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उम्र की कहानी

उम्र की कहानी

रचयिता : रामनारायण सोनी

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“उम्र की बीती कहानी याद फिर आयी कहीं से।”
अतीत की कन्दराओं में उकेरे भित्तिचित्रों में भी कई आख्यान उभरते हैं। जिन में से कुछ हमने बनाए है कुछ कोई और चितर गया है। ये बोलते भी हैं जैसे बुन्देले हरबोलो के मुख से झाँसी का इतिहास फूट पड़ता है। इन आख्यानों में छुपे होती है कुछ रहस्य, कुछ स्मृतियाँ, कुछ अनुभूतियाँ। इनमें समाहित हैं जीवन से जुड़े यथार्थ, खट्टे-मीठे, कषाय-तिक्त और संगतियों-विसंगतियों के भिन्न भिन्न आस्वादन। इनका सम्मिश्रण भी एक अजीब केमिस्ट्री है।
जहाँ धुआँ है वहाँ आग होगी ही, जहाँ उजास है वहाँ कहीं आस पास ही अन्धकार भी होगा। खूबसूरत गुलाब काँटों के बीच हैं। नागफ़नी के फूलों का सौंदर्य अनोखा होता है। नैसर्गिक गुण धर्मों से लपलपाती ज्वालाएँ ऊर्जा की भण्डार है पर एक सत्य यह भी है कि लकड़ियाँ अपना उत्सर्ग कर के उन्हें उत्पन्न करती है। यह ऊष्मा कभी सूरज से इन्होंने ली थी, सहेजी थी। एक दिन चिंगारी आई और उठा कर ले गई। वैसे ही इस जिन्दगी ने कुछ पाया भी है और कुछ खोया भी। यह अत्युक्ति नहीं होगी कि सीधी सपाट जिन्दगी भी उबाऊ हो सकती है। शायद इसीलिए प्रकृति में विविधता है, गत्यात्मकता है, विचित्रताएँ हैं।
उम्र की कहानी भी इसी तरह जीवन की कई विसंगतियों का अद्भुत रसायन है। हम चल रहे है, चल कर यहाँ तक आए हैं ओर चलते चलते अतीत के आइने में झाँक झाँक कर देखते रहते हैं। क्या थे और क्या हो गए? यह कहानी कहानी भी है और आईना भी है।
उजास में कुछ उजले चेहरे दिखाई देते हैं उन बगुलों की तरह जो उड़ते हुए सफेद दीखते हैं परन्तु झील के किनारे मछली की टोह में बैठे चितकबरे दिखाई पड़ते हैं। मकड़ी के जाले विश्वकर्मा के किसी खूबसूरत शिल्प से कम नही पर यह जुगत आज़ाद उड़ते कीटों के लिए बिछाया जाल है। गिरगिटों का रंग बदलना कोई इन्द्रधनुष का प्रतिमान थोड़े ही है। पेट की आग तो कुछ और तरह से भी बुझ सकती है पर छ्ल छ्द्म क्यों?
एक कहावत है कि “जीवन भर तेल फ़ुलेल लगाया पर अन्त में खुशबू नहीं आई। इन्सान की अंतिम परिणति एक मुट्ठी राख है उसे भी कोई संभाल कर नही रखेगा। समय का घूमता चक्र जीवन भर पली बढ़ी भावनाओं को लील जाएगा। काल की गति को कौन जाने है। यह काल कभी वक्त कहलाता है तो कभी मृत्यु का देवता। दोनो ही स्वरूप प्रलयंकर है। काले सफेद दिन रात के परों पर सवार हो कर सरपट दौड़ता है और अवस्थाओं के दौर पीछे छोड़ता चला जाता है। सब की सब घटनाएँ याद नहीं रह सकती सिर्फ वे याद रहती हैं जो रोमांचकारी हो, टर्निग पॉइन्ट हो, डराती हो, गुदगुदाती हो।
नाद की अनुगूँज में लय और प्रलय है, सृष्टि का सृजन भी है व विध्वंस भी है फिर भी क्रम और अनुक्रम है वही जारी है। उसमें कहीं ठहराव भी है तो कहीं दोहराव भी है। कल्प भी है तो प्रकल्प भी है। वस्तुतः जिंदगी अजस्र बहती धार बनकर लौट फिर आती है। सम्पूर्ण जीवन वर्तुलाकार है। जीवन आड़ी तिरछी रेखाओं से बना एक प्रमेय है इनमें से कुछ स्व साध्य है और शेष कर्म के मूल सिद्धान्तों में आबद्ध है। कहीं टूटी टूटी सी लगती है तो कहीं टूट कर जुड़ती है। सम्यक दृष्टि से देखा जाए तो जीवन समग्रता का दूसरा नाम है।

लेखक परिचय :- नाम – रामनारायण सोनी
निवासी :-  इन्दौर
शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल
प्रकाशित पुस्तकें :- “जीवन संजीवनी” “पिंजर प्रेम प्रकासिया”, जिन्दगी के कैनवास
लेखन :- गद्य, पद्य
सेवानिवृत अधिकारी म प्र विद्युत मण्डल

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