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चिंगारी

प्रवीण कुमार बहल
गुरुग्राम (हरियाणा)
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आग से उठने वाली चिंगारी– कुछ पल में
बुझ जाती है– कौन जानता है चिंगारी
कहां और कैसे लगती है—
चिंगारियां से उभर कर आने वाला इंसान
बहुत मजबूत होता है– हर बार कोशिश की
जिंदगी की चिंगारी देर तक ना जले
इन रास्तों पर चलना नहीं सकता था
फिर भी भी मत बोल मुझे चिंगारियां में
धकेला जाता था– जिंदगी
काहे बर्बाद कर रही थी– सोचा था
वह आएंगे जरूर– जिन्हें हर वक्त सहयोग देता रहा
सोचता रहा वह कहां है — क्यों नहीं आते
आज इंसान दोमुंहा क्यों हो गया है
यहां कुछ वहां कुछ —-
कभी खुदा को धोखा देता है
कभी खुद को धोखा देने में लगेरहता है
गरीबी क्या है– कैसे आती हैं
यह स्वार्थ लोगों की उपज है
जो सिर्फ अपने लिए सोचते हैं–
गरीबी का मजाक उड़ाते हैं हर वक्त
अपने सम्मान — दिखावे के लिए
तो हर पल दान देना चाहते हैं
हर वक्त झूठी सच्ची योजना दिखाकर
समाज में भ्रम फैलाते हैं—
और धन दौलत लूटने में लगे रहते हैं
भला करना तो उनके नसीब में ही वह नहीं है
वह तो सिर्फ दिखावा करना चाहते हैं
गरीबों का नाम लेकर–
अमीर बनना चाहते हैं– समय आता है
तो गरीब की रोटी भी छीन लेते हैं
यह चंद लोग हैं — जिनकी अपनी दुनिया है
उनकी यह दुनिया– झूठ और फरेब पर टिकी हुई है
धन थोड़ा हो — जिंदगी में शांति हो
शांति में जिंदगी में चिंगारी जलती नहीं है

परिचय :- प्रवीण कुमार बहल
जन्म : ११-१०-१९४९
पिता : डॉ. मदनलाल बहल
व्यवसाय : सेवानिवृत- मैनेजर, इंडियन ओविसीज बैंक
निवासी : गुरुग्राम (हरियाणा)
उपन्मास : रिश्ता, ठुकराती राहें
काव्य संकलन : खामोशी, दिशा, चिराग जलते रहें, आंसू बहते रहे, आदि १० पुस्तकों का प्रकाशन।
पुरस्कार : १९८० में राष्ट्रपति द्वारा नेशनल अवार्ड सहित १०० से अधिक सम्मान से सम्मानित।
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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