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वसन्त ऋतु

ललिता शर्मा ‘नयास्था’
भीलवाड़ा (राजस्थान)
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सरसी छंद गीत
मात्राभारः १६,११

झूम रही है उपवन शाखी, मधुकर करता शोर।
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

प्रमुदित होते किसलय कानन, खिली-खिली-सी धूप।
पर्ण पाँखुरी की जम्हाई, यौवन छलके कूप।
वासंती हो बैठे पंछी, नर्तक झूमें पोर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

उजला-उजला नभ का साया, बादल-बदली नील।
दिनकर आता तम को हरने, झेन-फेन-सी झील।
पवन-वेग से गूँज रही है, राग वसन्ती भोर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

शुचि-सोम-सरी कल-कल बहती, निर्मल जल की धार।
उच्च शिखर की आभा जैसे, धरणी का श्रृंगार॥
पीत मञ्जरी महक उठी हैं, माघ बना चितचोर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारो ओर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

परिचय :-  ललिता शर्मा ‘नयास्था’
निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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