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निर्झरणी

अर्पणा तिवारी
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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मै नारी हुं, निर्झरणी हुं, कल कल करती सरिता पावन हुं।
मन से रेवा, तन से गंगा, अनुरागी हुं, मनभावन हुं।।
परमेश्वर ने मुझको सृष्टि की रचना का आधार रखा।
आदि शक्ति का रूप बनाकर उमा रमा फिर नाम दिया।।
मानव जाति जन्मे तुझसे, मुझको यह वरदान दिया।
नवजीवन देती, परमेश्वर की सत्ता की परिचायक हुं।।
मन से रेवा तन से गंगा अनुरागी हुं मनभावन हुं।
मै जीवन के तपते रेगिस्तानो में रिश्तों की बगिया महकाती हुं।
मै वसुधा हुं, पीड़ा सहकर जीवन का पुष्प खिलाती हुं।।
लेकर मर्यादा सागर की सिमट सिमट मै जाती हुं।
मै सुर भित मंद पवन सी सृष्टि की अधिनायक हुं।।
मन से रेवा तन से गंगा, अनुरागी हुं मनभावन हुं।
उत्कृष्ट कृति मै परमेश्वर की फिर क्यों कमतर आंकी जाती हुं।
सतयुग में अग्निपरीक्षा देती, द्वापर में जुएं में हारी जाती हुं।।
पुष्पों सा कोमल मन ले क्यों कलयुग में कुचली जाती हुं।
स्वच्छ गगन है विस्तृत मन मै ममता का लहराता आंचल हुं।।
मन से रेवा तन से गंगा अनुरागी हुं मनभावन हुं।

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परिचय :- अर्पणा तिवारी
निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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