अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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नाटक और अभिनय के शौकिन रघुवीर जी आज शांत मुद्रा में लाॅन में बैठे थे। मौन चिंतन में मग्न थे। वे अपने अतीत की रमणीक स्मृतियों में विचरण करने लगे। रंगमंच से उपजा प्यार कब स्नेह पाश में बंध गया पता ही नहीं चला था। सीमा के साथ गृहस्थी की गाड़ी सुख से चलाते पचास साल गुजर गये थे। वाह ! ‘सभी प्रकार के रोल अदा करने के बाद ‘उम्र ने भी आराम करने का संकेत दे दिया था।’
लेकिन रघुवीर का मन अभी भी अभिनय करना चाहता था। उन्हें याद आया, पत्नी सीमा भी बार बार कहती हैं, अब नाटक देखने नहीं जाना चाहिए और रंगमंच पर अभिनय भी नहीं करना चाहिए। उठने, बैठने, चलने में होने वाली तकलीफ कहती हैं रघुवीर जी अब घर में आराम करो। सीमा जानती है टीवी पर आने वाले नाटक, शहर के बड़े हाॅल में रंगमंचित नाटक देखना ही इनका जीवन था। अपने नाटक के हुनर को दिखाने के लिए जब-तक रंगमंच पर अवसर मिलते रहे वे पीछे नहीं हटे। घर में भी हंसी-खुशी से नकल करना, बच्चों के साथ भी नाटक की रिहर्सल करते रहते थे।
सीमा ने कुछ गुस्से में कह दिया था। देखो जी वैसे भी मुझे नाटक देखना पसंद नहीं हैं। आपके खातिर चली जाती हूं। अब हम दोनों को ही सहारे की जरूरत है, इससे अच्छा है घर में ही रहे। “मायूस होकर रघुवीर ने कहा, सीमा! इस अंतिम पड़ाव में तू साथ और हाथ क्यों छोडना चाहती है ?’ सीमा ने कहा, अपना नाटक दिखाना है क्या लोगों को? पिछली बार हाॅल में चेयर पर बैठते हुए गिर पड़े थे याद हैं । फिर चार लोगों ने उठाया था। हां, सही तो कहती है सीमा….।
इस प्रकार अतीत और वर्तमान में खोये रघुवीर की तंद्रावस्था सीमा की पुकार से भंग हो गई थी। आज अंग अंग शिथिल होकर कह रहा था, शायद आखरी एक्टिंग पूरी कर लेनी चाहिए। इसी सोच से हमेशा का डायलॉग “कोई है जो मेरा सामना कर सके” कहते अपने बल्ले दिखाने का अभिनय करते रघुवीर कुर्सी का हत्था पकड़कर धीरे से उठे। लेकिन मुंह खोलने के पूर्व कोहनी से हाथ को मोड़ते ही नीचे गिर पड़े थे। तब तक चाय नाश्ते का ट्रे लिए सीमा ने लाॅन में आते ही देखा रघुवीर अचेत गिरे हैं। दाहिना हाथ बल्ले दिखाने की पोज में था, कुछ बोलना हैं इसलिए मुंह खुला था। लो यहां भी अभिनय चल रहा हैं। उसने बड़े बेटे जयू को पुकारा देख तेरे पापा कैसे पड़े हैं? जयू ने दौड़कर पापा को सम्हाला और कहा, मम्मी ये खरखराहट, दोनों हाथ ऊपर करना अंतिम यात्रा का अभिनय है। सीमा सुनते ही स्तब्ध हो गई थी। वह मन ही मन बुदबूदाई थी, रघुवीर यह नाटक अकेले कैसे कर सकते हैं?
सीमा के हाथ से ट्रे नीचे गिर गया। रघुवीर का सौम्य मुख मंडल कह रहा था, ‘सीमा इस रंगमंच का रोल समाप्त हो गया है। इस समय कोई साथ नहीं चलता।’
“अकेले आये थे, अकेले जाना है।”
परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
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