पेट का सवाल
रचयिता : सतीश राठी
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‘’क्यों बे ! बाप का माल समझ कर मिला रहा है क्या ?‘’ गिट्टी में डामर मिलाने वाले लड़के के गाल पर थप्पड़ मारते हुए ठेकेदार चीखा|
‘’कम डामर से बैठक नहीं बन रही थी ठेकेदार जी ! सड़क अच्छी बने यही सोचकर डामर की मात्रा ठीक रखी थी|’’ मिमियाते हुए लड़का बोला|
‘’मेरे काम में बेटा तू नया आया है| इतना डामर डालकर तूने तो मेरी ठेकेदारी बन्द करवा देनी है|‘’ फिर समझाते हुए बोला – ‘’ये जो डामर है, इसमें से बाबू, इंजीनियर, अधिकारी, मंत्री सबके हिस्से निकलते हैं बेटा ! ख़राब सड़क के दचके तो मेरे को भी लगते हैं|.. ..चल इसमें गिट्टी का चूरा और डाल|” मन ही मन लागत का समीकरण बिठाते हुए ठेकेदार बोला|
लड़का बुझे मन से ठेकेदार का कहा करने लगा| उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर ठेकेदार बोला – ‘’बेटा ! सबके पेट लगे हें| अच्छी सड़क बना दी और छह माह में गड्ढे नहीं हुए तो इंजीनियर साहब अगला ठेका दूसरे ठेकेदार को दे देंगे| इन गड्ढों से ही तो सबके पेट भरते हैं बेटा !’’
लेखक परिचय :- नाम : सतीश राठी
जन्म : २३ फरवरी १९५६ इंदौर
शिक्षा : एम काम, एल.एल.बी
लेखन : लघुकथा, कविता, हाइकु, तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन। देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन।
सम्पादन : क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी ‘क्षितिज’ का वर्ष १९८३ से निरंतर संपादन। इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए ‘सरोकार’ एवं ‘लकीर’ पत्रिका का संपादन।
प्रकाशन : पुस्तकें शब्द साक्षी हैं (निजी लघुकथा संग्रह), पिघलती आंखों का सच (निजी कविता संग्रह)।
संपादितपुस्तकें : तीसरा क्षितिज(लघुकथा संकलन), मनोबल(लघुकथा संकलन), जरिए नजरिए (मध्य प्रदेश के व्यंग्य लेखन का प्रतिनिधि संकलन)
साझा संकलन : समक्ष (मध्य प्रदेश के पांच लघुकथाकारों की १०० लघुकथाओं का साझा संकलन) कृति आकृति (लघुकथाओं का साझा संकलन, रेखांकनों सहित), क्षिप्रा से गंगा तक (बांग्ला भाषा में अनुदित साझा संकलन)
अनुवाद : निबंधों का अंग्रेजी, मराठी एवं बंगला भाषा में अनुवाद। लघुकथाएं मराठी, कन्नड़, पंजाबी, गुजराती, बांग्ला भाषा में अनुवादित । बांग्ला भाषा का साझा लघुकथा संकलन ‘शिप्रा से गंगा तक वर्ष २०१८ में प्रकाशित।
शोध : विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एमफिल में मेरे लघुकथा लेखन पर शोध प्रबंध प्रस्तुत। कुछ पीएचडी के शोध प्रबंध में विशेष रूप से शामिल।
पुरस्कार सम्मान : साहित्य कलश इंदौर के द्वारा लघुकथा संग्रह’ शब्द साक्षी हैं’ पर राज्यस्तरीय ईश्वर पार्वती स्मृति सम्मान वर्ष २००६ में प्राप्त। लघुकथा साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए मां शरबती देवी स्मृति सम्मान २०१२ मिन्नी पत्रिका एवं पंजाबी साहित्य अकादमी से बनीखेत में वर्ष २०१२ में प्राप्त।
सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इंदौर शहर में निवास, और लघुकथाओं के लिए सतत कार्यरत।
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