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कोख की आवाज़

अनुराधा बंसल गुप्ता
जयपुर, राजस्थान

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आज माँ में तेरी कोख में आयी हूँ
देखा है ना तूने मुझे,
देख तुझसा ही निर्मल चेहरा लिए आयी हूँ
माँ आज तूने छुआ मुझे
तेरे इस चूँभन में संसार की
हर ख़ुशी के बड़कर सुख पाया हैं मेने..
इस संसार का दीदार तो किया नहीं
फिर भी तुझमें इस संसार को पाया हैं मेने
देख माँ आज हाथ बने है
कल लकीरें भी जल्द बनेगी
फिर मेरे हाथो में तू हमेशा हमेशा संग रहेगी ..

माँ तू यू चुप क्यू है
बोल ना ये खोफ़नाक आदमी कोन है ??
जो बार तुझे बेबस करके
मुझसे दूर ले जाने की कोशिश करता है
माँ बनाकर ख़ुद को बेबस
नहीं छोड़ेगी न तू मुझे
हर पल तो मेरा अटूट अहसास
तूने अपनी साँसो में पाया है….
बोल ना मेरी ग़लती है क्या ?
क्यू देना चाहता है ये ज़माना सज़ा?
तू भी तो इक बेटी है
तेरी भी तो इक माँ थी
फिर क्यू ये सज़ा मुझे मिली ?
क्यू मेरी चीख़ तुझे सुनायी ना दी ?
क्यू तू बेबस लाचार बन
इस दुनिया का जुर्म सहती रही?

माँ माना में बेटा नहीं
लेकिन तेरी इजजत पे
कोई दाग़ भी नही
कह देना उन क्रूर चेहरों को
मुझसे तो मेरी साँसे है लि छीन ,
उसके जेसे और है दानव
जा ड़ुँढ ले अपने बेटे के लिए
कोई दुल्हन हसीन
मेरी जेसी हर आँख की
ज्योति दिल की धड़कन
इन राक्षसो ने ही है छीनी
कहा मिलेगी इनको अपने
चिराग़ों के लिए दुल्हन हसीन.
माँ तू उठ ना इससे पहले की
नारी कि अस्तित्व खो जाए
बेटे बेटे के मोह में ये दुनिया
बेटी का नही नारी कि अस्तित्व मिटा जाए..
माँ माँ माँ उठ तू
में तो सो गयी, उम्र मिलने से पहले
उम्रभर के लिए………..

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परिचय :- अनुराधा बंसल गुप्ता
निवासी : जयपुर , राजस्थान
शिक्षा : पीएच. डी, एम.एससी (आर्थिक), बीकॉम
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।

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