Sunday, December 22राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

वसन्त ऋतु

ललिता शर्मा ‘नयास्था’
भीलवाड़ा (राजस्थान)
********************

सरसी छंद गीत
मात्राभारः १६,११

झूम रही है उपवन शाखी, मधुकर करता शोर।
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

प्रमुदित होते किसलय कानन, खिली-खिली-सी धूप।
पर्ण पाँखुरी की जम्हाई, यौवन छलके कूप।
वासंती हो बैठे पंछी, नर्तक झूमें पोर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

उजला-उजला नभ का साया, बादल-बदली नील।
दिनकर आता तम को हरने, झेन-फेन-सी झील।
पवन-वेग से गूँज रही है, राग वसन्ती भोर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

शुचि-सोम-सरी कल-कल बहती, निर्मल जल की धार।
उच्च शिखर की आभा जैसे, धरणी का श्रृंगार॥
पीत मञ्जरी महक उठी हैं, माघ बना चितचोर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारो ओर॥
ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥

परिचय :-  ललिता शर्मा ‘नयास्था’
निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *