को
अब समझ नहीं आता है,
इसीलिए
विधाता भी तुम्हें
अब माफ़ करने से
कतराता है।

परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड.
जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी
निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र)
विशेष : डी.ए.वी. में अध्यापन के साथ साथ साहित्यिक रचनाधर्मिता में संलग्न हैं ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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