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बसंत ऋतुराज है आया

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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कहीँ भौरो की गुंजन है
कही कोयल की कूके है
कही बौराये है जो आम
कही महकी हुईं हर शाम
कभी आलस्य ने घेरे
है खालीपन कही छाया
कही सूनी है दुपहरी
कही अति धूप कहीं छाया
कही कुछ छूटा सा लगता
कही कुछ खोया सा लगता
पहेली लाख सुलझा लौ
मगर उलझा हुआ लगता
चिड़ियों की मस्ती भी
झलकती साफ ऐसी है
सामने आईना रख दो
झपटती गिद्ध जैसी है
खेतों में खलिहानों में
आबादी में वीरानों में
इधर देखो उधर देखो
बसंत ऋतुराज है आया
सभी ऋतुओं में उत्तम है
असर इसका कुछ ऐसा है
चले जहाँ बात जब इसकी
तो चलती सांस मद्धम है
सुनहरी गेहूँ की बाली
पलाश और टेसू की लाली
मदमस्त कर डाली
बसंती बयार निराली

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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